मसनून् अज़कार -सूबह और शाम की दुआएँ

Question

ये वो दुआए है जिन्हें हमे रोज़ सुबह शाम पढ़ना चाहिए। पाबन्दी से |
सुबह यानि फ़ज् की नमाज़ के बाद और शाम यानि अस्र की नमाज़ के बाद के ज़िक्र अज़्कार क्योंकि मग़रिब बाद रात हो जाती है। और इसकी वजाहत अबू दाउद हदीस नं.3667 में है की फज्र से सूरज निकलने तक का और अस्र से गुरूब होने तक अल्लाह के ज़िक्र की फज़ीलत आयी है।

1) तीन बार सुबह और तीन बार शाम “सूरह इख़्लास”

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ
اللَّهُ الصَّمَدُ
لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ
وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُوًا أَحَدٌ

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम०
कुल्‌ हुवल्लाहु अहद० अल्लाहुस-समद्‌० लम्‌ यलिद्‌ व लम्‌ यूलद्‌० व लम्‌ यकुल्लहू कुफुवन्‌ अहद्‌०
तर्जुमा: (आप)कह दीजिए कि वह अल्लाह एक है। अल्लाह बे नियाज़ है। उस की न कोई औलाद है और न वह किसी
की औलाद है। और न कोई उस की बराबरी का है। (कुरआन, सूरह- 112) फ़ज़ीलत: एक तिहाई कुरआन पढ़ने के बराबर सवाब (सहीह बुखारी, हदीस- 5015)

2.)तीन बार सुबह और तीन बार शाम “सूरह फ़लक़”
1. بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ
2. مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ
3. وَمِنْ شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ
4. وَمِنْ شَرِّ النَّفَّاثَاتِ فِي الْعُقَدِ
5. وَمِنْ شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम०
1. कुल् अऊजु बिरब्बिल फलक 2. मिन् शररि मा ख़लक़ 3. वमिन् शररि ग़ासिकिन इज़ा वकब 4. वमिन् शररिन नफ़्फ़ासाति फ़िल उक़द 5. वमिन् शररि हासिदिन इज़ा हसद

तर्जुमा: (आप) कह दीजिए मैं पनाह माँगता हूँ सुबह के रब की, हर उस चीज़ की बुराई से जो उस ने पैदा की और अन्धैरे की बुराई से जब वह छा जाए। और गिरोहों पर पढ़-पढ़ कर फूँकने वालियों की बुराई से, और हसद करने वालों की बुराई से जब वह हसद करें। (कुरआन: 113) फ़ज़ीलत-अल्लाह की पनाह में आ जाते हैं, मख्लूक़ के शर, शैतान, जिन्नात, नज़रे बद, हसद, जादू, से बचाओ (तिर्मिज़ी, हदीस- 2058)

3) तीन बार सुबह और तीन बार शाम “सूरह नास”
1. بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ
2. مَلِكِ النَّاسِ
3. إِلَٰهِ النَّاسِ
4. مِنْ شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ
5. الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ
6. مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ❶ कुल अऊजु बिरब्बिन्नास ❷ मलिकिन्नास ❸ इलाहिन्नास ❹ मिन् शर्रिल् वसवा सिल् खन्नास ❺ अल्लज़ी युवस् विसु फी सुदूरिन्नास ❻ मिनल जिन्नति वन्नास

तर्जुमा: (आप) कह दीजिए मैं पनाह माँगता हूँ इन्सानों के रब की, इन्सानों के हक़ीक़ी बादशाह की, इन्सानों के मअबूद की, वस्वसे (यानि बुरे ख्याल) डालने वाले (शैतान से जो आँखों से ओझल है उसकी) बुराई (शर) से, जो लोगों के दिलों में वस्वसे
डालता है, (चाहे वह) जिन्‍मों में से हो और (चाहे) इन्सानों में से हो। (कुरआन:114) फ़ज़ीलत- वही जो सूरह फ़लक़ की है।

4) एक बार सुबह और एक बार शाम “आयतुलत्र कर्सी”
ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلْحَىُّ ٱلْقَيُّومُ ۚ لَا تَأْخُذُهُۥ سِنَةٌۭ وَلَا نَوْمٌۭ ۚ لَّهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۗ مَن ذَا ٱلَّذِى يَشْفَعُ عِندَهُۥٓ إِلَّا بِإِذْنِهِۦ ۚ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَىْءٍۢ مِّنْ عِلْمِهِۦٓ إِلَّا بِمَا شَآءَ ۚ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ ۖ وَلَا يَـُٔودُهُۥ حِفْظُهُمَا ۚ وَهُوَ ٱلْعَلِىُّ ٱلْعَظِيمُ

“अल्लाहु ला इलाहा इल्लाहू अल हय्युल क़य्यूम ला तअ’खुज़ुहू सिनतुव वला नौम् लहू मा फिस सामावाति वमा फ़िल अर्ज़ मन् ज़ल लज़ी यश फ़ऊ इन्दहू इल्ला बि इज़निह यअलमु मा बैना अयदीहिम वमा खल्फहुम वला युहीतूना बिशय इम मिन इल्मिही इल्ला बिमा शा..अ वसिअ कुरसिय्यु हुस समावति वल अर्ज़ वला यऊ दुहू हिफ्ज़ुहुमा वहुवल अलिय्युल अज़ीम”

तर्जुमा: अल्लाह (वह है कि) उसके सिवा कोई इबादत के लायक नहीं, वह हमेशा ज़िन्दा और हमेशा क़ायम रहने वाला है, उसे न ऊँघ आती है न नींद, उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है, कौन है जो उसके सामने बिना उसकी इजाज़त के (किसी की) सिफ़ारिश कर सके, जो कुछ लोगों के सामने है और जो कुछ पीछे हो चूका है वह सब जानता है, और लोग उसके इल्म में से किसी चीज़ पर पहुँच नहीं रखते मगर जितना वह खुद चाहे, उसकी कुर्सी छाई हुई है आसमानों और ज़मीन पर, और इनकी हिफाज़त उसके लिए कुछ भी भारी नहीं होती, और वह बड़ी अज़मत वाला (महान) है। (कुरआन 2:255)

फ़ज़ीलत: 1.जो सुबह पढ़े तो शाम तक और शाम को पढ़े तो सुबह तक शैतान से महफूज़ रहेगा। (नसाई. हदीस- 960) 2.हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ना जन्नत में दाखिले का जरिया। (सही अलतार्गीब 1595)

5) तीन बार सुबह और तीन बार शाम
رَضِيتُ بِاللَّهِ رَبًّا وَبِالإِسْلاَمِ دِينًا وَبِمُحَمَّدٍ نَبِيًّا

“रज़ीतु बिल्‍लाहि रब्बंव्‌ वबिल्‌ इस्लामि दीनंव्‌ वबिमुहम्मदिन्‌ (सल्लललाहु अलैहि वसललम) नबिय्या०
तर्जुमाः “में राज़ी हूँ अल्लाह के रब होने पर, और इस्ल्राम के दीन होने पर, और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्‍लम) के नबी होने पर।|

फ़ज़ीलत– अल्लाह कयामत के दिन राज़ी होगा। (मुसनद अहमद 3388)

6) तीन बार सुबह और तीन बार शाम
بسم الله الذي لا يضر مع اسمه شيء في الأرض ولا في السماء وهو السميع العليم

“बिस्मिल्लाहिल्लज़ी ला यजुर्रू मअ्इस्मिही शैउन्‌ फ़िल-अर्ज़ि व ला फ़िस्समाइ व हु-वस्समीअुल्-अलीम०”
तर्जुमा: उस अल्लाह के नाम से शुरू करता हूँ जिसके नाम की वजह से आसमान और ज़मीन में कोई चीज़ नुकसान नहीं पहुँचा सकती, और वह खूब सुनने वाला खूब जानने वाला है।

फ़ज़ीलत– पढ़ने वाले को कोई चीज़ नुक़सान नहीं पहुँचा सकेगी। (अबू दाऊद 5088, तिरमिज़ी 3388)

7) सात बार सुबह और सात बार शाम
حَسْبِـيَ اللّهُ لا إلهَ إلاّ هُوَ عَلَـيهِ تَوَكَّـلتُ وَهُوَ رَبُّ العَرْشِ العَظـيم

“हिस्बयल्लाहु ला इला-ह इल्ला हु-व अलैहि तवक्कल्तु व हु-व रब्बुल-अर्शिल् अज़ीम०

तर्जुमा: मुझे अल्लाह ही काफी है, उसके सिवा कोई सच्चा मअबूद नहीं, उसी पर मैं ने भरोसा किया, और वह अर्श अज़ीम का रब है।”

फ़ज़ीलत– पढ़ने वाले को दुनियाबी और आख़िरत की फ़िक्रों में उसे अल्लाह काफ़ी होगा। (अबू दाऊद, हदीस- 5081)

8) तीन बार सुबह
سبحان الله وبحمده عدد خلقه، ورضا نفسه، وزنة عرشه، ومداد كلماته‏

“सुब्हानल्लाहि व बिहिम्दिही अ-द-द ख़ल्क़िही व रिज़ा नफ़्सिही, व ज़ि-न-त अर्शिही व मिदा-द कलिमातिही०

तर्जुमा: अल्लाह अपनी तअरीफ़ों समेत पाक है अपनी मख़त्ूक़ की तादाद के बराबर, अपने नफ़्स की रजामंदी के बराबर,

अपने अर्श के वज़न और अपने कलिमात की रोशनाई के बराबर। (मुस्लिम, हदीस-2726)

9) तीन बार सुबह और तीन बार शाम
أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّاتِ مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ

अऊज़ु बिकलिमातिल्लाहित्‌-ताम्माति मिन्‌ शर्रि मा ख़-लक़०

तर्जुमा: मैं अल्लाह के पूरे कलमात की हिफाज़त में आता हूँ उस की मख़्लूक की बुराई (शर) से। फ़ज़ीलत- जहरीले जानवर का काटना नुकसान नहीं पहुँचायेगा। (मुस्लिम, हदीस- 2709)

10) दस बार सुबह और दस बार शाम
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ، اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا بَارَكْتَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ ‏

” अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लैता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्नक हमीदुम मजीद, अल्लाहुम्म बारिक अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक्ता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्नक हमीदुम मजीद।

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! रहमत फरमा मुहम्मद (ﷺ) पर और मुहम्मद (ﷺ) की आल (घरवालों) पर जैसा के तूने रहमत फरमाई इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर और इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आल पर बेशक तू तारीफ के लाइक बुजुर्गीवाला है।
ऐ अल्लाह ! बरकत नाज़िल फरमा ( उतार) मुहम्मद (ﷺ) पर और मुहम्मद (ﷺ) की आल पर जैसा के तूने बरकत नाज़िल फरमाई इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर और इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आल पर बेशक तू तारीफ के लाइक बुजुर्गीवाला है।

फ़ज़ीलत-1.क़यामत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्म की सिफारिश नसीब होगी। (सही जामेअस्सगीर, हदीस-6357)

2. एक बार दरूद शरीफ़ पढ़ने वाले पर अल्लाह दस रहमतें नाज़िल करता है, दस गुनाह माफ़ करता है, और दस दर्जे बुलंद हो जाते हैं।(नसाई, हदीस-1297) और भी बहुत सारी फ़जीलतें हैं।

11) दस बार सुबह और दस बार शाम  

لا إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ، وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهْوَ عَلَى كُلِّ شَىْءٍ قَدِيرٌ‏.‏

“ला इला-ह इल्त्ललाहु वह-दहु ला शरी-क लहू लहुल-मुल्कु व लहुल-हम्दु व हु-व अला कुल्लि शैईन्‌ क़दीर०”

तर्जमा : अल्लाह के सिवा कोई सच्चा मअबूद नहीं, वह अकेला (यकता) है, उसका कोई शरीक नहीं, उस की बादशाहत और उसी की ही तारीफ़ है और वह हर चीज़ पर पूरी कुदरत रखता है।

फ़ज़ीलत- 1.दिन भर शैतान से हिफाज़त रहेगी। 2.दस गर्दनें आज़ाद करने के बराबर सवाब है। 3.100 नेकियाँ बेढेंगी नामे आमाल में। 4.100 गुनाह माफ़। 5.कोई शख्स इसके अमल से बेहतर अमल नहीं लायेगा अल्बत्ता वह शख्स जिसने उससे
ज्यादा अमत्र किया (बुखारी, हदसी- 6403)

12) एक बार सबह और एक बार रात
“اللَّهُمَّ أَنْتَ رَبِّي، لاَ إِلَهَ إِلاَّ أَنْتَ، خَلَقْتَنِي وَأَنَا عَبْدُكَ، وَأَنَا عَلَى عَهْدِكَ وَوَعْدِكَ مَا اسْتَطَعْتُ، أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا صَنَعْتُ، أَبُوءُ لَكَ بِنِعْمَتِكَ عَلَىَّ وَأَبُوءُ لَكَ بِذَنْبِي، فَاغْفِرْ لِي، فَإِنَّهُ لاَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلاَّ أَنْتَ

“अल्लाहुम्म अन्-त रब्बी ला इला-ह इल्ला अन-त ख़लक़्तनी व अना अब्दु-क व अना अला अहदि-क व वअ्दि-क
मस त-तअ्तु अअुजुबि-क मिन्‌ शर्रि मा सनअतु अबूउ ल-क बिनिअ्मति-क अलयू-य व अबूउ बिज़म्बी फ़गि्फ़िर्ली फ़इन्नहू ला यग़्फिरूज़्जुनू-ब इल्ला अन्‌-त०

तर्जुमा: ऐ अल्लाह! तू मेरा रब है, तेरे सिवा कोई सच्चा मअबूद नहीं, तूने मुझे पैदा किया और मैं तेरा बन्दा हूँ, और मैं अपनी ताक़त भर तेरे अहद और वादे पर क़ायम हूँ। अपनी की हुई बुराई से तेरी हिफ़ाज़त में आता हूँ। मैं अपने ऊपर तेरे इनाम का इक़रार करता हूँ और मैं अपने गुनाह का इक़रार करता हूँ, इसलियए तू मुझे माफ़ कर दे। क्योंकि तेरे सिवा कोई भी गुनाह माफ़ नहीं कर सकता। फ़ज़ीलत- शाम से पलहे मर गया तो जन्नत में जायेगा और रात में मर गया तो जन्नत में जायेगा। (बुखारी.हदीस-6306)

13) एक बार सुबह और एक बार शाम (फज्र की नमाज़ के बाद भी एक बार)
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ عِلْمًا نَافِعًا، وَرِزْقًا طَيِّبًا، وَعَمَلاً مُتَقَبَّلاً

“अल्लाहुम्म इन्नी असअलु-क इल्मन्‌-नाफ़िअंव्‌- व रिज़्क़न्‌ तय्यिबंव- व-अ-मल-मु-त-कब्ब्ला०
तर्जुमा: ऐ अल्लाह! मैं तुझसे मांगता हूँ नफ़ा देने वाल्रा इल्‍्म, औए पाकीज़ा रिज़्क, और कबूल होने वाला अमल। (इब्ने माज़ा,हदीस-925)

14) सबह या शाम 4 बार (शाम को अस्बहत्‌ की जगह अम्सैत पढ़ें)

اللّهُـمَّ إِنِّـي أَصْبَـحْتُ أَُشْـهِدُك ، وَأُشْـهِدُ حَمَلَـةَ عَـرْشِـك ، وَمَلائِكَتِك ، وَجَمـيعَ خَلْـقِك ، أَنَّـكَ أَنْـتَ اللهُ لا إلهَ إلاّ أَنْـتَ وَحْـدَكَ لا شَريكَ لَـك ، وَأَنَّ ُ مُحَمّـداً عَبْـدُكَ وَرَسـولُـك .

“अल्लाहुम-म इन्नी अस्बहतु (अम्सैतु) उश्हिदु-क व उश्हिदु ह-म-ल-त अर्शि-क मल्राइ-क-ति-क व जमी-अ ख़ल्क़ि-क अन न-क अन्‌त अल्लाहू ला इला-ह इल्ला अन्‌-त वहद-क ला शरी-क ल-क व अन्‌-न मुहम्मदन्‌ अब्दु-क व रसूलु-क०

तर्जुमा: ऐ अल्लाह! यक़ीनन मैँ ने इस हालत में सुबह (शाम) की कि तुझे गवाह बनाता हूँ और तेरा अर्श उठाने वालों और तेरे फ़रिश्तों और तेरी मख़्लूक़ को इस बात पर गवाह बनाता हूँ की तू ही अल्लाह है, तेरे सिवा कोई सच्चा मअ्बूद नहीं, तू अकेला (यकता) है, तेरा कोई शरीक नहीं। और बेशक मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्‍लम) तेरे बन्दे और तेरे रसूल हैं। फ़ज़ीलतः जो एक बार पढ़ेगा अल्लाह उसके जिस्म का एक चौंथाई हिस्से को जहन्नम से आज़ाद कर देगा और जो दो बार पढेगा उसका आधा हिस्सा और जो तीन बार पढ़ेगा तीन चौंथाई और जो चार बार पढ़ेगा उसके पूरे जिस्म को अल्लाह जहन्नम से आज़ाद कर देगा। (अबू दाउद, हदीस- 4/335)

सुबह और शाम को रसूलुल्लाह सलल्लाहू अलैहि वसल्‍लम पर 10 बार दुरुद भेजने की फ़ज़ीलत

रसूलुल्लाह सलल्लाहू अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया जो शख्स मुझ पर सुबह 10 बार और शाम को 10 बार दुरुद भेजेगा तो उसको क़यामत के दिन मेरी शफाअत हासिल होगी (सहीह अल-जामे,हदीस-6357-हसन) सही अल तरगीब व अल तरहीब, हदीस-659-हसन)

 ऐबो को छुपाने की दुआ

रसूलुल्लाह सलल्लाहू अलैहि वसल्‍लम ने सुबह और शाम को इस दुआ को पढ़ना कभी नही छोड़ा

اللَّهُمَّ اسْتُرْ عَوْرَاتِي وَآمِنْ رَوْعَاتِي

अल्लाहुम्मास्तुर औराती, वा आमीन रौआती

एह अल्लाह मेरे ऐबों को छुपा दे और मेरे दिल को मुतमईन कर दे (सुनन अबू दाऊद,जिल्द-3, हदीस- 1637-सही)

 

 

 

 

 

 

 

 

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