अहले सुन्नत वल-जमाअत का अक़ीदा
अहले सुन्नत वल-जमाअत का अक़ीदा
हमारा अक़ीदा (विश्वास)
हमारा अक़ीदा: अल्लाह, उसके फुरिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों, आख़िरत के दिन और तक़दीर की भलाई-बुराई पर ईमान लाना।
अल्लाह तआला पर ईमान
हम अल्लाह तआला की ‘रुबूबियत” पर ईमान रखते हैं, यानि केवल वही पालने वाला, पैदा करने वाला, हर चीज़ का स्वामी तथा सभी कार्यों का उपाय करने वाला है।
और हम अल्लाह तआला की “उलूहियत” (पुज्य होने) पर ईमान रखते हैं, अर्थात वही सच्चा मअबूद है, और उसके अतिरिक्त तमाम मअबूद असत्य तथा बातिल हैं।
और अल्लाह तआला के नामों तथा उसके गुणों पर भी हमारा ईमान है, अर्थात अच्छे से अच्छा नाम और उच्चतम तथा पूर्णतम गुण उसी के लिए हैं।
और हम उसकी वहदानियत (एकत्ववाद) पर ईमान रखते हैं, अथात यह कि उसकी रुबूबियत, उलूहियत तथा असमा व सिफात (नाम व गुण) में उसका कोई शरीक नहीं। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“رَّبُّ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا فَٱعْبُدْهُ وَٱصْطَبِرْ لِعِبَـٰدَتِهِۦ ۚ هَلْ تَعْلَمُ لَهُۥ سَمِيًّۭا”
“वह आकाशों एवं धरती का तथा जो कुछ उन दोनों के बीच है सबका प्रभु है, इसलिए उसी की उपासना करो तथा उसी की उपासना पर दृढ़ रहो। क्या तुम उसका कोई समनाम जानते हो?” [सूरह मरयमः 65]
और हमारा ईमान है किः
“ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلْحَىُّ ٱلْقَيُّومُ ۚ لَا تَأْخُذُهُۥ سِنَةٌۭ وَلَا نَوْمٌۭ ۚ لَّهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۗ مَن ذَا ٱلَّذِى يَشْفَعُ عِندَهُۥٓ إِلَّا بِإِذْنِهِۦ ۚ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَىْءٍۢ مِّنْ عِلْمِهِۦٓ إِلَّا بِمَا شَآءَ ۚ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ ۖ وَلَا يَـُٔودُهُۥ حِفْظُهُمَا ۚ وَهُوَ ٱلْعَلِىُّ ٱلْعَظِيمُ”
“अल्लाह तआला ही सत्य मअबूद है, उसके अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं, जो जीवित है, सदैव स्वयं स्थिर रहने वाला है, उसे न ऊँघ आती है और न ही नींद, जो कुछ आकाशों में तथा जो कुछ धरती में हैं उसी का है। कौन है जो उसकी आज्ञा के बिना उसके सामने किसी की सिफारिश (अभिस्ताव) कर सके? जो कुछ लोगों के सामने हो रहा है तथा जो कुछ उनके पीछे हो चुका है वह सब जानता है। और वह उसके ज्ञान में से किसी चीज़ का घेरा नहीं कर सकते, परन्तु वह जितना चाहे। उसकी कुर्सी की परिधि ने आकाश एवं धरती को घेरे में ले रखा है। तथा उसके लिए इनकी रक्षा कठिन नहीं। वह तो बड़ा उच्च एवं महान है।” [सूरह बक्रहः 255]
और हमारा ईमान है किः
“هُوَ ٱللَّهُ ٱلَّذِى لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ عَـٰلِمُ ٱلْغَيْبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ ۖ هُوَ ٱلرَّحْمَـٰنُ ٱلرَّحِيمُ”
“هُوَ ٱللَّهُ ٱلَّذِى لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلْمَلِكُ ٱلْقُدُّوسُ ٱلسَّلَـٰمُ ٱلْمُؤْمِنُ ٱلْمُهَيْمِنُ ٱلْعَزِيزُ ٱلْجَبَّارُ ٱلْمُتَكَبِّرُ ۚ سُبْحَـٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا يُشْرِكُونَ”
“هُوَ ٱللَّهُ ٱلْخَـٰلِقُ ٱلْبَارِئُ ٱلْمُصَوِّرُ ۖ لَهُ ٱلْأَسْمَآءُ ٱلْحُسْنَىٰ ۚ يُسَبِّحُ لَهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۖ وَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ”
“वही अल्लाह है जिसके अतिरिक्त कोई सत्य मअबूद नहीं। परोक्ष तथा प्रत्यक्ष्य का जानने वाला है। वह बहुत बड़ा दयावान एवं अति कृपालू है। वही अल्लाह है जिसके अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं, स्वामी, अत्यन्त पवित्र, सभी दोषों से मुक्त, शान्ति करने वाला, रक्षक, बलिष्ठ, प्रभावशाली है। लोग जो साझीदार बनाते हैं अल्लाह उससे पाक एवं पवित्र है। वही अल्लाह सृष्टिकर्ता, आविष्कारक, रूप देने वाला है। अच्छे अच्छे नाम उसी के लिए हैं। आकाशों एवं धरती में जितनी चीजें हैं सब उसकी तस्बीह (पवित्रता) बयान करती हैं और वही प्रभावशाली एवं हिक्मत वाला है।” [सूरह हश्र: 22-24]
और हमारा ईमान है कि आकाशों तथा धरती की राजत्य उसी के लिए हैः
“وَمَا كَانَ لَهُم مِّنْ أَوْلِيَآءَ يَنصُرُونَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ ۗ وَمَن يُضْلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن سَبِيلٍ”
“ٱسْتَجِيبُوا۟ لِرَبِّكُم مِّن قَبْلِ أَن يَأْتِىَ يَوْمٌۭ لَّا مَرَدَّ لَهُۥ مِنَ ٱللَّهِ ۚ مَا لَكُم مِّن مَّلْجَإٍۢ يَوْمَئِذٍۢ وَمَا لَكُم مِّن نَّكِيرٍۢ”
“فَإِنْ أَعْرَضُوا۟ فَمَآ أَرْسَلْنَـٰكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا ۖ إِنْ عَلَيْكَ إِلَّا ٱلْبَلَـٰغُ ۗ وَإِنَّآ إِذَآ أَذَقْنَا ٱلْإِنسَـٰنَ مِنَّا رَحْمَةًۭ فَرِحَ بِهَا ۖ وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌۢ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ فَإِنَّ ٱلْإِنسَـٰنَ كَفُورٌۭ”
“لِّلَّهِ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ يَخْلُقُ مَا يَشَآءُ ۚ يَهَبُ لِمَن يَشَآءُ إِنَـٰثًۭا وَيَهَبُ لِمَن يَشَآءُ ٱلذُّكُورَ “
“أَوْ يُزَوِّجُهُمْ ذُكْرَانًۭا وَإِنَـٰثًۭا ۖ وَيَجْعَلُ مَن يَشَآءُ عَقِيمًا ۚ إِنَّهُۥ عَلِيمٌۭ قَدِيرٌۭ ٥٠”
“आकाशों एवं धरती की बादशाही केवल उसी के लिए है। वह जो चाहे पैदा करता है, जिसे चाहता है बेटीया देता है और जिसे चाहता है बेटा देता है, या उनको बेटे और बेटीय दोनों से कृपा करता है और जिसे चाहता है निःसंतान रखता है। निःसंदेह वह जानने वाला तथा शक्ति वाला है।” (सूरह शूराः 46-50)
और हमारा ईमान है किः
“….لَيْسَ كَمِثْلِهِۦ شَىْءٌۭ ۖ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْبَصِيرُ”
“لَهُۥ مَقَالِيدُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۖ يَبْسُطُ ٱلرِّزْقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقْدِرُ ۚ إِنَّهُۥ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌۭ “
“उस जैसी कोई चीज़ नहीं, वह ख़ूब सुनने वाला देखने वाला है। आकाशों एवं धरती की कुंजिया उसी के पास हैं। वह जिसके लिए चाहता है जीविका विस्तृत कर देता है तथा (जिसके लिए चाहता है) थोड़ा कर देता है। निःसंदेह वह प्रत्येक वस्तु का जानने वाला है।” (सूरह शूरा: 11-12)
और हमारा ईमान है किः
“۞ وَمَا مِن دَآبَّةٍۢ فِى ٱلْأَرْضِ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِ رِزْقُهَا وَيَعْلَمُ مُسْتَقَرَّهَا وَمُسْتَوْدَعَهَا ۚ كُلٌّۭ فِى كِتَـٰبٍۢ مُّبِينٍۢ “
“धरती पर कोई चलने फिरने वाला नहीं मगर उसकी जीविका अल्लाह के ज़िम्मा है। वही उनके रहने का स्थान भी जानता है तथा उनको अर्पित किये जाने का स्थान भी, यह सब कुछ खुली किताब (लौहे महफूज) में मौजूद है।” (सूरह हूदः 6)
और हमारा ईमान है किः
“قُلْ أَرَءَيْتُمْ إِنْ أَخَذَ ٱللَّهُ سَمْعَكُمْ وَأَبْصَـٰرَكُمْ وَخَتَمَ عَلَىٰ قُلُوبِكُم مَّنْ إِلَـٰهٌ غَيْرُ ٱللَّهِ يَأْتِيكُم بِهِ ۗ ٱنظُرْ كَيْفَ نُصَرِّفُ ٱلْـَٔايَـٰتِ ثُمَّ هُمْ يَصْدِفُونَ “
“तथा उसी के पास परोक्ष की कुंजिया हैं, जिनको उसके अतिरिक्त कोई नहीं जानता। तथा उसे थल एवं जल की तमाम चीज़ों का ज्ञान है। तथा कोई पत्ता भी झड़ता है तो वह उसको जानता है तथा धरती के अंधेरों में कोई अन्न तथा हरी या सूखी चीज़ ऐसी नहीं मगर उसका उल्लेख खुली किताब (लौह-ए-महफूज) में है।” (सूरह अनआमः 46)
और हमारा ईमान है किः
“إِنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥ عِلْمُ ٱلسَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ ٱلْغَيْثَ وَيَعْلَمُ مَا فِى ٱلْأَرْحَامِ ۖ وَمَا تَدْرِى نَفْسٌۭ مَّاذَا تَكْسِبُ غَدًۭا ۖ وَمَا تَدْرِى نَفْسٌۢ بِأَىِّ أَرْضٍۢ تَمُوتُ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌۢ”
“निःसंदेह अल्लाह ही के पास कियामत (महाप्रलय) का ज्ञान है। तथा वही वर्षा देता है, तथा जो कुछ गर्भाशय में है (उसकी वास्तविकता) वही जानता है, तथा कोई नहीं जानता कि कल वह क्या कमायेगा, तथा कोई जीवधारी नहीं जानता कि धरती के किस क्षेत्र में उसकी मृत्यु होगी। निःसंदेह अल्लाह ही पूर्ण ज्ञानवाला एवं सही ख़बरों वाला है ।” (सूरह लुकुमानः 34)
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला जो चाहे, जब चाहे तथा जैसे चाहे कलाम (बात) करता है।
“وَكَلَّمَ ٱللَّهُ مُوسَىٰ تَكْلِيمًۭا…”
“और अल्लाह ने मूसा (अलैहिस्सलाम) से बात की।” (सूरह निसाः 164)
“….وَلَمَّا جَآءَ مُوسَىٰ لِمِيقَـٰتِنَا وَكَلَّمَهُۥ رَبُّهُۥ”
“और जब मूसा (अलैहिस्सलाम) हमारे समय पर (तूर पहाड़ पर) आये और उनके रब ने उनसे बातें कीं।” (सूरह आराफः 143)
“وَنَـٰدَيْنَـٰهُ مِن جَانِبِ ٱلطُّورِ ٱلْأَيْمَنِ وَقَرَّبْنَـٰهُ نَجِيًّۭا”
“और हमने उनको तूर के दायें ओर से पुकारा और गुप्त बात कहने के लिए निकट बुलाया ।” (सूरह मरयमः 52)
और हमारा ईमान है किः
“….قُل لَّوْ كَانَ ٱلْبَحْرُ مِدَادًۭا لِّكَلِمَـٰتِ رَبِّى لَنَفِدَ ٱلْبَحْرُ قَبْلَ أَن تَنفَدَ كَلِمَـٰتُ رَبِّى “
“यदि समुद्र मेरे प्रभु की बातों को लिखने के लिए स्याही हो तो पूर्व इसके कि मेरे प्रभु की बातें समाप्त हों समुद्र समाप्त हो जाये ।” (सूरह कहफः 109)
“وَلَوْ أَنَّمَا فِى ٱلْأَرْضِ مِن شَجَرَةٍ أَقْلَـٰمٌۭ وَٱلْبَحْرُ يَمُدُّهُۥ مِنۢ بَعْدِهِۦ سَبْعَةُ أَبْحُرٍۢ مَّا نَفِدَتْ كَلِمَـٰتُ ٱللَّهِ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌۭ “
“यदि ऐसा हो कि धरती पर जितने वृक्ष हैं सब क़लम हों तथा समुद्र स्याही हो तथा उसके बाद सात समुद्र और स्याही हो जायें फिर भी अल्लाह की बातें समाप्त नहीं हो सकतीं। निःसंदेह अल्लाह प्रभावशाली एवं हिक्मत वाला है।” (सूरह लुकमानः 27)
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला के कलिमात सुचनाओं में पूर्ण सत्य, हुक्म-अहकाम (विधि-विधान) में परिपूर्ण न्याय सम्बलित तथा बातों में सम्पूर्ण सुंदर हैं। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“तथा तुम्हारे प्रभु की बातें सत्य एवं न्याय से परिपूर्ण हैं।” (सूरह अनआमः ११५)
और फरमायाः
“तथा अल्लाह से बढ़कर सत्य बात कहने वाला कौन है?” (सूरह निसा: ८७)
तथा हम इस पर भी ईमान रखते हैं कि कुरआने करीम अल्लाह का शुभ कथन है, निःसंदेह उसने बात की है और
जिब्रील (अलैहिस्सलाम) पर “इलका” (वह बात जो अल्लाह किसी के दिल में डालता है) किया, फिर जिब्रील (अलैहिस्सलाम) ने प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के दिल में उतारा। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“कह दीजीए उसको रूहुल कुदुस” (जिब्रील अलैहिस्सलाम) तुम्हारे प्रभु की ओर से सत्यता के साथ लेकर आये हैं।” (सूरह नहलः १०२)
“और यह (पवित्र कुरआन) सारे जहान के पालनहार की ओर से अवतरित किया हुआ है जिसको लेकर “रूहुल अमीन! (जिब्रील अलैहिस्सलाम) आये, तुम्हारे दिल में डाला, ताकि तुम लोगों को डराने वालों में से हो जाओ, (यह कुरआन) स्वच्छ अरबी भाषा में है।” [सूरह शुअरा: 162-165]
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला अपनी जात एवं गुणों में अपनी सृष्टि पर उच्च है। उसने स्वयं फरमायाः
“वह बहुत उच्च एवं बहुत महान है।” (सूरह बकरह: 254)
और फरमायाः
“तथा वह अपने बन्दों पर प्रभावशाली है, और वह बड़ी हिक्मत वाला और पूरी ख़बर रखने वाला है।” (सूरह अनआमः 18)
और हमारा ईमान है किः
“निःसंदेह तुम्हाा पालक अल्लाह ही है जिसने आकाशों तथा धरती को छः दिनों में बनाया फिर अर्श पर उच्चय हुआ, वह प्रत्येक कार्य का व्यवस्था करता है।” (सूरह यूनुतः ३)
और अल्लाह तआला का अर्श पर उच्चय होने का अर्थ यह है कि अपनी जात के साथ उस पर बुलंद व बाला हुआ जिस प्रकार की बुलंदी उसकी शान तथा महानता के योग्य है, जिसकी स्थिति का विवरण उसके अतिरिक्त किसी को भी मालूम नहीं है। और हम इस पर भी ईमान रखते हैं कि अल्लाह तआला अर्श पर रहते हुये भी (अपने ज्ञान के माध्यम) अपनी सृष्टि के साथ होता है, उनकी दशाओं को जानता है, बातों को सुनता है, कार्यों को देखता है तथा उनके सभी कार्यों का उपाय करताहै, भिक्षुक को जीविका प्रदान करता है, निर्बल को शक्ति एवं बल देता है, जिसे चाहे राज्य देता है और जिससे चाहे राज्य छीन लेता है, जिसे चाहे सम्मान देता है और जिसे चाहे अपमानित करता है, उसी के हाथ में कल्याण है और वह प्रत्येक चीज़ पर सामर्थ्य रखता है। और जिसकी यह शान हो वह हकीकृत में अर्श पर रहते हुये भी (अपने ज्ञान के माध्यम) हकीकृत में अपने सृष्टि के साथ रह सकता है।
“उस जैसी कोई चीज़ नहीं, वह ख़ूब सुनने वाला देखने वाला है|” (सूरह शूरा: ११)
लेकिन हम जहमिया समुदाय में से हुलूलिया फिकी की तरह यह नहीं कहते कि वह धरती में अपने सृस्टि के साथ है। हमारा विचार है कि जो व्यक्ति ऐसा कहे वह या तो गुमराह है या फिर काफिर। क्योंकि उसने अल्लाह तआला को ऐसे अपूर्ण गुणों के साथ विशेषित किया जो उसकी शान के योग्य नहीं। और हमारा इस पर भी ईमान है कि प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जो अल्लाह के संबंध में सूचित किया है कि वह हर रात जब एक तिहाई बाकी रह जाती है तो पृथिवी से निकट आकाश पर नाजिल होता है और कहता है: ((कौन है जो मुझे पुकारे कि मैं उसके पुकार को सुनूँ? कौन है जो मुझसे मौंगे कि मैं उसको हूँ? कौन है जो मुझसे माफी तलब करे कि मैं उसे माफ कर दे और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला क्यामत के दिन बन्दों के बीच फैसला करने के लिए आयेगा। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“निःसंदेह जब धरती कूट कूट कर समतल कर दी जायेगी, तथा तुम्हारा रब (प्रभु) आयेगा और फ्रिश्ते पंक्तिबद्ध होकर आयेंगे, तथा उस दिन नरक (दोजख) को लाया जायेगा तो मनुष्य उस दिन शिक्षा ग्रहण करेगा किन्तु उस दिन शिक्षा ग्रहण करने से क्या लाभ?” (सूरह फज्रः 21-23)
और हमारा ईमान है कि आल्लाह तआलाः
“वह जो चाहे उसे कर देने वाला है।” (सूरह बुरूजः 16)
और हम इस पर भी ईमान रखते हैं कि उसके इरादा की दो किसमें हैं:
१- इरादाये कौनियाः
यह हर हाल में प्रकट हो जाता है तथा यह आवश्यक नहीं कि यह उसे पसंद ही हो, तथा यही इरादा है जो “मशीयते इलाही” अर्थात इश्वरेच्छा” के अर्थ में है। जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान हैः
“और यदि अल्लाह तआला चाहता तो यह लोग आपस में न लड़ते किन्तु अल्लाह जो चाहता है करता है।” (सूरह बकरहः २४३)
“तुम्हें मेरी शुभचिन्ता कुछ भी लाभ नहीं पहुँचा सकती, चाहे मैं जितना ही तुम्हारा शुभचिंतक क्यों न हूँ, यदि अल्लाह की इच्छा तुम्हें भटकाने की हो। वही तुम सब का प्रभु है तथा उसी की ओर लौट कर जाओगे।” (सूरह हूदः 3)
२- इरादये शरइयाः
आवश्यक नहीं कि यह प्रकट हो जाये, और इसमें उद्दिष्ट विषय अल्लाह को प्रिय ही होता है। जैसाकि अल्लाह तआला ने
फरमायाः
“और अल्लाह तआला तो चाहता है कि तुम्हारी तौबा कबूल करे ।” (सूरह निसाः २७)
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला का इरादा चाहे “कौनी” हो या ‘शरई” उसकी हिक्मत के अधीन है। अतः हर वह विषय जिसका फैसला अल्लाह तआला ने स्वीय इच्छानुसार किया है अथवा इरादा शरइया के अनुसार उसकी सृष्टि ने उसकी इबादत की है, यह सब कुछ हिक्मत के कारण तथा हिक्मत के मुताबिक होता है, चाहे हमें उसका ज्ञान हो या न हो अथवा हमारी बुद्धि उसको समझने से असमर्थ हो।
“क्या अल्लाह समस्त हाकिमों का हाकिम नहीं है?” (सूरह तीनः 8)
“तथा जो लोग विश्वास रखते हैं उनके लिए अल्लाह से बढ़कर उत्तम निर्णय करने वाला कौन हो सकता है?” (सूरह माइदाः 40)
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला अपने औलिया से महब्बत करता है तथा वह भी अल्लाह से महब्बत करते हैं।
“कह दीजीए कि यदि तुम अल्लाह से महब्बत करते हो तो मेरा अनुसरण करो अल्लाह तुमसे महब्बत करेगा।” (सूरह आले इमरानः 31)
“तो अल्लाह तआला ऐसे लोगों को पैदा कर देगा जिनसे वह महब्बत करेगा तथा वह उससे महब्बत करेंगे।” (सूरह माइदाः 544)
“तथा अल्लाह धैर्य रखने वालों से महब्बत करता है” (सूरह आले इमरानः 146)
“तथा न्याय से काम लो, निःसंदेह अल्लाह न्याय करने वालों से महब्बत करता है।” (सूरह हुजुरातः 6)
“और एहसान करो, निःसंदेह अल्लाह एहसान करने वालों से महब्बत करता है।” (सूरह बक़रह, 165)
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला ने जिन कर्मों तथा कथनों को धर्मानुकूल किया है वह उसे प्रिय हैं और जिनसे रोका है वह उसे अप्रिय हैं।
“यदि तुम कृतघ्नता व्यक्त करोगे तो अल्लाह तुमसे निस्पृह्ठ है, वह अपने बन्दों के लिए कृतघ्नता पसंद नहीं करता है, और यदि कृतज्ञता करोगे तो वह उसको तुम्हारे लिए पसंद करेगा।” (सूरह जुमरः 7)
“परन्तु अल्लाह तआला ने उनके उठने को प्रिय न माना, इसलिए उन्हें हिलने-जुलने ही न दिया और उनसे कह दिया गया कि तुम बैठने वालों के साथ बैठे ही रहो ।” (सूरह तौबाः 46)
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला ईमान लाने वालों तथा नेक अमल करने वालों से प्रसन्न होता है।
“अल्लाह उनसे प्रसन्न हुआ तथा वह अल्लाह से प्रसन्न हुए। यह उसके लिए है जो अपने प्रभु से डरे।” (सूरह बय्यिना: 8)
और हमारा ईमान है कि काफिर इत्यादियों में से जो कोध के अधिकारी हैं अल्लाह उन पर क्रोध प्रकट करता है।
“जो लोग अल्लाह के संबंध में बुरे गुमान रखने वाले हैं उन्हीं पर बुराई का चक है तथा अल्लाह उनसे क्रोधित हुए ।” (सूरह फतह: 6)
“परन्तु जो लोग खुले दिल से कुफ़ करें तो उन पर अल्लाह का क्रोध है तथा उन्हीं के लिए बहुत बड़ी यातना है।” (सूरह नहूलः 106)
. और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला का मुख है जो महानता तथा सम्मान से विशेषित है।
“तथा तेरे प्रभु का मुख जो महान एवं सम्मानित है बाकी रहेगा” (सूरह रहमान: 27)
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला के महान एवं कृपा वाले दो हाथ हैं।
“बल्कि उसके दोनों हाथ खुले हुए हैं, वह जिस प्रकार चाहता है खर्च करता है।” (सूरह माइदाः 64)
“तथा उन्होंने अल्लाह का जिस प्रकार सम्मान करना चाहिए था नहीं किया, कियामत के दिन सम्पूर्ण धरती उसकी मुट्ठी में होगी तथा आकाश उसके दायें हाथ में लपेटे होंगे, वह उन लोगों के शिर्क से पवित्र एवं सर्वोपरी है।” (सूरह जुमरः 67)
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला की दो वास्तविक आँखें हैं। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“तथा एक नाव हमारी आँखों के सामने और हमारे हुक्म से बनाओ |” (सूर हूद: 30) और नबी (ﷺ) ने फरमायाः
“अल्लाह तआला का पर्दा नूर (ज्योति) है, यदि उसे उठा दे तो उसके मुख की ज्योतियों से उसके सृष्टि जलकर राख हो जायें “ (सहीह मुस्लिम: 263)
तथा सुन्नत के अनुसरण करने वालों का इस बात पर इजमा (एकमत) है कि अल्लाह तआला की आँखें दो हैं जिसकी पुष्टि दज्जाल के बारे में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के इस फरमान से होती हैः
“दज्जाल काना है तथा तुम्हारा प्रभु काना नहीं है।” और हमारा ईमान है किः
“निगाहें उसे परिवेष्टन नहीं कर सकती तथा वह सब निगाहों को परिवेष्टन करता है, और वह सूक्ष्यदर्शी तथा सर्वसूचित है।” (सूरह अनआम: 103)
और हमारा ईमान है कि ईमानदार लोग कियामत के दिन अपने प्रभु को देखेंगे।
“उस दिन बहुत से मुख प्रफुल्लित होंगे, अपने प्रभु की ओर देख रहे होंगे।” (सूरह कियामा 22-23)
और हमार ईमान है कि अल्लाह के गुणों के परिपूर्ण होने के कारण उसका समकक्ष कोई नहीं है।
“उस जैसी कोई चीज़ नहीं, वह खूब सुनने वाला देखने वाला है।” (सूरह शूरा: 11)
और हमारा ईमान है किः
“उसे न ऊँघ आती है और न ही नींद।” (सूरह बक़रह: 255)
क्योंकि उसमें जीवन तथा स्थिरता का गुण परिपूर्ण है। और हमारा ईमान है कि वह अपने पूर्ण न्याय एवं इन्साफ के गुणों के कारण किसी पर अत्याचार नहीं करता। तथा उसकी निगरानी एवं परिवेष्टन के पूर्णता के कारण वह अपने बन्दों के कर्मों से बेख़बर नहीं है। और हमारा ईमान है कि उसके पूर्ण ज्ञान एवं क्षमता के कारण आकाश तथा धरती की कोई चीज उसे लाचार नहीं कर सकती।
“उसकी शान यह है कि वह जब किसी चीज का इरादा करता है तो कह देता है कि हो जा, तो हो जाता है ।” (सूरह यासीनः 82)
और हमारा ईमान है कि उसकी शक्ति के पूर्णता के कारण उसे कभी लाचारी एवं थकावट का सामना करना नहीं पड़ता।
“और हम ने आकाशों एवं धरती को तथा उसके अंदर जो कुछ है सबको छः दिन में पैदा कर दिया और हमें ज़रा भी थकावट नहीं हुई।” (सूरह काफः 38)
और हमारा ईमान अल्लाह तआला के उन नामों एवं गुणों पर है जिनका प्रमाण स्वयं अल्लाह तआला की बातों से अथवा उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की बातों से मिलता है। किन्तु हम दो बड़ी त्रुटियों से अपने आपको बचाते हैं, वह यह हैं:
१- समानताः अर्थात दिल या जुबान से यह कहना कि अल्लाह तआला के गुण मनुष्य के गुणों के समान हैं।
२- अवस्थाः अर्थात दिल या जुबान से यह कहना कि अल्लाह तआला के गुणों की कैफियत इस इस प्रकार है। और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला उन सब गुणों से पाक एवं पवित्र है जिनका अपनी जात के संबंध में उसने स्यवं या उसके रसूल (ﷺ) ने अस्वीकृति दी है। यह ध्यान रहे कि उस अस्वीकृति में संकेत के तौर पर उसके विपरीत पूर्ण गुणों का प्रमाण भी है। और हम उन गुणों से ख़ामोशी एख़्तियार करते हैं जिनसे अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) खामोश हैं। और हम समझते हैं कि इस मार्ग पर चलना अनिवार्य है तथा इसके बिना कोई चारा नहीं। क्योंकि जिन चीजों को स्वयं अल्लाह तआला ने अपने लिए साबित किया या जिनका इन्कार किया वह ऐसी सूचना है जो उसने अपने संबंध में सूचना दी है, जो कि अपने बारे में सबसे ज़्यादा जानकार है, सबसे ज़्यादा सच बोलने वाला है, सबसे उत्तम बात करने वाला है और बन्दों का ज्ञान तो उसका परिवेष्टन कदापि नहीं कर सकता। तथा अल्लाह के बारे में उसके रसूल (ﷺ) ने उसके लिए जिन चीज़ों को साबित किया या जिनका इन्कार किया वह ऐसी सूचना है जो उन्होंने अल्लाह के संबंध में दी है, जो कि अपने प्रभु के बारे में लोगों में सबसे ज़्यादा जानकार हैं, सबसे ज़्यादा शुभचिंतक हैं, सबसे ज़्यादा सच बोलने वाले और सबसे ज़्यादा विशुद्धभाषी हैं।
अतः अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) के कलाम में ज्ञान, सच्चाई तथा विवरण की पूर्णता है। इसलिए उसके अस्वीकार करने या उसकी स्वीकृति में संदेह करने में कोई उज़्र नहीं।
अल्लाह तआला की वह सभी गुण जिनकी चर्चा हमने पिछले पृष्ठों की है उनके बारे में हम अपने प्रभु की किताब (कुरआन) तथा अपने प्यारे नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत (हदीस) पर निर्भः करते हैं। और इस विषय में उम्मत के सलफ तथा उनके बाद आने वाले इमामों के मन्हज (तरीके) पर चलते हैं। हम समझते हैं कि अल्लाह तआला की किताब और रसूलुल्लाह( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत के नुसूस (कुरआन हदीस की वाणी) को उनके ज़ाहिरी (प्रत्यक्ष) अर्थ में लेना और उनको उस हकीकृत पर महमूल करना (यानी प्रकृतार्थ में लेना) जो अल्लाह तआला के लिए उचित तथा मुनासिब है।
हम बरी तथा मुक्त हैं फेर-बदल करने वालों के तरीकों से जिन्होंने किताब व सुन्तत के उन नुसूस को उस तरफ फेर दिया जो अल्लाह और उसके रसूल ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की इच्छा के विपरीत है।
और हम मुक्त हैं इन्कार करने वालों के आचरण से जिन्होंने उन नुसूस को उस अर्थ से स्थगित कर दिया जो अर्थ अल्लाह और उसके रसूल ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने लिया है।
और हम मुक्त हैं उन गुलू (अतिरंजन) करने वालों की शैली से जिन्होंने उन नुसूस को समानता के अर्थ में लिया है या कैफियत बयान किया है।
हमें यकीनी तौर पर मालूम है कि जो कुछ अल्लाह की किताब तथा उसके नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत में मौजूद है वह सब सत्य है, उनमें पारस्परिक संघर्ष नहीं है। इसलिए कि अल्लाह तआला ने फरमायाः
“भला यह लोग कुरआन में गौर क्यों नहीं करते? यदि यह अल्लाह के अतिरिकत किसी और की ओर से होता तो इसमें बहुत ज़्यादा भिन्नता पाते।” (सूरह निसाः <२)
और इसलिए भी कि ख़बरों में पारस्परिक संघर्ष से एक दुसरे का मिथ्या होना अवश्य हो जाता है जो अल्लाह और उसके रसूल ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ख़बर में असंभव है। जो व्यक्ति यह दावा करे कि अल्लाह की किताब में या उसके रसूल ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत में या उन दोनों में पारस्परिक टकराव है तो यह उसके कुधारणा तथा उसके दिल के वक्ता के कारण से है। इसलिए उसे चाहिए कि अल्लाह तआला से क्षमा याचना करे तथा टेढ़ी चाल चलने से सतर्कता बरते।
जो व्यक्ति इस भ्रम में है कि अल्लाह की किताब में या उसके रसूल # की सुन्नत में या उन दोनों में पारस्परिक टकराव है तो इसका कारण उसमें ज्ञान की कमी या समझने में असमर्थता अथवा गौर व फिक में कुसूर है। अतः उसके लिए आवश्यक है कि ज्ञान की तलाश करे और गौर व फिक् में कोशिश करे ताकि सत्य स्पष्ट हो जाए। और अगर सत्य स्पष्ट न हो तो मामला उसके जानने वाले पर सौप दे तथा अपने भ्रम से रुक जाए और कहे जिस तरह पूर्ण एवं दृढ़ ज्ञान वाले कहते हैं:
“हम उस पर ईमान लाये, यह सब कुछ हमारे प्रभु के यहाँ से आया है।” (सूरह आले इमरान: ७)
और जान ले कि न किताब में और न सुन्नत में और न इन दोनों के बीच कोई भिन्नता तथा टकराव है।
3.फरिश्तों पर ईमान
हम अल्लाह तआला के फरिश्तों पर ईमान रखते हैं और यह कि वेः
“सम्मानित बन्दे हैं, उसके समक्ष बढ़कर नहीं बोलते, और उसके आदेशों पर कार्य करते हैं।” (सूरह अम्बिया: 26-27)
अल्लाह तआला ने उन्हें पैदा फरमाया तो वे उसकी उपासना में लग गए तथा उसकी आज्ञा पालन के लिए आत्म समर्पण कर दिए।
“वे उसकी उपासना से न अहंकार करते हैं और न ही थकते हैं। दिन-रात उसकी पवित्रता वर्णन करते हैं और ज़रा सी भी सुस्ती नहीं करते ।” (सूरह अम्बिया: 16-20)
अल्लाह तआला ने उन्हें हमारी नज़रों से ओझल रखा है, इसलिए हम उन्हें देख नहीं सकते। कभी कभी अल्लाह तआला अपने कुछ बन्दों के लिए उन्हें प्रकट भी कर देता है, जैसाकि नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जिब्रील (अलैहिस्सलाम) को उनके असली रूप में देखा, उनके छः सौ पंख थे जो क्षितिज (उफुक) को ढँपे हूये थे। और जिब्रील (अलैहिस्सलाम) मरयम अलैहस्सलाम के पास सम्पूर्ण आदमी का रूप धारण करके आये तो मरयम अलैहस्सलाम ने उनसे बातें कीं तथा उन्होंने उसका उत्तर दिया।
और प्यारे नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास सहाबा किराम मौजूद थे, उस अवसर पर जिब्रील (अलैहिस्सलाम) मनुष्य का रूप धारण करके आप ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आये, जिनको कोई नहीं जानता था और न उन पर
यात्रा का कोई प्रभाव दिखाई दे रहा था, कपड़े बिल्कुल उजले और बाल बिल्कुल काले थे। नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आमने-सामने घुटना से घुटना मिलाकर बैठ गए और अपने दोनों हाथों को आपके दोनों रानों पर रखकर आपसे संबोधित हुए। नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उनके जाने के पश्चात अपने सहाबा को बताया कि वह जिब्रील (अलैहिस्सलाम) थे।
और हमारा ईमान है कि फरिश्तों के जिम्मे कुछ काम लगाये गये हैं।
उनमें से एक जिब्रील (अलैहिस्सलाम) हैं जिनको वहय का कार्यभार सौंपा गया है जिसे वह अल्लाह के पास से लाते हैं तथा अम्बिया एवं रसूलों में से जिस पर अल्लाह तआला चाहता है नाज़िल करते हैं।
तथा उनमें से एक मीकाईल (अलैहिस्सलाम) जिनको वर्षी एवं वनस्पति (नबात) की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
तथा एक इस्राफील (अलैहिस्सलाम) हैं जिनके जिम्मे कियामत आने पर पहले लोगों को बेहोशी के लिए फिर दोबारा जिन्दा करने के लिए सूर फूँकने का कार्यभार दिया गया है।
तथा एक मलकुल मौत हैं जिनके जिम्मे मृत्यु के समय प्राण निकालने का कार्यभार सौंपा गया है।
तथा एक मलकुल जिबाल हैं जिनके ज़िम्मे पहाड़ों का कार्यभार सौंपा गया है।
तथा उनमें से एक मालिक हैं जो जहन्नम का दारोगा है। तथा कुछ फरिश्ते उनमें से मेँ के पेट में बच्चों के कार्यो पर नियुक्त किये गये हैं तथा कुछ फरिश्ते आदम (अलैहिस्सलाम) की संतान की रक्षा के लिए नियुक्त हैं।
तथा कुछ फ्रिश्तों के जिम्मे मनुष्य के कर्मों का लेखन क्रिया है। हरेक व्यक्ति पर दो दो फरिश्ते नियुक्त हैं।
“जो दायें-बायें बैठे हैं, उनकी (मनुष्य की) कोई बात जुबान पर नहीं आती परन्तु रक्षक उसके पास लिखने को तैयार रहता है।” (सूरह काफः 17-18)
उनमें से एक गिरोह मैथित से सवाल करने पर नियुक्त है। जब मैयित को मृत्यु के पश्चात अपने ठिकाने पर पहुँचा दिया जाता है तब उसके पास दो फरिश्ते आते हैं और उससे उसके प्रभु, उसके दीन तथा उसके नबी के संबंध में प्रश्न करते हैं तोः
“अल्लाह तआला ईमानदारों को पक्की बात पर दृढ़ रखता है सौसारिक जीवन में भी तथा परलोकिक जीवन में भी। तथा अल्लाह तआला अन्याय करने वालों को भटका देता है। और अल्लाह तआला जो चाहता है करता है।” (सूरह इब्राहीम: 27)
और उनमें से चंद फ्रिश्ते जन्नतियों के यहाँ नियुक्त हैं।
“हरेक द्वार से उनके पास आयेंगे और कहेंगे सलामती हो तुम पर तुम्हारे बैर्य के बदले, परलोकिक घर क्या ही अच्छा है।” (सूरह रअदः 23-24)
तथा प्यारे नबी (ﷺ) ने बताया कि आकाश में बैतुल मामूर है जिसमें रोज़ाना सत्तर हज़ार फरिश्ते प्रवेश करते हैं -एक रिवायत के अनुसार- उसमें नमाज़ पढ़ते हैं, और जो एकबार प्रवेश कर जाते हैं उनकी बारी दोबारा कभी नहीं आती।
4. किताबों पर ईमान
हमारा ईमान है कि जगत पर हुज्जत कायम करने के लिए तथा अमल करने वालों के लिए रास्ता दिखाने के तौर पर अल्लाह तआला ने अपने रसूलों पर किताबें नाजिल फरमाईं। पैगम्बर इन किताबों के द्वारा लोगों को धर्म की शिक्षा देते तथा उनके दिलों की सफाई करते थे।
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला ने हर रसूल के साथ एक किताब नाजिल फरमाई। इसकी दलील अल्लाह तआला का यह फरमान हैः
“निःसंदेह हमने अपने पैगम्बरों को खुली निशानी देकर भेजा और उन पर किताब तथा न्याय (तुला) नाजिल की ताकि लोग न्याय पर कायम रहें।” (सूरह हदीदः 25)
तथा हमें उनमें से निम्नलिखित किताबों का ज्ञान हैः
1- तौरातः जिसे अल्लाह तआला ने मूसा (अलैहिस्सलाम) पर नाज़िल किया और यह किताब बनी इस्राईल में सबसे मुख्य किताब थी।
“हमने नाजिल किया तौरात को जिस में मार्गदर्शन एवं ज्योति है, यहूदियों में इसी तौरात के साथ अल्लाह तआला के मानने वाले अम्बिया (अलैहिमुस्सलाम) और अल्लाह वाले और उलमा फैसले करते थे, क्योंकि उन्हें अल्लाह की इस किताब की रक्षा करने का आदेश दिया गया था और वह इस पर गवाह थे।” (सूरह माइदा: 44)
2- इंजीलः जिसे अल्लाह तआला ने ईसा (अलैहिस्सलाम) पर नाजिल किया और वह तौरात की पुष्टि करने वाली एवं सम्पूरक थी।
“और हमने उनको (ईसा अलैहिस्सलाम को) इंजील प्रदान की जिसमें मार्गदर्शन एवं ज्योति है तथा वह अपने से पूर्व किताब तौरात की पुष्टि करती है तथा वह परहेज़गारों (संयमियों) के लिए मार्गदर्शन एवं सदुपदेश है।” (सूरा माइदाः 46)
“और मैं इस लिए भी आया हूँ कि कुछ चीजें जो तुम पर हराम कर दी गई थीं तुम्हारे लिए हलाल कर दूँ।” (सूरह आले इमरानः 40)
3- जबूरः जिसे अल्लाह तआला ने दाऊद अलैहिस्सलाम पर उतारा।
4- इब्राहीम अलैहिस्सलाम और मूसा अलैहिस्सलाम के सहीफे।
5- कुरआन मजीदः जिसे अल्लाह तआला ने अपने आखिरी नबी मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर नाजिल किया।
“जो लोगों के लिए मार्गदर्शन है तथा इसमें मार्गदर्शन की निशानियँ हैं एवं सत्य तथा असत्य में अंतर करने वाला है।” (सूरह बक्रह: 185)
“जो अपने से पूर्व की किताबों की पुष्टि करने वाली है तथा उन सब का रक्षक है।” (सूरह माइदा: 48)
अल्लाह तआला ने पवित्र कुरआन के द्वारा पिछली तमाम किताबों को मनूसूख़ (रहित) कर दिया तथा उसे खेलवाड़ों के खेल से एवं फेर-बदल करने वालों के वक्रता से सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी स्वयं लिया है।
“निःसंदेह हमने ही इस कुरआन को उतारा है तथा हम ही इसके रक्षक हैं।” (सूरह हिज़्रः 6)
क्योंकि वह कियामत तक तमाम सृष्टि पर हुज्जत बनकर बाकी रहेगा। जहाँ तक पिछली आसमानी किताबों का संबंध है तो वह एक निर्धारित समय तक के लिए थीं और वह उस समय तक बाकी रहती थीं जब तक उन्हें मनूसूख करने वाली तथा उनमें हासिल होने वाले फेर-बदल को स्पष्ट करने वाली किताब न आ जाती थी। इसी लिए (पवित्र कुरआन से पूर्व की) कोई
किताब फेर-बदल, ज़्यादती तथा कमी से सुरक्षित न रह सकी।
“यहूदियों में से कुछ ऐसे हैं जो कलिमात को उसके उचित स्थान से उलट-फेर कर देते हैं ।” (सूरह निसाः 46)
“उन लोगों के लिए सर्वनाश है जो अपने हाथों की लिखी हुई किताब को अल्लाह तआला की ओर की कहते हैं और इस प्रकार दुनिया कमाते हैं, उनके हाथों की लिखाई को और उनकी कमाई को बबीदी और अफसोस है।” (सूरह बक़रह: 76)
“कह दीजिए कि वह किताब किसने नाजिल की है जिसको मूसा (अलैहिस्सलाम) लाये थे जो लोगों के लिए प्रकाश तथा मार्गदर्शक है, जिसे तुमने उन अलग अलग पेपरों में रख छोड़ा है जिनको व्यक्त करते हो और बहुत सी बातों को छिपाते हो।” (सूरह अनआमः 61)
“अवश्य उनमें से ऐसा गिरोह भी है जो किताब पढ़ते हुए अपनी जीभ मरोड़ लेता है, ताकि तुम उसको किताब ही का लेख समझो, हालांकि (वास्तव में) वह किताब में से नहीं, और यह कहते भी हैं कि वह अल्लाह की ओर से है, हालांकि वह अल्लाह की ओर से नहीं, वह तो जान बूझ कर अल्लाह पर झूठ बोलते हैं। किसी ऐसे पुरुष को जिसे अल्लाह किताब, विज्ञान और नबूअत प्रदान करे, यह उचित नहीं कि फिर भी वह लोगों से कहे कि अल्लाह को छोड़कर मेरे भक्त बन जाओ ।” (सूरह आले इमरान: 78-79)
“हे अहले किताब! तुम्हारे पास हमारे रसूल (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) आ गये जो बहुत सी वह बातें बता रहे हैं जो किताब (तौरात तथा इंजील) की बातें तुम छुपा रहे थे तथा बहुत सी बातों को छोड़ रहे हैं, तुम्हेरे पास अल्लाह की ओर से ज्योति तथा खुली किताब (पवित्र कुरआन) आ चुकी है। जिसके द्वारा अल्लाह उन्हें शान्ति का पथ दिखाता है जो उसकी प्रसन्नता का अनुकरण करें तथा उन्हें अंधकार से अपनी कृपा से प्रकाश की ओर निकाल लाता है तथा उन्हें सीधा मार्ग दर्शाता है। निःसंदेह वह लोग काफिर हो गये जिन्होंने कहा कि मरयम का पुत्र मसीह अल्लाह है।” (सूरह माइदाः 14-17)
5. रसूलों पर ईमान
हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला ने अपने सृष्टि की ओर रसूलों को भेजा।
“शुभसूचक एवं सचेतकर्ता रसूल बनाकर भेजा ताकि लोगों को कोई बहाना एवं अभियोग रसूलों के (भेजने के) पश्चात न रह जाये, तथा अल्लाह तआला शक्तिमान एवं पूर्णज्ञानी है।” (सूरह निसा: 165)
और हमारा ईमान है कि सबसे प्रथम रसूल नूह (अलैहिस्सलाम) हैं तथा अन्तिम रसूल मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं।
“हमने आपकी ओर उसी प्रकार वहय भेजी जिस प्रकार नूह एवं उनके बाद के नबियों पर भेजी थी।” (सूरह निसाः 163)
“मुहम्मद तुम्हारे पुरुषों में से किसी के पिता नहीं हैं बल्कि अल्लाह के रसूल तथा समस्त नबियों में अन्तिम हैं।” (सूरह अहज़ाबः 40)
और हमारा ईमान है कि उनमें सबसे अफृजल (सर्वश्रेष्ठ) मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं, फिर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम), फिर मूसा (अलैहिस्सलाम) फिर नूह (अलैहिस्सलाम) एवं ईसा बिन मरयम (अलैहिस्सलाम) हैं, तथा इन्हीं पांच रसूलों का
विशेष रूप से इस आयत में वर्णन हैः
“और जब हमने समस्त नबियों से वचन लिया तथा आप से तथा नूह से तथा इब्राहीम से तथा मूसा से तथा मरयम के पुत्र ईसा से, और हमने उनसे पक्का वचन लिया ।” (सूरह अहज़ाबः 7)
और हमारा अकीदा है कि मादा के साथ विशेषित उल्लिखित रसूलों की शरीअतों के फज़ायल को मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शरीअत व्याप्त है। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिए वही धर्म निधारित कर दिया है जिसको स्थापित करने का उसने नूह (अलैहिस्सलाम) को आदेश दिया था, और जो (प्रकाशना के द्वारा) हमने तेरी ओर भेज दिया है तथा जिसका विशेष आदेश हमने इब्राहीम तथा मूसा एवं ईसा (अलैहिमुस्सलाम) को दिया था कि धर्म को स्थापित रखना तथा इसमें फूट न डालना |” (सूरह शूराः 13)
और हमारा ईमान है कि सभी रसूल मनुष्य तथा सृष्टि थे, रुबूबियत (इश्वरियता) की विशेषताओं में से कुछ भी उनमें नहीं पाई जाती थी। अल्लाह तआला ने प्रथम रसूल नूह (अलैहिस्सलाम) की ओर से संबोधन कियाः
“न तो मैं तुमसे यह कहता हूँ कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न ही यह कि मैं परोक्ष जानता हूँ और न ही यह कहता हूँ कि मैं फरिश्ता हूँ।” (सूरह हूद: 31)
तथा अल्लाह तआला ने अन्तिम रसूल मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को आदेश दिया कि वह लोगों से कह दें:
“न तो मैं तुमसे यह कहता हूँ कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न ही यह कि मैं परोक्ष जानता हूँ और न ही यह कहता हूँ कि मैं फरिश्ता हूँ।” (सूरह अन्आम: 40)
और यह भी कह दें:
“मैं स्वयं अपने नफ़्स के लिए किसी लाभ का अधिकार नहीं रखता और न किसी हानी का, किन्तु इतना ही जितना कि अल्लाह तआला ने चाहा हो ।” (सूरह आराफ- 188)
और यह भी कह दें:
“निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए किसी लाभ-हानी का अधिकार नहीं रखता, यह भी कह दीजिए कि मुझे कदापि कोई अल्लाह से नहीं बचा सकता तथा मैं कदापि उसके अतिरिक्त किसी और से शरण का स्थान नहीं पा सकता ।” (सूरह जिन्नः 21-22)
और हमारा ईमान है कि सभी रसूल अल्लाह के बंदों तथा दासों में से थे, अल्लाह ने उन्हें रिसालत (दूतत्व) से सम्मानित
किया और उन्हें दासत्व के विशेषण से विशेषित किया उनके मर्यादा के सर्वोच्च स्थानों तथा उनकी प्रशंसा के प्रसंग (सियाक) में। अल्लाह तआला ने प्रथम दूत नूह अलैहिस्सलाम के संबंध में फरमायाः
“ऐ उन लोगों की संतान जिनको हमने नूह (अलैहिस्सलाम) के साथ (नाव में) सवार किया था, निःसंदेह वह अत्यधिक कृतज्ञ भक्त था।” (सूरह इसराः 3)
और सबसे अन्तिम रसूल मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के संबंध में फरमायाः
“अत्यन्त शुभ है वह (अल्लाह तआला) जिसने अपने भक्त पर फुरकान (कुरआन) अवतरित किया ताकि वह जगत के लिए सतर्क करने वाला बन जाये।” (सूरह फुरकानः 1)
तथा अन्य रसूलों के संबंध में फरमायाः
“तथा हमारे भक्तों इब्राहीम, इसहाक एवं याकूब को भी याद करो जो हाथों एवं आँखों वाले थे।” (सूरह सादः 45)
“तथा हमारे भक्त दाऊद (अलैहिस्सलाम) को याद करें जो अत्यन्त शक्तिशाली थे, निःसंदेह वह बहुत ध्यानमग्न थे।” (सूरह सादः 17)
“तथा हमने दाऊद (अलैहिस्सलाम) को सुलैमान नामी पुत्र प्रदान किया जो अति उत्तम भक्त था तथा अत्यधिक ध्यान लगाने वाला था।” (सूरह साद: 30)
और मरयम के पुत्र ईसा (अलैहिस्सलाम) के संबंध में फरमायाः
“वह तो हमारे ऐसे भक्त थे जिन पर हमने उपकार किया तथा उसे बनी इस्राईल के लिए निशानी बनाया।” (सूरह जुख़रुफः 56)
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला ने मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर दूतत्व का सिलसिला समाप्त कर दिया तथा आपको सम्पूर्ण मानवता के लिए रसूल बना कर भेजा। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“आप कह दीजिए कि ऐ लोगो! मैं तुम सब की ओर अल्लाह का भेजा हुआ हूँ (अर्थात उसका रसूल हूँ) जिसके लिए आकाशों एवं धरती की राजत्य है, उसके अतिरिक्त कोई भी उपासना के योग्य नहीं, वही जीवन प्रदान करता है तथा वही मृत्यु देता है, इसलिए अल्लाह पर तथा उसके उम्मी (निरक्षर, अनपढ़) दूत पर जो अल्लाह और उसके सभी कलाम (आदेशों) पर ईमान रखते हैं, उनका अनुसरण करो ताकि तुम सत्य मार्ग पर आ जाओ।!” (सूरह आराफ: 158)
और हमारा ईमान है कि मुहम्मद (ﷺ) की शरीअत ही दीने इस्लाम (इस्लाम धर्म) है, जिसे अल्लाह तआला ने अपने बंदों
के लिए पसंद फरमाया। अतः किसी से इस दीन के अतिरिक्त कोई दीन कबूल नहीं करेगा। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“निःसंदेह अल्लाह के पास इस्लाम धर्म ही है।” (सूरह आले इमरानः 19)
“आज मैं ने तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को पूरा कर दिया तथा तुम पर अपनी अनुकम्पा पूरी कर दी तथा तुम्हारे लिए इस्लाम धर्म को पसंद कर लिया ।” (सूरह माइदाः 3)
“तथा जो व्यक्ति इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म की खोज करे उसका धर्म कदापि मान्य नहीं होगा तथा वह परलोक में क्षतिग्रस्तों में होगा ।” (सूरह आले इमरानः 85)
और हमारा अकीदा है कि जो इस्लाम धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म जैसे यहूदियत तथा नसरानियत आदि को स्वीकार योग्य समझे तो वह काफिर है। उसे तौबा करने के लिए कहा जायेगा, यदि वह तौबा कर ले तो ठीक है नहीं तो धर्मत्यागी होने के कारण कृत्ल किया जायेगा, क्योंकि वह कुरआन को झुठलाने वाला है। और हमारा यह भी अकीदा है कि जिस व्यक्ति ने मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की रिसालत या उनके सम्पूर्ण मानवता के लिए दूत होने का इन्कार किया तो उसने सभी रसूलों के साथ कुफ़ किया, यहाँ तक कि उस रसूल का भी जिसके अनुकरण तथा जिस पर ईमान का उसे दावा है। क्योंकि अल्लाह ने फरमायाः
“नूह (अलैहिस्सलाम) की कौम ने रसूलों को झुठलाया।” (सूरह शुअराः 105)
इस पवित्र आयत में उन्हें सारे रसूलों को झुठलाने वाला ठहराया हालांकि नूह (अलैहिस्सलाम) से पूर्व कोई रसूल नहीं गुजरा।
अल्लाह तआला ने दूसरी जगह फरमायाः
“जो लोग अल्लाह तथा उसके रसूलों के प्रति अविश्वास रखते हैं और चाहते हैं अल्लाह तथा उसके रसूलों के मध्य अलगाव करें तथा कहते हैं कि हम कुछ को मानते हैं और कुछ को नहीं मानते तथा इसके बीच रास्ता बनाना चाहते हैं। विश्वास करो कि यह सभी लोग असली काफिर हैं, और काफिरों के लिए हमने अत्यधिक कठोर यातनायें तैयार कर रखी हैं।” (सूरह निसा: 150-151)
और हम ईमान रखते हैं कि मुहम्मद (ﷺ) के पश्चात कोई नबी नहीं। अतः आप ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बाद जिस किसी ने नबूअत का दावा किया या नबूअत के दावेदार की पुष्टि की तो वह काफिर है। क्योंकि वह अल्लाह तआला और उसके रसूल ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) एवं मुसलमानों के इजमा (एकमत) को झुठलाने वाला है।
और हम ईमान रखते हैं कि आपके नेक ख़लीफे (ख़ुलफाये राशेदीन) हैं जो ज्ञान, दअवत तथा मोमिनों पर शासन करने हेतु आप ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की उम्मत में आपके जानशीन बने। और हम इस पर भी ईमान रखते हैं कि खुलफा में सबसे अफुजल और ख़िलाफत का सबसे ज़्यादा अधिकारी अबू बक़्र (रज़ियल्लाहु अन्हु)हैं, फिर उमर बिन ख़त्ताब (रज़ियल्लाहु अन्हु), फिर उसमान बिन अफ़्फान (रज़ियल्लाहु अन्हु), फिर अली बिन अबी तालिब (रज़ियल्लाहु अन्हु) हैं।
मर्यादा में जिस तरह उनकी तरतीब रही उसी क्रमानुसार वह ख़िलाफृत के अधिकारी भी हुए। अल्लाह तआला का कोई काम हिक्मत से ख़ाली नहीं होता। इसलिए उसकी शान से यह बात बहुत परे है कि वह खैरुल कुरून (सबसे उत्तम जमाना) में किसी उत्तम तथा ख़िलाफत के अधिक अधिकार रखने वाले व्यक्ति की उपस्थिति में किसी अन्य व्यक्ति को मुसलमानों पर आच्छादित करता।
और हमारा ईमान है कि उपरोक्त खुलफा में मफजूल (अपेक्षाकृत मादा में कम) ख़लीफा में ऐसी वैशिष्ट पाई जा सकती है जिसमें वह अपने से अफज़ल से श्रेष्ठ हो, लेकिन इसका यह अर्थ कदापी नहीं है कि वह अपने से अफज़ल ख़लीफा से हर विषय में प्रधानता रखते हैं, क्योंकि प्रधानता के कारण अनेक तथा विभिन्न प्रकार हैं।
और हमारा ईमान है कि यह उम्मत अन्य उम्मतों से उत्तम है तथा अल्लाह के यहाँ इनकी इज़्जत एवं प्रतिष्ठा अधिक है। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“तुम सर्वश्रेष्ठ उम्मत हो जो लोगों के लिए पैदा की गई है कि तुम सत्कर्मों का आदेश देते हो और कुकर्मों से रोकते हो और अल्लात तआला पर ईमान रखते हो।” (सूरह आले इमरान: 110)
और हम ईमान रखते हैं कि उम्मत में सबसे उत्तम सहाबा किराम (रिज़वानुल्लहि अलैहिम् अजमईन) थे, फिर ताबेइन और फिर तबा ताबेईन रहेमहुमुल्लाह।
और हमारा ईमान है कि इस उम्मत में से एक जमाअत विजयी बनकर सदैव सत्य पर स्थिर रहेगी। उनका विरोध करने वाला या उन्हें रुसवा करने वाला कोई व्यक्ति उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा यहाँ तक कि अल्लाह का हुक्म आ जाये।
सहाबा किराम (रिज़वानुल्लाहि अलैहिम् अजमईन) के बीच जो मतभेद हुए उनके संबंध में हमारा विश्वास यह है कि वह इजतिहादी मतभेद थे। अतः उनमें से जो सही दिशा को पहुँच गये उनके लिए डबल अज्र है और उनमें से जो सही दिशा को नहीं पहुँच पाये उनके लिए एक अज्र है तथा उनकी भूल क्षमायोग्य है।
हमें इस पर भी विश्वास है कि उनकी अप्रिय बातों पर आलोचना करने से पूर्णतः बचना अनिवार्य है, केवल उनकी उत्तम बातों की प्रशंसा करनी चाहिए जिसके वह अधिकारी हैं। तथा उनमें से हरेक के संबंध में हमें अपने दिलों को वैर एवं कपट से पवित्र रखना चाहिए क्योंकि उनकी शान में अल्लाह तआला का कथन हैः
“तुम में से जिन लोगों ने विजय से पूर्व अल्लाह के मार्ग में ख़र्च किया है तथा धर्मयुद्ध किया है वह (दूसरों के) समतुल्य नहीं, अपितु उनसे अत्यन्त उच्च पद के हैं जिन्होंने विजय के पश्चात दान किया तथा धर्मयुद्ध किया। हा, भलाई का वचन तो अल्लाह तआला का उन सबसे है।” (सूरह हदीदः 10)
तथा हमारे संबंध में अल्लाह तआला का कथन हैः
“तथा (उनके लिए) जो उनके पश्चात आयें, जो कहेंगे कि हे हमारे प्रभु! हमें क्षमा कर दे तथा हमारे उन भाईयों को भी जो हमसे पूर्व ईमान ला चुके हैं तथा ईमान वालों की ओर से हमारे हृदय में कपट (एवं शत्रुता) न डाल, हे हमारे प्रभु! निःसंदेह तू प्रेम एवं दया करने वाला है।” (सूरह हश्र: 10)
6.कियामत (महाप्रलय) पर ईमान
हमारा ईमान आख़िरत के दिन पर है जो कियामत का दिन है जिसके पश्चात कोई दिन नहीं, जब अल्लाह तआला लोगों को दोबारा जीवित करके उठायेगा, फिर या तो वे सदैव के लिए स्वर्ग में रहेंगे जहाँ अच्छी अच्छी चीज़ें होंगी या नरक में जहाँ कठोर यातनायें हैं। हमारा ईमान मृत्यु के पश्चात मुर्दों को जीवित किये जाने पर है अ्थात इस्राफील (अलैहिस्सलाम) जब दोबारा सूर फुँकेंगे तो अल्लाह तआला तमाम मुर्दों को जीवित कर देगा।
“तथा जब नरसिंहा (सूर) फूँक दिया जायेगा तो जो लोग आकाशों एवं धरती में हैं सब बेहोश होकर गिर पड़ेंगे परन्तु वह जिसे अल्लाह चाहे, फिर पुनः नरसिंहा फूँका जायेगा तो सब तुरन्त खड़े होकर देखने लग जायेंगे।” (सूरह जुमरः 68)
अब लोग अपनी अपनी कुब्रों से उठकर संसार के प्रभु की ओर जायेंगे, उस समय वह नंगे पाँव बिना जूतों के, नंगे बदन बिना कपड़ों के एवं बिना ख़तनों के होंगे।
“जिस प्रकार हमने (संसार को) पहले पैदा किया था उसी प्रकार दोबारा पैदा कर देंगे, यह हमारा वादा है, हम ऐसा अवश्य करने वाले हैं।” (सूरह अम्बिया: 104)
और हमारा ईमान नामए-आमाल (कर्मपत्र) पर भी है कि वह दायें हाथ में दिया जायेगा या पीछे की ओर से बायें हाथ में।
“तो जिसका कर्मपत्र उसके दायें हाथ में दिया जायेगा उससे सरल हिसाब लिया जायेगा तथा अपने घरवालों में प्रसन्न होकर लौटेगा। तथा जिसका कर्मपत्र पीठ के पीछे से दिया जायेगा तो वह मृत्यु को पुकारेगा तथा भड़कती हुई आग में डाल दिया जायेगा ।” (सूरह इनशिक़ाक़: 7-12)
“तथा हमने हरेक मनुष्य के भाग्य को उसके गले में डाल दिया है तथा महाप्रलय के दिन हम उसके कर्मपत्र को निकालेंगे जिसे वह अपने ऊपर खुला हुआ देखेगा। लो स्वयं ही अपना कर्मपत्र पढ़ लो। आज तो तू स्वयं ही अपना निर्णय करने को काफी है। (सूरह इसराः 13-14)
तथा हम तुले (मवाज़ीन) पर भी ईमान रखते हैं जो कियामत के दिन स्थापित किये जायेंगे फिर किसी पर कोई अत्याचार नहीं होगा।
“तो जिसने कण भर भी नेकी की होगी वह उसको देख लेगा तथा जिसने कण भर भी बुराई की होगी वह उसे देख लेगा।” (सूरह जलजला: 7-8)
“जिनकी तराजू का पलड़ा भारी हो गया वे तो मोक्ष प्राप्त करने वाले हो गये। तथा जिनकी तराजू का पलड़ा हल्का रह गया ये हैं वे जिन्होंने अपनी हानी स्वयं कर ली, जो सदैव के लिए नरक में चले गये। उनके मुखों को आग झुलसाती रहेगी, वे वहाँ कुरूप बने हुये होंगे।” (सूरह मोमेनून: 102-104)
“जो व्यक्ति पुण्य का कार्य करेगा उसे उसके दस गुना मिलेंगे। तथा जो कुकर्म करेगा उसे उसके समान दण्ड मिलेगा, तथा उन लोगों पर अत्याचार न होगा।” (सूरह अनआमः 160)
हम सुमहान अभिस्ताव (शफाअते उज़मा) पर ईमान रखते हैं जो रसूलुल्लाह ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लिए ख़ास है। जब लोग असहनीय दुःख एवं कष्ट में ग्रस्त होंगे तो पहले आदम (अलैहिस्सलाम) के पास, फिर नूह (अलैहिस्सलाम) के पास, फिर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के पास, फिर मूसा (अलैहिस्सलाम) के पास, फिर ईसा (अलैहिस्सलाम) के पास, और अंत में मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास जायेंगे तो आप #$ अल्लाह की आज्ञा से उसके समक्ष सिफारिश करेंगे ताकि वह अपने बन्दों के दरमियान फैसला कर दे।
और हमारा ईमान है कि जो मोमिन अपने गुनाहों के कारण नरक में प्रवेश कर जायेंगे उनको वहाँ से निकालने के लिए भी अभिस्ताव होगा तथा उसका सम्मान नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और आपके अतिरिक्त अन्यों को भी (जैसे अम्बिया, मोमिनीन, फरिश्ते) प्राप्त होगा।
और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला मोमिनों में से कुछ लोगों को बिना अभिस्ताव के केवल अपनी दया एवं अनुकम्पा के आधार पर नरक से निकालेगा।
हम प्यारे नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हौज़ पर भी ईमान रखते हैं। उसका पानी दूध से बढ़कर सफेद, शहद से ज़्यादा मीठा तथा कस्तूरी से बढ़कर सुगन्धित होगा। उसकी लम्बाई एवं चौड़ाई एक मास के यात्रा के समान होगी। तथा उसके आबख़ोरे (पानी पीने के प्याले) सुन्दरता एवं अधिकता में आसमान के तारों की तरह होंगे। आपके ईमान वाले उम्मती वहाँ से पानी पियेंगे, जिसने वहाँ से एक बार पी लिया उसे कभी प्यास नहीं लगेगी।
हमारा ईमान है कि नरक पर पुलसिरात की स्थापना होगी। लोग अपने कर्मों के अनुसार उस पर से गुज़रेंगे। पहले दर्जे के लोग बिजली की तरह गुजर जायेंगे, फिर क्रमानुसार कुछ हवा की सी तेजी से, कुछ पक्षियों की तरह तथा कुछ तेज़ दौड़ने
वाले पुरुषों की तरह गुज़रेंगे। और नबी #&$ पुलसिरात पर खड़े दुआ मांग रहे होंगे: ऐ अल्लाह! इन्हें सुरक्षित रख इन्हें सुरक्षित रख यहाँ तक कि लोगों के कर्म विवश हो जायें तो वह पेट के बल रेंगते हुये गुज़रेंगें। और पुलसिरात के दोनों ओर कुंडिया लटकी होंगी जिनके संबंध में आदेश होगा उन्हें पकड़ लेंगी तो कुछ लोग उनकी ख़राशें से जख्मी होकर मुक्ति पा जायेंगे तथा कुछ लोग जहन्नम में गिर पड़ेंगे।
किताब व सुन्नत में उस दिन की जो सूचनायें एवं कष्टदायक यातनायें उल्लिखित हैं उन सब पर हमारा ईमान है। अल्लाह तआला इसमें हमारी सहायता करे।
हमारा ईमान है कि नबी करीम (ﷺ) जन्नतियों के स्वर्ग में प्रवेश के लिए अभिस्ताव करेंगे जो आप (ﷺ) के ख़ास होगी।
जन्नत-जहन्नम (स्वर्गगनरक) पर भी हमारा ईमान है। जन्नत नेअमतों का वह घर है जिसे अल्लाह तआला ने परहेजगार मोमिनों के लिए तैयार किया है, उसमें ऐसी ऐसी नेअमतें हैं जो किसी आँख ने देखि नहीं है और न किसी कान ने सुनी हैं और न किसी मनुष्य के दिल में इसका ख़्याल ही आया है।
“कोई नफ़्स नहीं जानता जो कुछ हमने उनकी आँखों की ठंडक उनके लिए छिपा रखी है, जो कुछ करते थे यह उसका बदला है ।” (सूरह सजदाः 17)
तथा जहन्नम कठिन यातना का वह घर है जिसे अल्लाह तआला ने काफिरों तथा अत्याचारियों के लिए तैयार कर रखा है। वहाँ ऐसी भयानक यातना है जिसका कभी दिल में खटका भी नहीं हुआ।
“अत्याचारियों के लिए हमने वह आग तैयार कर रखी है जिसकी परिधि उन्हें घेर लेंगी। यदि वे आर्तनाद करेंगे तो उनकी सहायता उस पानी से की जायेगी जो तेलछट जैसा होगा जो चेहरे भून देगा, बड़ा ही बुरा पानी है, तथा बड़ा बुरा विश्राम स्थल (नरक) है।” (सूरह कहफः 28)
तथा स्वर्ग और नरक इस समय भी मौजूद हैं तथा वे सदैव रहेंगे कभी नाश नहीं होंगे।
“तथा जो व्यक्ति अल्लाह पर ईमान लाये तथ सत्कर्म करे अल्लाह उसे ऐसे स्वर्ग में प्रवेश कर देगा जिसके नीचे नहरें प्रवाहित हैं, जिसमें वे सदैव सदैव रहेंगे। निःसंदेह अल्लाह ने उसे सर्वोत्तम जीविका प्रदान कर रखी है।” (सूरह तलाक: 11)
“अल्लाह ने काफिरों पर धिकक््कार भेजी है तथा उनके लिए भड़कती हुई अग्नि तैयार कर रखी है, जिसमें वे सदैव रहेंगे, वह कोई पक्षधर एवं सहायता करने वाला न पायेंगे। उस दिन उनके मुख आग में उल्टे-पल्टे जायेंगे। (पश्चाताप तथा खेद से) कहेंगे कि काश हम अल्लाह तथा रसूल की आज्ञा पालन करते |” (सूरह अहजाबः 64-66)
तथा हम उन लोगों के स्वर्गीय होने की गवाही देते हैं जिनके लिए किताब व सुन्नत ने नाम लेकर या विशेषतायें बताकर स्वर्ग की गवाही दी है। जिनका नाम लेकर स्वर्ग की गवाही दी गई है उनमें अबू बक्र, उमर, उसमान, अली # प्रभृति हैं जिनका निधारण नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने की है। तथा स्वर्गीय लोगों की विशेषता के आधार पर हरेक मोमिन और मुत्तकी (संयमी) के लिए स्वर्ग की शुभसूचना है।
हम उन सब लोगों को नरकीय होने की गवाही देते हैं जिनका नाम लेकर या अवगुण बयान करके किताब व सुन्नत ने उन्हें नरकीय घोषणा कर दिया है जैसे अबू लहब, अम्र बिन लुहै अल-खुजायी प्रभृति। तथा नरक वालों के अवगुणों के आधार पर हरेक काफिर, मुशरिक अथवा मुनाफिक (द्यवादी) के लिए नरक की गवाही देते हैं। और हम कृब्र की विपत्ति एवं परीक्षा अर्थात मैयत से उसके प्रभु, उसके दीन तथा उसके नबी के बारे में पूछे जाने
“अल्लाह तआला ईमानदारों को पक्की बात पर दृढ़ रखता है सांसारिक जीवन में भी तथा परलोकिक जीवन में भी। तथा अल्लाह तआला अन्याय करने वालों को भटका देता है। और अल्लाह तआला जो चाहता है करता है।” (सूरह इब्राहीम: 27)
मोमिन तो कहेगा कि मेरा प्रभु अल्लाह तआला, मेरा दीन इस्लाम तथा मेरे नबी मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। परन्तु काफिर और मुनाफिक उत्तर देंगे कि मैं नहीं जानता, मैं तो लोगों को जो कुछ कहते हुए सुनता था कह देता था। हमारा ईमान है कि कब्र में मोमिनों को नेअमतों से सम्मानित किया जायेगा।
“वे जिनके प्राण फरिश्ते ऐसी अवस्था में निकालते हैं कि वह स्वच्छ पवित्र हों कहते हैं कि तुम्हारे लिए शान्ति ही शान्ति है, अपने उन कर्मों के बदले स्वर्ग में जाओ जो तुम कर रहे थे।” (सूरह नहूलः 32)
तथा अत्याचारियों और काफिरों को कब्र में यातनायें दी जायेंगी।
“यदि आप अत्याचारियों को मौत की घोर यातना में देखेंगे जब यमदूत अपने हाथ लपकाये होते हैं कि अपने प्राण निकालो, आज तुम्हें अल्लाह पर अनुचित आरोप लगाने तथा अभिमान पूर्वक उसकी आयतों का इन्कार करने के कारण अपमानकारी प्रतिकार दिया जायेगा ।” (सूरह अनआमः 93)
तथा इस संबंध में बहुत सारी हदीसें भी प्रसिद्ध हैं, इसलिए ईमानवालों पर अनिवार्य है कि उन परोक्ष की बातों से संबंधी
जो कुछ किताब व सुन्नत में उल्लेख है उस पर बिना किसी आपत्ति अभियोग के ईमान ले आयें, तथा संसार के दृश्यों पर उनका गुमान करके विरोध न फैलायें, क्योंकि आख़िरत के कर्मों का सँसारिक कार्यों से तुलना करना उचित नहीं, इसलिए कि दोनों के बीच बड़ा अन्तर है।
7.भाग्य पर ईमान
हम भाग्य के अच्छे एवं बुरे होने पर ईमान रखतें हैं जो विश्व के संबंध में ज्ञान तथा हिक्मत के अनुसार अल्लाह तआला का निधीरण है।
भाग्य के चार मरतबे (दर्जे) हैं:
1- इल्म (ज्ञान)
हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला हर चीज के संबंध में जो कुछ हो चुका है और जो कुछ होने वाला है और किस प्रकार होगा, सब कुछ अपने अनादिकाल एवं सर्वकालिक ज्ञान के द्वारा जानता है। उसका ज्ञान नया नहीं है जो अज्ञता के बाद प्राप्त होता है और न ही उसे ज्ञान के बाद भूल-चूक होती है, अ्थात न उसके ज्ञान का कोई आरम्भ है और न ही अंत।
२- किताबत (लिपिन्यास):
हमारा ईमान है कि कियामत तक जो कुछ होने वाला है अल्लाह तआला ने उसे लौहे महफूज़ में लिपिबद्ध कर रखा है।
“क्या आपने नहीं जाना कि आकाश तथा धरती की प्रत्येक वस्तु अल्लाह के ज्ञान में है। यह सब लिखी हुई किताब में सुरक्षित है। अल्लाह के लिए यह कार्य अत्यन्त सरल है।” (सूरह हज्ज: 70)
३- मशीअत (इश्वरेच्छा)
हमारा ईमान है कि जो कुछ आकाशों एवं धरती में है सब अल्लाह की इच्छा से हुई है। कोई वस्तु उसकी इच्छा के बिना नहीं होती। अल्लाह तआला जो चाहता है वह हो जाता है और जो नहीं चाहता वह नहीं होता है।
४- ख़ल्क (रचना):
हमारा ईमान है कि
“अल्लाह समस्त वस्तुओं का रचयिता है, तथा वही प्रत्येक वस्तु का संरक्षक है। आकाशों तथा धरती की चाभियी का वही स्वामी है।” (सूरह जुमरः 62-63)
भाग्य के इन चारों दर्जे में वह सब कुछ आ जाता है जो स्वयं अल्लाह की ओर से होता है तथा जो बन्दों की ओर से होता है। अतः बन्दे जो अंजाम देते हैं चाहे वह कथनात्मक हो या कमीत्मक हो या वर्जात्मक हो, वह सब अल्लाह के ज्ञान में
है एवं उसके पास लिपिबद्ध है, अल्लाह तआला ने उन्हें चाहा तथा उसने उनका रचना किया।
“(विशेष रूप से) उसके लिए जो तुम में से सीधे मार्ग पर चलना चाहे। तथा तुम बिना समस्त जगत के प्रभु के चाहे कुछ नहीं चाह सकते |” (सूरह तकवीरः 28-29)
“और यदि अल्लाह तआला चाहता तो यह लोग आपस में न लड़ते किन्तु अल्लाह जो चाहता है करता है।” (सूरह बकरहः 253)
“और अगर अल्लाह चाहता तो वे ऐसा नहीं करते, इसलिए आप उनको तथा उनके मनगढंत को छोड़ दीजिए।” (सूरह अनआमः 137)
“हालांकि तुमको और जो तुम करते हो उसको अल्लाह ही ने पैदा किया है।” (सूरह साफ़्फातः 96)
लेकिन इसके साथ साथ हमारा यह ईमान भी है कि अल्लाह तआला ने बन्दों को इख्तियार तथा शक्ति दिया है जिनके आधार पर ही कर्म संघटित होता है।
नीचे उल्लेख किये गये विषय इस बात की दलील हैं कि बन्दे का कर्म उसके अपने इख्तियार तथा शक्ति के आधार पर संघटित होता हैः
१- अल्लाह तआला का फरमानः
“अपनी खेतियों में जिस प्रकार चाहो आओ।” (सूरह बक़रह: 223)
और उसका फरमानः
“और अगर वह निकलना चाहते तो उसके लिए संसाधन की तैयारी करते।” (सूरह तौबा: 46)
अल्लाह तआला ने (पहली आयत में) “आने” को (और दूसरी आयत में) तैयारी” को बन्दे के इच्छाधीन साबित किया।
२- बन्दे को आदेश-निषेध का निर्देशना। अगर बन्दे को इख्तियार तथा शक्ति न होती तो आदेश-निषेध का निर्देशना उन भारों में से शुमार किया जाता जो ताकृत से बाहर हो, जबकि अल्लाह तआला की हिक्मत व रहमत तथा उसकी सत्य वाणी इसका खण्डन करती है। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“अल्लाह किसी व्यक्ति को उसकी शक्ति से अधिक भार नहीं देता ।” (सूरह बक़रह: 286)
३- सदाचार करने वाले की उसकी सदाचारी पर प्रशंसा एवं दुराचार करने वाले की उसकी दुराचारी पर निंदा तथा उन दोनों में से प्रत्येक को बदला देना जिसके वह योग्य हैं। यदि बन्दे का कर्म उसके इख्तियार तथा इच्छा से न होता तो सदाचारी की प्रशंसा करना निरर्थ होता एवं दुराचारी को सज़ा देना अत्याचार होता, और अल्लाह तआला निरर्थ कामों एवं अत्याचार से पवित्र है।
४- अल्लाह तआला का रसुलों को भेजना।
“(हमने इन्हें) शुभसूचक एवं सचेतकर्ता रसूल बनाया, ताकि लोगों को कोई बहाना तथा अभियोग रसूलों को भेजने के पश्चात अल्लाह पर न रह जाये |” (सूरह निसाः 165)
अगर बन्दे का कर्म उसके इख़्तियार एवं इच्छा से न होता तो रसूल के भेजने से उसका बहाना तथा अभियोग बातिल न होता।
५- हर काम करने वाला व्यक्ति काम करते या छोड़ते समय अपने आपको हर प्रकार कठिनाईयों से मुक्त पाता है। वह केवल अपने इरादा से उठता-बैठता, आता-जाता तथा यात्रा एवं ठहराव करता है, उसे यह अनुभव नहीं होता कि कोई उसे इस पर विवश कर रहा है। बल्कि वह इन कामों में जो उसके इख्तियार से या किसी के विवश करने से करता है वास्तविक अंतर कर लेता है। इसी तरह शरीअत ने इन दोनों अवस्था के दर्मियान हुक्मी अंतर किया है। अतः मनुष्य अल्लाह के अधिकार संबंधी जो कार्य है उसे विवश होकर कर जाये तो उस पर कोई पकड़ नहीं है।
हमारा अकीदा है कि पापियों को अपने पाप पर भाग्य से हुज्जत पकड़ने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह अपने इख्तियार से पाप करता है और उसे इसके संबंध में कोई ज्ञान नहीं होता कि अल्लाह तआला ने उसके भाग्य में यही लिख रखा है, क्योंकि किसी कार्य के होने से पूर्व अल्लाह तआला ने जो भाग्य में लिख रखा है उसको कोई जान नहीं सकता।
“कोई भी नहीं जानता कि वह कल क्या कमायेगा।” (सूरह लुकमान: 34)
जब मनुष्य कोई कृदम उठाते समय इस हुज्जत को जानता ही नहीं तो फिर सफाई देते समय उसका इससे हुज्जत पकड़ना कैसे सही हो सकता है? अल्लाह तआला ने इस हुज्जत को बातिल ठहराते हुये फरमायाः
“जो लोग शिर्क करते हैं वह कहेंगे कि यदि अल्लाह चाहता तो हम तथा हमारे पूर्वज शिर्क नहीं करते और न हम किसी चीज को हराम ठहराते। इसी प्रकार उन लोगों ने झुठलाया जो उनसे पहले थे यहाँ तक कि हमारे प्रकोप (अज़ाब) का मज़ा चख कर रहे। कह दो क्या तुम्हारे पास कोई ज्ञान है तो उसे हमारे लिए निकालो (व्यक्त करो)। तुम कल्पना का अनुसरण करते हो तथा मात्र अनुमान लगाते हो।” (सूरह अनआमः 148)
तथा हम भाग्य को आधार बनाकर पेश करने वाले पापियों से कहेंगे: आप पुण्य का काम तथा आज्ञापालन क्यों नहीं करते, यह मानते हुये कि अल्लाह तआला ने आपके भाग्य में यही लिखा है। अज्ञानता में कार्य के होने से पहले पाप एवं आज्ञापालन में इस आधार पर कोई अंतर नहीं है। इसीलिए जब नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सहाबा किराम (रिज़वानुल्लाहि अलैहिम् अजमईन) को यह सूचना दी कि तुम में हरेक का ठिकाना स्वर्ग या नरक में तय कर दिया गया है तो उन्होंने निवेदन किया कि क्या हम कर्म करने को छोड़कर उसी पर भरोसा न करें? आप ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः नहीं, तुम अमल करो, क्योंकि जिसको जिस ठिकाने के लिए जन्म दिया गया है उसी के कर्मों के करने का सामर्थ्य उसे दिया जाता है।
तथा अपने पापों पर भाग्य से हुज्जत पकड़ने वालों से कहेंगे: यदि आपका इरादा मक्का की यात्रा का हो, तथा उसके दो मार्ग हों, और आपको कोई विश्वासी व्यक्ति यह ख़बर दे कि उनमें से एक मार्ग बहुत ही भयंकर एवं कष्टदायक है तथा दूसरा बहुत ही सरल एवं शान्तिपूर्ण है, तो आप निश्चय दुसरा ही मार्ग अपनायेंगें। और यह असंभव है कि आप पहले वाले भयंकर मार्ग पर चल निकलें यह कहते हुये कि मेरे भाग्य में यही लिखा है। और अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी गिनती दीवानों में होगी।
और हम उनसे यह भी कहेंगे किः यदि आपको दो नौकरियों का प्रस्ताव दिया जाये, उनमें से एक का वेतन अधिक हो तो आप कम वेतन वाली नौकरी के बजाय अधिक वेतन वाली नौकरी को करने के लिए तैयार होंगे, तो फिर परलौकिक कर्म के संबंध में आप अपने लिए क्यों साधारण मजदूरी को अपनाते हैं और फिर भाग्य का दोहाई देते हैं।
और हम उनसे यह भी कहेंगे किः जब आप किसी शारीरिक रोग में ग्रस्त होते हैं तो अपने उपचार के लिए हर डाक्टर का दरवाज़ा खटखटाते हैं और आपरेशन की पीड़ा एव कड़वी दवा पूरे बैर्य के साथ सहन करते हैं, तो फिर आप अपने दिल पर पापों के रोग के हमले की सूरत में ऐसा क्यों नहीं करते। हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला की अशेष कृपा एवं हिक्मत के चलते बुराई का संबंध उसकी ओर जोड़ा नहीं जाता। नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः
“तथा बुराई तेरी ओर संबंधित नहीं है” (मुस्लिम)
अल्लाह तआला के आदेशों में स्वयं कभी बुराई नहीं हो सकती, क्योंकि वह उसकी कृपा एवं हिक्मत से जारी होते हैं। बल्कि उसके तकाजों (उद्देश्य) में अनिष्ट होता है जो बन्दों से घटित होते हैं। नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हसन (रज़ियल्लाहु अन्हु) को दुआये कुनूत की शिक्षा देते हुये इरशाद फरमायाः
“मुझे अपनी निर्णीत चीज़ों के अनिष्ट से सूरक्षित रख”
इसमें अनिष्ट का संबंध अल्लाह के तकाज़ों के ओर किया। तथापि (इसके बावजूद) तकाज़ों में सिर्फ बुराई ही नहीं है, बल्कि वह अपनी जगह एक आधार से बुराई है तो दूसरे आधार से उपकार, अथवा अपने स्थान पर अनिष्ट है तो दूसरे स्थान पर उपकार है। जैसे अकाल, बीमारी, फकीरी तथा भय आदि बुराई हैं, परन्तु दूसरे स्थानों में भलाई तथा उपकार हैं। अल्लाह तआला ने फरमायाः
“जल और थल में लोगों के कुकर्मों के कारण फूसाद फैल गया, इसलिए कि उन्हें उनके कुछ करतूतों का फल अल्लाह तआला चखा दे, (बहुत) मुम्किन है कि वह रुक जायें।” (सूरह रूमः 41)
तथा चोर का हाथ काटना एवं बियाहता व्यभिचारी को रजम (संगसार]) करना, चोर और व्यभिचारी के लिए तो अनिष्ट है क्योंकि एक का हाथ नष्ट होता है एवं दूसरे की जान जाती है। परन्तु दूसरे आधार से यह उनके लिए उपकार है कि इससे पापों का निवारण होता है। और अल्लाह तआला उनके लिए लोक-परलोक की सज़ा इकट्ठा नहीं करेगा। तथा दूसरे स्थान पर यह इस आधार से भी उपकार है कि इससे लोगों की सम्पत्तियों, प्रतिष्ठाओं एवं गोत्रों की रक्षा होती है।
8.अकीदा के लाभ एवं प्रतिकार
इन महान नियमों पर आधारित यह उच्च अकीदा अपने मानने वालों के लिए अति श्रेष्ठ प्रतिफल एवं परिणामों का वाहक है।
अल्लाह तआला पर ईमान के लाभ एवं प्रतिकारः
अल्लाह तआला की जात तथा उसके नामों और गुणों पर ईमान से बन्दे के दिलों में उसकी महब्बत एवं उसकी ताज़ीम उत्पन्न होता है, जिसके परिणाम में वह उसके आदेशों के पालन के लिए तैयार रहता है तथा निषिद्ध चीज़ों से सतर्कता बरतता है। और अल्लाह तआला के आदेशों का पालन करने तथा निषिद्ध कार्यों से सतर्कता बरतने से लोक-परलोक में व्यक्ति तथा समाज के लिए पूर्ण कल्याण प्राप्त होती है।
“जो पुण्य का कार्य करे नर हो अथवा नारी, और वह ईमान वाला हो तो हम उसे निःसंदेह सर्वोत्तम जीवन प्रदान करेंगे तथा उनके पुण्य के कार्यों का उत्तम बदला भी उन्हें अवश्य देंगे।” (सूरह नहूलः 97)
फरिश्तों पर ईमान के लाभ एवं प्रतिकारः
1- उनके ख्रष्टा की महानता, शक्ति एवं आधिपत्य का ज्ञान।
2- अल्लाह तआला की अपने बन्दों के साथ विशेष कृपा पर उसका शुक्र अदा करना, क्योंकि उसने उन फरिश्तों में से कुछ को बन्दों पर स्थापित कर रखा है जो उनकी रक्षा करते हैं
तथा उनके कर्मों को लिखते हैं। इसके अतिरिक्त और भी जिम्मेदारियाँ उनके ऊपर हैं।
3- फरिश्तों से महब्बत करना इस बिना पर कि वह यथोचित रूप से अल्लाह की उपासना करते हैं तथा मोमिनों के लिए इस्तिगफार (क्षमा प्रार्थना) करते हैं।
किताबों पर ईमान के लाभ एवं प्रतिकारः
1- सृष्टि पर अल्लाह तआला की कृपा एवं मेहरबानी का ज्ञान, क्योंकि उसने हर कौम के लिए वह किताब उतारी जो उन्हें सत्य मार्ग की ओर मार्गदर्शन करती है।
2- अल्लाह तआला की हिक््मत का प्रकटन, क्योंकि उसने इन किताबों में हर उम्मत के लिए वह शरीअत निधारण की जो उनके लिए मुनासिब थी। इन किताबों में अंतिम किताब पवित्र कुरआन है जो कियामत तक तमाम सृष्टि के लिए प्रत्येक युग तथा प्रत्येक स्थान में मुनासिब है।
3- इस पर अल्लाह तआला की नेअमत का शुक्र अदा करना।
रसूलों पर ईमान के लाभ एवं प्रतिकारः
1- अल्लाह तआला का अपने सृष्टि पर कृपा एवं दया का ज्ञान, क्योंकि उसने इन रसूलों को उनके पास उनके मार्गदर्शन तथा उनके निर्देशना के लिए भेजा।
2- अल्लाह तआला की इस महाकृपा पर उसकी आभारिता।
3- रसूलों से महब्बत, उनका श्रद्धा और उनकी ऐसी प्रशंसा करना जिसके वह योग्य हैं। क्योंकि वह अल्लाह के रसूल हैं और उसके ख़ालिस बन्दे हैं, जिन्होंने अल्लाह तआला की इबादत करने, उसके संदेश को पहुँचाने और उसके बन्दों को नसीहत करने के कर्तव्य को निभाया तथा दअवत के रास्ते में आने वाले दुखों एवं कष्टों पर बैर्य का प्रदर्शन किया।
आख़िरत पर ईमान के लाभ एवं प्रतिकार:
1- उस दिन के प्रतिदान की उम्मीद रखते हुए अल्लाह तआला की आज्ञापालन पर आग्रही (हरीस) बनना एवं उस दिन की सजा से डरते हुए उसकी अवज्ञा से दूर रहना।
2- मोमिन के लिए सांत्वना का कारण है दुनिया की उन नेअमतों से एवं उसके उन उपकरणों से जो उसे प्राप्त नहीं हो पाती, क्योंकि उसे परलोकिक नेअमतों तथा प्रतिदानों की आशा रहती है।
भाग्य पर ईमान के लाभ एवं प्रतिकारः
1- साधन करते समय अल्लाह तआला पर भरोसा करना, क्योंकि साधन तथा परिणाम दोनों अल्लाह तआला के फैसले तथा उसकी इच्छा पर निर्भरित हैं।
2- आत्मा की राहत तथा दिल की शान्ति, क्योंकि बन्दा जब जान ले कि यह अल्लाह तआला के फैसले से हुआ है तथा अप्रिय विषय निश्चय संघटित होने वाला है, तब आत्मा को राहत, दिल को शान्ति मिल जाती है एवं वह प्रभु के फैसले से संतुष्ट हो जाता है। और जो व्यक्ति भाग्य पर ईमान लाता है उससे बढ़कर सुखप्रद जीवन तथा सुकून व चैन किसी को प्राप्त नहीं होती।
3- उद्देश्य प्राप्त होने पर आत्मगर्व न करना, क्योंकि इसकी प्राप्त अल्लाह तआला की ओर से नेअमत है जिसे उसने सफलता तथा कल्याण के साधनों में से बनाया है। अतः इस पर अल्लाह का शुक बजा लाता है एवं गर्व को वर्जन करता है।
४- उद्देश्य के फौत होने पर या अप्रिय वस्तु की प्राप्ति पर बेचैनी से छुटकारा, क्योंकि वह उस अल्लाह का निर्णय है जो आकाशों एवं धरती का स्वामी है, तथा वह हर अवस्था में होकर रहेगा। अतः वह इस पर सब्र करता है एवं नेकी की उम्मीद रखता है। अल्लाह तआला इसी ओर संकेत करते हुये फरमाता हैः
“न कोई कठिनाई (संकट) संसार में आती है न (ख़ास) तुम्हारी जानों में, मगर इससे पूर्व कि हम उसको पैदा करें वह एक ख़ास किताब में लिखी हुई है। निःसंदेह यह (कार्य) अल्लाह पर (बिल्कुल) आसान है। ताकि तुम अपने से छिन जाने वाली वस्तु पर दुखी न हो जाया करो न प्रदान की हुई वस्तु पर गर्व करने लगो, तथा गर्व करने वाले अहंकारियों को अल्लाह पसंद नहीं फरमाता |” (सूरह हदीदः 22-23)
अंत में हम अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि वह हमें इस अकीदा पर दृढ़ प्रतिज्ञा वाला बनाये रखे, उसके लाभों से भाग्यशील बनाये, अपने अनुकम्पाओं से सम्मानित करे, हिदायत के बाद हमारे दिलों को टेढ़े न करे और अपने पास से हमें कृपा प्रदान करे, निःसंदेह वह परम दाता है। सारी प्रशंसा जगत के प्रभु अल्लाह के लिए हैं।
आल्लाह तआला की कृपा नाजिल हमारे नबी मुहम्मद (ﷺ) पर, उनके परिवार-परिजन पर, उनके अस्हाब (साथियों) पर और भलाई के साथ उनके अनुयाईयों पर।
स्रोत– शैख़ मुहम्मद बिन सालेह अल-ओसैमीन (रहेमहुल्ताह) की किताब अहले सुन्नत वल-जमाअत का अकीदा