अल्लाह कहाँ है ?
अल्लाह तआला कहाँ है ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।
क़ुरआन करीम से दलाइल
सिफात के बयान में क़ुरआन और सुन्नत की तरफ रजूअ् किया जाए
अल्लाह तआला ने फरमाया:
فَلا تَضرِبوا لِلَّهِ الأَمثالَ ۚ إِنَّ اللَّهَ يَعلَمُ وَأَنتُم لا تَعلَمونَ
“तो तुम अल्लाह के लिए मिसालें न बयान करो, बेशक अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते हो” [सूरह नहल, आयत-74]
अल्लाह के रसूल(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया :
إِنَّ أَتْقَاكُمْ وَأَعْلَمَكُمْ بِاللَّهِ أَنَا
“बेशक़ तुम में सब से ज़्यादा अल्लाह से डरने वाला और अल्लाह के बारे में जानने वाला मैं हूँ” [सहीह बुखारी, हदीस-1533]
वह आयतें जिन में अल्लाह के अर्श पर मुस्तवि होने का बयान है,
अल्लाह तआला ने फरमाया:
الرَّحمٰنُ عَلَى العَرشِ استَوىٰ
“अल्-रहमान अर्श पर मुस्तवि है” [सूरह ताहा, आयत-5]
अल्लाह तआला ने फरमाया:
ثُمَّ استَوىٰ عَلَى العَرشِ
“फिर वह अर्श पर मुस्तवि हुआ” [सूरह आराफ,आयत-54,युनूस आयत-3]
सिफात की कैफियत के बयान करने में इमाम क़ुर्तुबी का कथन
इमाम क़ुर्तुबी ने सूरह अराफ की आयत की तफ्सीर में कहा:
وقد كان السلف الأول رضي الله عنهم لا يقولون بنفي الجهة ولا ينطقون بذلك، بل نطقوا هم والكافة بإثباتها لله تعالى كما نطق كتابه وأخبرت رسله
ولم ينكر أحد من السلف الصالح أنه استوى على عرشه حقيقة
وخص العرش بذلك لأنه أعظم مخلوقاته، وإنما جهلوا كيفية الاستواء فإنه لاتعلم حقيقته.
قال مالك رحمه الله:
الاستواء معلوم – يعني في اللغة – والكيف مجهول، والسؤال عن هذا بدعة
و كذا قالَتْ أُمِّ سَلَمةَ رضِيَ اللهُ عنها
“और तहक़ीक के असलाफ् में पहले लोग रज़ियल्लाहु अन्हुम जह्त की नफी के बारे में नहीं कहते थे और न ही उस के बारे में बात करते थे, बल्कि इन तमाम लोगों ने अल्लाह तआला के लिए उसे साबित करने में वही तरीक़ा अपनाया जैसा के अल्लाह की किताब ने बतलाया और उस के रसूलों ने ख़बर दिया, और सलफ सालिहीन में से किसी ने भी इस बात का इन्कार नहीं किया के वह अर्श पर हक़ीक़त में मुस्तवि है, और अर्श को उस के साथ ख़ास किया क्योंकि वह उस की मख़लूक़ात में सब से अज़ीम है,और उन लोगों ने ला इल्मी ज़ाहिर की इस्तवा की कैफियत से,इसलिए कि उसकी हक़ीकत नहीं मालूम हो सकी, और
इमाम मालिक(रहिमहुल्लाह) ने फरमाया:
‘कि अल्लाह का मुस्तवि होना मालूम है(यानि लुग़वी ऐतबार से) लेकिन कैफियत मजहूल है, और उस के बारे में सवाल करना बिद्अत है’, और इसी तरह उम्म सलमा( रज़ियल्लाहु अन्हा) ने भी कहा था”
सिफात की कैफियत के बारे में इमाम मालिक का कथन
يحيى بن يحيى قال: كنا عند مالك بن أنس، فجاء رجل، فقال: يا أبا عبد الله {الرَّحْمَنُ عَلَى الْعَرْشِ اسْتَوَى} كيف استوى؟،
فأطرق مالك برأسه حتى علاه الرُّحَضَاء ثم قال:الاستواء غير مجهول، والكيف غيرمعقول، والإيمان به واجب، والسؤال عنه بدعة، وما أراك إلا مبتدعًا، ثم أمر به أن يُخرج»
यहया बिन यहया कहते हैं कि हम मालिक बिन अनस के पास बैठे हुए थे तो एक आदमी आया और उस ने कहा
“ऐ अबु अब्दुल्लाह,अर्रहमानु अला अर्श इस्तवा तो वह कैसे मुस्तवि हुआ?”
तो इमाम मालिक(रहिमहुल्लाह) ने अपना सिर झुकाया फिर उसे उठाया जो पसीने में डूबा हुआ था, और कहा: “ये चीज़ मजहूल है लेकिन अक़्ल में आने वाली है और इस पर ईमान लाना वाजिब है और इस के बारे में सवाल करना बिद्अत है,और मैं तुम्हें सिर्फ एक बिद्अती ही ख़्याल करता हूँ,फिर हुक्म दिया के इसे निकाल दिया जाए”
[इअ्तक़ाद लिल् बैहक़ी,जिल्द-1,पेज-115,फतावा इब़्न तैम्मिया,जिल्द-5,पेज-144]
अल्लाह तआला का बुलन्द होना
फरिश्तों का उस से डरना जो उन से ऊपर हो
وَلِلَّهِ يَسجُدُ ما فِي السَّماواتِ وَما فِي الأَرضِ مِن دابَّةٍ وَالمَلائِكَةُ وَهُم لا يَستَكبِرونَ
يَخافونَ رَبَّهُم مِن فَوقِهِم وَيَفعَلونَ ما يُؤمَرونَ ۩
“अल्लाह के लिए सज्दह करते हैं जो आसमान व ज़मीन में जानदार और फरिश्ते हैं और वह तकब्बुर नहीं करते, वह डरते हैं उस से जो उन को ऊपर है और जो उन को हुक्म दिया जाता है अमल करते हैं।”
[सूरह नहल,आयत-49-50]
सिफात की कैफियत के बारे में उम्म सलमा(रज़ियल्लाहु अन्हा) का फरमान
अर्रहमानु अलल् अर्श इस्तवा के बारे में उम्म सलमा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने फरमाया
“الاستواء غير مجهول، والكيف غير معقول، والإقرار به إيمان، والجحود به كفر”
[شرح الاعتقاد لللالكائي (3/397) ، عقيدة السلف للصابوني (ص:37) ، إثبات صفة العلوّ لابن قدامة (ص:158) ، صفة العلوّ للذهبي (ص:65]
अपने बन्दों के ऊपर
अल्लाह तआला फरमाता है
وَهُوَ القاهِرُ فَوقَ عِبادِهِ ۚ وَهُوَ الحَكيمُ الخَبيرُ
“और वह अपने बन्दों के ऊपर ग़ालिब और वह बरतर है”
[सूरह अनआम, आयत-18]
वह आसमान में है
“سماء” के शाब्दिक अर्थ
سماء हर उस चीज़ को कहते हैं जो बुलन्द हो (लिसान अल्-अरब)
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आसमान की तरफ देखा
अल्लाह तआला ने फरमाया:
قَدْ نَرَى تَقَلُّبَ وَجْهِكَ فِي السَّمَاءِ فَلَنُوَلِّيَنَّكَ قِبْلَةً تَرْضَاهَا
“तहक़ीक के हम ने आप के चेहरे को आसमान की तरफ फेरते हुए देखा तो हम आप को उस क़िबले की तरफ फेर देंगे जिस से आप खुश हो जाएँ” [सूरह अल्-बक़रह, आयत-144]
क्या तुम उस ज़ात से बेख़ौफ हो गए जो आसमानों में है
أَأَمِنتُمْ مَنْ فِي السَّمَاءِ أَنْ يَخْسِفَ بِكُمْ الأَرْضَ فَإِذَا هِيَ تَمُورُ.
أَمْ أَمِنتُمْ مَنْ فِي السَّمَاءِ أَنْ يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا فَسَتَعْلَمُونَ كَيْفَ نَذِيرِ
“क्या तुम उस ज़ात से बेख़ौफ हो गए जो आसमान में है कि वह तुम को ज़मीन में धँसा दे तो वह लरज़ने लगे,क्या तुम इस बात से बे-ख़ौफ हो गए कि आसमान वाला तुम पर पत्थर बरसाए तो तुम जान लोगे कि(मेरा)
डराना कैसा था” [सूरह मुल्क, आयत-16-17]
इमाम कुर्तुबी (रहिमहुल्लाह) ने फरमाया कि इब़्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने आयत नम्बर 16 की तफ्सीर में फरमाया :
“क्या तुम नाफरमानी करने की सूरत में उस के अज़ाब से बे-ख़ौफ हो गए जो आसमान में है”
हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) की दावत यह थी कि अल्लाह तआला आसमान में है
अल्लाह तआला ने फरमाया:
وَقَالَ فِرْعَوْنُ يَا هَامَانُ ابْنِ لِي صَرْحًا لَّعَلِّي أَبْلُغُ الْأَسْبَابَ
أَسْبَابَ السَّمَاوَاتِ فَأَطَّلِعَ إِلَى إِلَهِ مُوسَى وَإِنِّي لَأَظُنُّهُ كَاذِبًا
“फिरऔन ने कहा, ऐ हामान ! मेरे लिए एक बुलन्द बाला महल बनाओ ताके मैं दरवाज़ों तक पहुँच जाऊँ,आसमानों के दरवाजे तक, और मैं झांक कर देखूँ मूसा के रब को, और बेशक मैं उसे झूठा ख्याल करता हूँ” [सूरह मोमिन,आयत-36-37]
सुनन नबवी से दलील
गुलाम लौंडी का वाक़िया
मुआविया बिन् अल्-हकम रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि
وَكَانَتْ لِي جَارِيَةٌ تَرْعَى غَنَمًا لِي قِبَلَ أُحُدٍ وَالْجَوَّانِيَّةِ، فَاطَّلَعْتُ ذَاتَ يَوْمٍ فَإِذَا الذِّيبُ قَدْ ذَهَبَ بِشَاةٍ مِنْ غَنَمِهَا، وَأَنَا رَجُلٌ مِنْ بَنِي آدَمَ، آسَفُ كَمَا يَأْسَفُونَ، لَكِنِّي صَكَكْتُهَا صَكَّةً!! فَأَتَيْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَعَظَّمَ ذَلِكَ عَلَيَّ
، قُلْتُ: يَا رَسُولَ اللهِ أَفَلَا أُعْتِقُهَا؟ قَالَ: ائْتِنِي بِهَا . فَأَتَيْتُهُ بِهَا، فَقَالَ لَهَا: أَيْنَ اللهُ؟ قَالَتْ: فِي السَّمَاءِ، قَالَ: مَنْ أَنَا؟ ، قَالَتْ: أَنْتَ رَسُولُ اللهِ، قَالَ: أَعْتِقْهَا، فَإِنَّهَا مُؤْمِنَةٌ “
“मेरी एक लौंडी थी जो उहुद और जोवानिया पहाड़ के पास मेरी बकरियाँ चराया करती थी, तो मैंने एक दिन देखा कि भेड़िया रेवड़ में से एक बकरी को ले गया, और मैं बनू आदम में से एक इन्सान हूँ मुझे भी वैसे
ही अफसोस होता है जैसा कि औरों को होता है लेकिन मैं ने उसे एक तमांचा मार दिया, तो मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया, तो आप ने उसे मेरे लिए एक बड़ा गुनाह बतलाया,तो मैं ने कहा:
‘ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ! तो क्या मैं उसे आज़ाद न कर दूँ ? आप(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया, उसे मेरे पास लेकर आइए, तो मैं उसे आप(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास लाया, तो आप(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उस से पूछा कि अल्लाह कहाँ है? उसने कहा: वह आसमान में है, आप(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: मैं कौन हूँ? तो उस ने कहा: आप अल्लाह के रसूल हैं, तो नबी(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: उसे आज़ाद कर दो इसलिए कि यह मोमिना है'”
[सहीह मुस्लिम,हदीस-537,अबू दाऊद,नसाई,अहमद,मोत्ता इमाम मालिक]
जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु के हज का ज़िक्र करते हुए फरमाते हैं:
“रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया मैं तुम्हारे दर्मियान एक चीज़ छोड़ कर जा रहा हूँ अगर उस को मज़बूती से पकड़े रहोगे तो गुमराह नहीं होगे,और तुम से मेरे बारे में सवाल किया जाएगा तो तुम
क्या जवाब दोगे, सहाबा ने कहा कि हम गवाही देते हैं कि बेशक आप अल्लाह के रसूल हैं,आप ने तबलीग़ का हक़ अदा किया और नसीहत की फिर आप ने अपनी शहादत की अंगुली आसमान की तरफ किया और
उसे लोगों की तरफ उलट-पलट रहे थे।” [सहीह मुस्लिम,किताबुल् हज, हदीस-1218,दारमी]
इब़्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ुर्बानी के दिन ख़ुत्बा दिया और कहा ऐ लोगों यह कौन सा दिन है, कहा ऐहतराम का दिन है फिर सवाल किया कौन सा शहर है, लोगों ने कहा हुर्मत वाला शहर है,कहा कौन सा महीना है? लोगो ने कहा: हुर्मत वाला महीना है,तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा बेशक तुम्हारा खून और तुम्हारा माल,तुम्हारी इज़्ज़त वआबरू तुम पर हराम है इस दिन,इस शहर, इस महीने की हुर्मत की तरह, फिर आप(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपना सिर बुलन्द किया और कहा ऐ अल्लाह, क्या मैंने पहुँचा दिया ? अल्लाह क्या मैंने पहुँचा दिया ?
इब़्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कसम उस की जिस के हाथ में मेरी जान है बेशक रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अपनी उम्मत के लिए वसीयत थी जो हाज़िर हैं वह गायिब़ तक मेरी बात पहुँचा दें, मेरे बाद कुफ्फार न हो जाना कि आपस में एक दूसरे की गर्दन मारे। ” [सहीह बुख़ारी, हदीस-1739]
मैं उस के नज़दीक अमीन हूँ जो आसमान में है
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
“क्या तुम मुझे अमीन नहीं समझते हो जबकि मैं उसके नज़दीक अमीन हूँ जो आसमान में है,मेरे पास सूबह व शाम आसमान से ख़बर आती है।” [अहमद,मुत्तफिक़ अलैहि,सहीह बुख़ारी, हदीस-4351,सहीह अल्-जामे, हदीस-2645]
तुम पर वह रहम करेगा जो आसमान में है
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
“रहम करने वालों पर रहमान रहम करेगा, तुम जो ज़मीन में हैं उन पर रहम करो, वह जो आसमान में है वह तुम पर रहम करेगा” [सहीह अल्-जामे, हदीस-3522,अहमद,अबू दाऊद,तिर्मिज़ी,हाकिम]
अल्लाह की तरफ अमल बुलन्द होते हैं
अबू मूसा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं:
“पाँच बातों के साथ रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हमारे दर्मियान खड़े हुए,
अल्लाह न सोता है और न सोना उसके लिए मुनासिब है,मिज़ान को पस्त और बुलन्द करता है,रात के अमाल दिन के अमल से पहले और दिन के अमल रात के अमल से पहले उसकी तरफ बुलन्द होते हैं,अस का हिजाब नूर है और एक रिवायत में उसका हिजाब आग है अगर खोल दे तो उसके चेहरे की चमक ताहद निगाह उसकी मख़लूक़ को जला दे ”
[सहीह मुस्लिम,हदीस-179]
फिरदौस के ऊपर अर्श है
अल्लाह के रसूल(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया
“बेशक जन्नत में सौ दर्ज़े हैं जिन्हें अल्लाह ने अल्लाह की राह में जिहाद करने वालों के लिए तैयार कर रखा है,दो दर्जों के दर्मियान का फासला उतना ही है जितना के आसमान और ज़मीन के दर्मियान है, लिहाज़ा जब तुम अल्लाह से मांगो तो फिरदौस मांगो, इसलिए के वह जन्नत का बिचला हिस्सा है और उस का सब से बुलन्द हिस्सा है, मैं ख़्याल करता हूँ कि इस के ऊपर रहमान का अर्श है,और उसी से जन्नत की नहरें फूटती हैं।” [सहीह बुख़ारी,हदीस-2790]
दुआ में अल्लाह की तरफ हाँथ को फैलाना
अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया
“बेशक अल्लाह जिन्दह है और करीम है, जब कोई बन्दा उसकी तरफ अपने दोनो हाँथों को फैलाता है तो वह शर्माता है कि उन दोनो को खाली और रूस्वा करके लौटाए ।”
[सहीह अल्-जामे, हदीस-1757अहमद,अबू दाऊद,तिर्मिज़ी,इब़्न माजा,हाकिम]
वह अपने दोनों हाँथों को आसमान की तरफ फैलाता है
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
“ऐ लोगों ! बेशक अल्लाह पाक है और सिर्फ और सिर्फ पाक को पसन्द करता है, और बेशक अल्लाह ने मोमिनों को वही हुक्म दिया है जिस का हुक्म उस ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को दिया ,तो फरमाया: ‘ऐ अल्लाह के रसूल ! तुम पाकीज़ा चीज़ों को खावो और नेक अमल करो बेशक मैं जानता हूँ जो कुछ तुम करते हो’ और कहा: ऐ वह लोगों जो ईमान लाए, तुम पाकीज़ा चीज़ों को खाओ जो उस ने तुमको रोज़ी दिया, फिर आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने ऐसे आदमी का ज़िक्र किया जो लम्बा सफर करता है जिस के बाल परगन्दा हैं जो अपने दोनों हाँथो को आसमान की तरफ फैलाता है और कहता है, ऐ मेरे रब ! ऐ मेरे रब ! , और उस का खाना हराम है और उसका पीना हराम है और उसका पहनना हराम है और उसकी
परवरिश हराम से हुई है तो उसकी दुआ कहाँ से कबूल की जाएगी ” [सहीह अल्-जामे,2744,अहमद,मुस्लिम-1015,तिर्मिज़ी]
वह किताब जो अर्श के ऊपर है
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
“जब अल्लाह तआला ने मख़्लूक को पैदा किया तो अपनी किताब में लिखा और वह उसके पास अर्श पर मौजूद है ,कि बेशक मेरी रहमत मेरे गुस्से पर ग़ालिब है।” [सहीह बुख़ारी-3194,सहीह मुस्लिम-2751]
सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम का अक़ीदा
अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु का कथन
इब़्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा बयान करते हैं:
“जब अल्लाह के रसूल(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की वफात हुई तो अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु दाख़िल हुए और आप(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर झुके और आप(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पेशानी का बोसा(चुम) लिया और कहा कि मेरे माँ-बाप आप(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर क़ुर्बान हों, आप ने बहुत अच्छी जिन्दगी पायी और मौत भी,और कहा जो मुहम्मद(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की इबादत करता था तो बेशक़ मुहम्मद(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मर चुके हैं, और जो अल्लाह की इबादत करता था तो वह जान ले कि अल्लाह आसमान में जिन्दा है और वह मरेगा नहीं”
[हाशिया इब्न कैय्यिम,जिल्द-13,सफा-31,तारीख़ बुख़ारी]
उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का फरमान
क़ैस बयान करते हैं:
“जब हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु शाम आए तो लोगों ने उन का इस्तक़बाल किया, जबकि वह अपने ऊँट पर थे, तो लोगों ने कहा: ‘ऐ अमीरुल मोमिनीन ! ‘अगर आप तुर्की घोड़े पर सवार हो जाते,क्योंकि आप से बड़े बड़े लोग और बड़े बड़े चेहरे मुलाक़ात करेंगे, कहते हैं तो हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, क्या मैं तुम लोगों को यहाँ न दिखाऊँ,बेशक तमाम हुक्म यहाँ से होते हैं और उन्होंने अपने हाँथ से आसमान की तरफ इशारा किया, और कहा मेरे ऊँट का रास्ता छोड़ दो”
[इब़्न अबि शैबा-34443]
ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा का कथन
अनस रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं:
“ज़ैनब(रज़ियल्लाहु अन्हा) तमाम अज़्वाज नबी(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर फख़्र करते हुए कहती थीं कि तुम्हारी शादी तुम्हारे घरवालों ने कराई जबकि मेरी शादी अल्लाह तआला ने सात आसमान के ऊपर से कराई” [सहीह बुख़ारी-7420]
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का कथन
उर्वा बिन् ज़ुबैर बयान करते हैं:
“अयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं बाबरकत है वह ज़ात जिसकी सुनने की ताक़त हर चीज़ पर कुशादा है, मैं खौला बिन्त सअ्लबह की बात सुनती थी और कुछ बात मुझ पर पोशीदा रह जाते थे, वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अपने शौहर की शिकायत कर रही थी और कह रहीं थीं……..ऐ अल्लाह मैं तुझ से शिकायत करती हूँ…….यहाँ तक की जिब्रील उन कलिमात को लेकर नाज़िल हुए,यक़ीनन अल्लाह ने उस की बात सुन ली जो आप से अपने शौहर के बारे में झगड़ रही थी और
अल्लाह से शिकायत कर रही थी [सूरह अल्-मुजादलह,आयत-1] (सुनन इब़्न माजा,हदीस-2053)
”
अब्दुल्लाह इब़्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु का कथन:
उन्होने आयशा (रज़ि.)से फरमाया,
और अल्लाह ने आप की बराअत को सात आसमानों को ऊपर से उतारा जिसे रूह अल्-अमीन लेकर आए।
[मुसनद अहमद, हदीस-2366]
अकरमा (रहिमहुल्लाह) का बयान है:
अल्लाह के इस कथन के बारे में : ‘फिर मैं उन के पास ज़रूर ब ज़रूर आऊँगा,उन के आगे से उन के पीछे से,उनके दाहिने से और उनके बायें से ‘ के इब़्न अब्बास (रज़ि.) ने इस के बारे में फरमाया :
‘शैतान को यह कहने की ताक़त नहीं थी की वह कहे कि उन के ऊपर से क्योंकि उसे मालूम था कि उनके ऊपर अल्लाह है’ [अअ्तक़ाद, अहले सुन्ना वल् जमाअ्,लिल्-अलकायी: 661]
अबू ज़र (रज़ि.) ने अपने भाई से कहा: अब्दुल्लाह इब्न अब्बास(रज़ि.) बयान करते हैं कि:
जब अबू ज़र(रज़ि.) को नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की बअसत की ख़बर पहुँची तो उन्होंने अपने भाई से कहा तुम उस वादी की तरफ जाओ और मूझे उस आदमी की ख़बर दो जो ये ख़याल करता है कि वह नबी है और उस के पास आसमान से ख़बर आयी है और उसकी बात को सुनो और फिर मूझे आकर बताओ। [सहीह बुख़ारी, हदीस-3861]
सहाबा (रज़ि.) का अकीदा
अदी इब्न अमीरह कहते हैं कि:
मैं नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की तरफ हिजरत करते हुए निकला (और एक लम्ब किस्सा बयान किया,जिस मे है) तो उन्होंने देखा कि आप और जो लोग आप के साथ हैं वह अपने चेहरों के बल सजदह् कर रहे हैं और वह यह ख़्याल कर रहे हैं कि उन का मअ्बूद आसमान में है तो मैं भी इस्लाम ले आया और उन की इत्तबाअ् की।
[हाशिया इब्न क़ैय्यिम,जिल्द-13,पेज-31]
ताबअीन के अक़वाल(कथन):
इमाम औज़ाअी(रहिम.) कहते हैं:
हम और बहुत से ताबअीन ये कहते थे कि बेशक अल्लाह तआला ऊपर अपने अर्श पर है, और हम ईमान लाते हैं उस पर जो कुछ सुन्नत में अल्लाह की सिफात के तअल्लुक़ से वारिद हुआ है। [हाशिया इब्न क़ैय्यिम,जिल्द-13,पेज-17]
इमाम मुजाहिद (रहि.) का बयान:
“पकीज़ह कलमा उसकी तरफ उठाए जाते हैं ” से मुराद नेक अअ्माल हैं (बुख़ारी,किताब अल्-तफ्सीर)
‘और कहा जाता है “ज़िल् मआरिज़” यानि फरिश्ते अल्लाह की तरफ चढ़ते हैं।’ (बुख़ारी,किताब अल्-तफ्सीर)
बाज़ इशकालात:
अल्लाह की सोहबत अख़्तियार करना
अल्लाह तआला फरमाते हैं:
और जब आप उन लोगों को देखें जो हमारी आयतों में ऐब खोज रहे हैं तो उन लोगों के पास न जाएँ और अगर आप को शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिमों के साथ मत बैठिए । (सूरह अल्-अनाम,आयत-68)
हर मअियत(सोहबत) मुसाहिबत के मआनी में नहीं होता है।
मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं और जो आप के साथ हैं वह कुफ्फार पर सख़्त और आपस में रहम दिल हैं।
[सूरह अल्-फत्ह, आयत-29]
अल्लाह तआला फरमाते हैं:
बेशक अल्लाह मुत्तक़ियों के साथ हौ और उन के साथ जो अहसान करते हैं। [सूरह अन्-नहल,आयत-128]
अल्लाह तआला फरमाते हैं:
वह तुम्हारे साथ है तुम जहाँ कहीं भी रहो ।
अल्लाह तआला फरमाते हैं:
और वह है जिस ने आसमान व ज़मीन को छ: दिनों में बनाया फिर अरश पर मुस्तवी हुआ,वह जानता है क्या चीज़ ज़मीन में दाखिल हुई है और क्या निकलती है और क्या आसमान से नाज़िल होता है और क्या चढ़ता है
वह तुम्हारे साथ है तुम जहाँ कहीं भी रहो अल्लाह जो कुछ तुम करते हो देख रहा है। [सूरह अल्-हदीद,आयत-4]
अल्लाह की मअीअत(सोहबत) के बारे में इब्न अब्बास का कथन:
वह तुम्हारे साथ है, तुम जहाँ कहीं भी रहो के बारे में इब्न अब्बास फरमाते हैं: वह तुम्हारे बारे में इल्म रखने वाला है तुम जहाँ कहीं भी रहो। [इब्न अबी हातिम]
अल्लाह की मअिअत(सोहबत) के बारे में,सुफिआन सौरी का कथन:
(वह तुम्हारे साथ है) के बारे में सुफियान सौरी से सवाल किया गया,तो उन्होंने फरमाया: उसका इल्म (तुम्हारे साथ है) [बैहक़ी फील् अस्माअ् वल् सिफात]
अल्लाह की मअिअत(सोहबत) के बारे में इमाम अहमद बिन् हम्बल का कथन :
युसूफ बिन मूस अल् बगदादी अबू अब्दुल्लाह इमाम अहमद बिन् हम्बल से रिवायत करते हैं:
कि उन से कहा गया अल्लाह तआला सात आसमान के ऊपर अर्श पर है बावजूद इसके के वह अपने इल्म कुदरत के अपने मख़लूक़ के साथ हर जगह है, उन्होंने जवाब दिया हाँ अर्श पर है इसके इल्म से कोई जगह ख़ाली नहीं है। [अत्क़ाद अहले सुन्नत वल जमात लिल् अल् काअी,674]
अल्लाह की मअिअत(सोहबत) के बारे में इमाम तिर्मिज़ी का कथन:
इमाम तिर्मिज़ी ने कहा: बाज़ अहले इल्म इस हदीस की तफ्सीर करते हुए कहते हैं : “बेशक अल्लाह के इल्म उसकी कुदरत और उसकी बादशाहत से नाज़िल हुआ है और अल्लाह का इल्म क़ुदरत बादशाहत हर मकान में है और वह बज़ात खुद अर्श पर है जिस तरह उस ने अपनी सिफत किताब में बयान किया है।” [किताब तफ्सीर अल्-क़ुरान: सूरह हदीद-57 की तफ्सीर]
अल्लाह की मअिअत(सोहबत) के बारे में इमाम बैहक़ी का कथन:
इमाम बैहक़ी कहते हैं:
बाज़ आयतें जो हम ने लिखी हैं वह दलील हैं उन लोगों के क़ौल को बातिल करने के लिए ,जहमिया में से जो कहते हैं अल्लाह हर जगह अपनी ज़ात के साथ मौजूद है, वह तुम्हारे साथ है तुम जहाँ कहीं भी रहो,अल्लाह ने इल्म के साथ न कि ज़ात के साथ कहा है। इस बारे में जो कुछ बयान हुआ है सहीह मज़हब यह है कि ये मसला तौक़ीफी है न कि तकीफी और मजहब हमारे मुतकद्दम और मताखिर असहाब का है वह कहते हैं इस्तवा अलल् अर्श के बारे में आयत व हदीस सहीह में वारिद है और तौक़ीफ करते हुए इसका क़बूल करना वाजिब है और इस पर बहस करना और कैफियत तलब करना जायज है।
इमाम दारमी का कथन:
इमाम दारमी कहते हैं:
लौण्डी की हदीस में यह दलील मौजूद है कि जो ये इल्म रखता हो के अल्लाह ज़मीन पर है न कि आसमान में वह मोमिन नहीं है और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का यह कहना(अल्लाह कहाँ) है कि वह झुठलाता है जो यह करता है कि अल्लाह हर जगह है और जगह की तअीन नहीं करता है, इस लिए कि इस सवाल पर कि वह कहाँ है से मकान खास हो जाती है तो अल्लाह अर्श पर आसमानों के ऊपर और जिस को पैदा किया पस जो यह न जाने वह यह नहीं जानता है कि वह किस की इबादत करता है। [जहमियों का रद्द, इमाम दारमी, पेज-22]
इमाम दारमी ने इजमाअ् बयान किया है:
उस्मान बिन् सईद साहब सुनन् में कहते है:
इस कलमा पर मुसलमानों का इत्तफाक़ है कि अल्लाह अर्श पर आसमानों के ऊपर है बेशक अल्लाह अर्श के ऊपर है अर्श के ऊपर से सब कुछ समझता है कोई पोशीदा रहने वाली चीज़ उस से पोशीदा नहीं रहती है और न कोई चीज़ उस से हिजाब करती है। [अल् रद अला अल्-मरीसी,पेज-25,79,37,82]
अल्लाह की मअिअत(सोहबत) के बारे में इमाम क़ुर्तुबी ने तावील करने पर इज्माअ् नक़ल किया है:
इमाम क़ुर्तुबी (वह लोगों से तो छिप जाते हैं लेकिन अल्लाह से तो नहीं छिप सकते जबकि अल्लाह उन के साथ होता है जब वह अल्लाह की नाराज़गी की बातों में मशवरह कर रहे होते हैं उन के तमाम मआमलात को वह घेरे हुए है) की तफ्सीर करते हुए फरमाते हैं:
तुम्हारे साथ है, इस का मतलब अहले सुन्नत के नज़दीक इल्म रूवियत और सूनने के एतबार से, जहमिया,क़दरिया,मोअ्तज़ला इसी आयत की रौशनी में कहते हैं अल्लाह हर जगह मौजूद है,कहते हैं क्यों अल्लाह ने कहा वह तुम्हारे साथ है तुम जहाँ कहीं भी रहो, इस से साबित होता है अल्लाह तुम्हारे साथ है, अल्लाह उनकी बातों से बेनियाज़ है।
इब्न कसीर ने तावील के मुतल्लिक़ इजमाअ् ज़िक्र किया:
अल्लाह ने फरमाया:
क्या आप ने नहीं देखा अल्लाह इल्म रखता है जो आसमान व ज़मीन में हैं तीन आदमी की सरगोशी नहीं होती मगर चौथा अल्लाह होता है और जहाँ पाँच हों वहाँ छठा अल्लाह होता है और उस से कम हों या उस से ज़्यादा मगर अल्लाह उन के साथ होता है। वह कहीं भी हों फिर अल्लाह उन को उन अमलों के मुताबिक़ कयामत के दिन बाख़बर करेगा। [सूरह अल्-मुजादला,आयत-7]
इब्न कसीर कहते हैं:
एक से ज़्यादा लोगों ने इजमाअ् का दावा किया है कि इस आयत में मअीअत से मुराद अल्लाह तआला का इल्म है,अल्लाह के इरादे में कोई शक नहीं है, अपने इल्म के साथ अल्लाह सुनता है और उसकी निगाह उन में नाफिज़ है, पस अल्लाह तआला अपने मख़लुक़ से बाख़बर है, कोई चीज़ उस से उन के मआमलात से ग़ायब नहीं ।
और अल्लाह तआला ही सबसे ज्यादा इल्म (ज्ञान) रखता है।
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