इमाम अबू हनीफा (रहिमहुल्लाह) का अक़ीदा

Question

                    इमाम अबू हनीफा (रहिमहुल्लाह) का अक़ीदा

सबसे पहले अल्लाह तआला की तौहीद, शरअी तवस्सुल के बयान और बिद्अी तवस्सुल के इब्ताल के बारे में उन का अक़ीदा:
1. अबू हनीफा(रहिमहुल्लाह) ने कहा: “किसी के लिए दुरूस्त नहीं कि वह अल्लाह से दुआ करे मगर उसी के वास्ते से , और जिस दुआ की इजाज़त है और जिस का हुक्म है वह वही है जो अल्लाह तआला के इस इरशाद से मिलता है:
और अल्लाह तआला के अच्छे नाम हैं, इसलिए उसे उन्हीं से पुकारो, और उन लोगों को छोड़ दो जो इस के नामों में इल्हाद करते हैं, उन्हें जो कुछ वह करते रहे हैं उस का जल्द ही बदला दिया जाएगा।” (सूरह आराफ, आयत-180) [अल्-दर्रुल मुख़्तार,हाशिया रद्दूल् मुहतार,2/396-397]
अबू हनीफा (रहिमहुल्लाह) ने फऱमाया : “यह मकरूह है कि दुआ करने वाला यूँ कहे कि मैं फलाँ के हक़ से , या नबी के हक़ से या रसूल के हक़ से,या बैतुल् हराम के हक़ से या मशअ्रर हराम तुझ से सवाल करता हूँ।”[शरह अल्-अक़ीदा अल् तहाविया, सफा-234]

और अबू हनीफा (रहिमहुल्लाह) ने फरमाया: “किसी के लिए दुरूस्त नहीं कि वह अल्लाह तआला से दुआ करे मगर उसी के वास्ते से, और मैं ये भी मकरूह समझता हुँ कि दुआ करने वाला यूँ कहे कि तेरे अर्श की इज़्ज़त की बन्दिशगाह के वास्ते से,[नोट-इमाम अबू हनीफा और इमाम मुहम्मद ने ये बात मकरूह क़रार दी है कि आदमी अपनी दुआ में ये कहे कि “ऐ अल्लाह ! मैं तेरे अर्श की इज़्ज़त की बन्दिशगाह के वास्ते से सवाल करता हूँ क्योंकि इस की इजाजत के बारे में कोई दलील नहीं है, अलबत्ता अबू यूसूफ ने इस को जायज़ कहा है, क्योंकि उन्हें सुन्नत से इस की दलील मिल गयी थी, जिस में ये है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दुआ ये थी: “ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से तेरे अर्श की इज़्ज़त की बन्दिशगाहों और तेरे किताब की मुन्तहा-ए-रहमत(रहमत की इन्तिहा) के वास्ते से सवाल करता हूँ इस हदीस को ब़ैहक़ी ने किताबुल् दअ्वात अल् कबीर में रिवायत किया है, जैसा कि अल्-बिनाया 1382/9 और नसब अल्र रायाह् 272/4 में है , मगर इस की सनद में तीन ख़ामियाँ हैं
1. दाऊद बिन् आसिम ने इब्न मसऊद से नहीं सुना है,2.अब्दुल मालिक बिन् जुरैज मुदल्लीस है और इर्साल करता है,3.उमर बिन् हारून पर झूठ बोलने का इल्ज़ाम है,इसीलिए इब्न जौज़ी ने कहा है, जैसा कि अल्-बिनाया 9/382 में है कि ये हदीस बिलाशुबा मौज़ूअ् है और इस की सनद बेकार है,जैसा कि तुम देख रहे हो, देखिए तहज़ीब अल्-तहज़ीब 3/189,6/405,7/105 तक़रीब अल्-तहज़ीब 1/520]”
या तेरी मख़लुक़ के हक़ से।[अत्-तव्वसुल वल् वसीला सफा-189 और देखिए शर्रह अल्-फिक़्ह-अल् अकबर, 198]

सिफात के इस्बात और जहमिया के रद्द में उनका क़ौल:
4. और उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला को मख़लुक़ीन की सिफात से मुत्तसीफ नहीं किया जा सकता, इसका गज़ब और इसकी रज़ा बिला कैफ उसकी सिफात में दो सिफतें हैं, और यही अहले सुन्नत वल् जमात का क़ौल है,वह गज़बनाक
होता और राज़ी होता है, लेकिन ये नहीं कहा जाएगा कि उसका गज़ब उसकी तरफ से सज़ा है, और उसकी रज़ा उसका सवाब है, और हम उसको वैसे ही मुत्तसीफ करेंगे जैसै उस ने अपने आप को मुत्तसीफ किया है, वह एक है, बे नियाज़ है,
न उसने जना है और न वह जना गया है, और न उसका कोई हमसर है, वह ज़िन्दा है, क़ादिर है, सुनने वाला है,देखने वाला है,आलिम है, अल्लाह का हाथ उन के हाथों के ऊपर है,और उसकी मख़लुक के हाँथ जैसा नहीं, और उसका चेहरा उसकी मख़लुक के चेहरे जैसा नहीं है। [फिक़्ह अल्-अबसत्, सफा-56]

5. और कहा कि : “उस के लिए हाथ और चेहरा और नफ्स है, जैसा कि अल्लाह ने उसे क़ुरआन में ज़िक्र किया है, और जिस चीज़ को अल्लाह ने क़ुरआन में ज़िक्र किया है,यानि चेहरा और हाथ और नफ्स का ज़िक्र तो वह बिला कैफ उसकी सिफात हैं, और ये नहीं कहा जाएगा कि उस का हाथ उसकी कुव्वत या नेमत है, क्योंकि उस में सिफत का इन्कार है, और ये मुन्किरीन तक़दीर और मुअ्तज़िला का क़ौल है। [फिक़्ह अल्-अबसत्, सफा-302]”
6. और कहा कि : “किसी के लिए दुरूस्त नहीं है कि अल्लाह की ज़ात के बारे में कुछ भी बोले, बल्कि उसको उसी ख़ुशुसियत से मुत्तसीफ करे जिस से उस ने अपने आप को मुत्तसिफ किया है, और उस के बारे में अपनी राए से कुछ न कहे, अल्लाह रब्ब अल् आलमीन् बाबरकत और बुलन्दतर है।” [शरह् अल्-अक़ीदा अल्-तहाविया 2/427, तहक़ीक़ डा. अब्दुल्लाह तुर्की, जलालैन,368]
7.और जब नज़ूल इलाही के बारे में उन से पूछा गया तो उन्होंने कहा, “वह बिला कैफ नाज़िल होता है।” [अकीदा अल्-सलफ अस्हाब अल्-हदीस सफा-42,दारूल सलफिया प्रेस,अल् अस्माअ् वल् सिफात बैहक़ी स-456, कोसरी ने इस पर
सकूत इख्तियार किया है और शरह अल्-अक़ीदा अल्-तहाविया सफा-245, तख्ररीज अलबानी, अल्-फिक़्ह-अल् अकबर लिल् क़ारी, सफा-40]
8.इमाम अबू हनीफा ने कहा: “अल्लाह तआला ऊपर की जानिब (तवज्जो करके) पुकारा जाएगा, नीचे से नहीं, क्योंकि नीचे होना रबूबियत और उलुहियत के ख़ुशुसियत मे से कोई तालुक नहीं रख़ता।” [अल्-फिक़्ह अल्-अबसत्,सफा-51]
9. और कहा कि : “वह गुस्सा होता है और राज़ी होता है मगर ये नहीं कहा जाएगा कि उसका गुस्सा उसकी तरफ से सज़ा है,और उसकी रज़ा उसका सवाब है।“[फिक्ह अल्-अबसत,सफा-56, किताब के मुहक़्क़िक़ कोसरी ने इस पर सकूत इख्तियार किया है।]
10. और कहा कि : “वह अपनी मख़लुक़ की चीज़ों में से किसी भी चीज़ के मुशाबे नहीं, और अपनी मख़लुक़ के भी मुशाबे नहीं, वह अपने नामों और सिफात के साथ हमेशा से था और हमेशा रहेगा।” अल्-फिक़्ह-अल्अ कबर,सफा-301]
11. और कहा कि : “उसकी सिफात मख़लुक़ की सिफात के बर ख़िलाफ हैं, जानता है मगर हमारे जानने की तरह नहीं, वह क़ुदरत रखता है मगर हमारे क़ुदरत रखने की तरह नहीं, वह देखता है मगर हमारे देखने की तरह नहीं, सुनता है मगर हमारे सुनने की तरह नहीं, वह बोलता हैं मगर हमारे बोलने की तरह नहीं [अल्-फिक़्ह-अल् अकबर,सफा-302]
12.और कहा कि: “अल्लाह तआला को मख़लुक़ीन की सिफात के साथ मुत्तसिफ नहीं किया जाएगा” [[अल्-फिक़्ह अल्-अबसत्, सफा-56]
13.और कहा कि : “जिस ने अल्लाह को बशर के मानों में किसी माना के साथ मत्तसिफ किया उसने कुफ्र किया” [अक़ीदतुल् तहाविया, तअलीक़ अल्-अलबानी, सफा-25]
14.और कहा कि : “अल्लाह की ज़ाती और फअ्ली सिफत हैं, ज़ाती सिफात हयात, क़ुदरत, इल्म,कलाम, समअ्, बसर और इरादा हैं । और फअ्ली सिफात ये हैं : पैदा करना,रोज़ी देना,मौजूद करना, बग़ैर साबिका नमुना के किसी चीज़ को वजूद में लाना, बनाना और दीगर सिफात फअ्ल,और वह अपने अस्माअ् व सिफात के साथ हमेंशा से है और हमेशा रहेगा [अल्-फिक़्ह-अल् अकबर,सफा-301]
15 और कहा कि : “वह अपने फअ्ल के हमेशा से करने वाला रहा है, और फअ्ल अजली सिफत है, और फाएल अल्लाह तआला है, और फअल् अज़ली सिफत है, और मफ्अूल मख़लुक़ है, और अल्लाह तआला का फअ्ल मख़लूक नहीं है।” अल्-फिक़्ह-अल् अकबर,सफा-301]
16.और कहा कि : “जो शख़्स यह कहे कि मैं अपने रब्ब के बारे में नहीं जानता कि वह आसमान में है या ज़मीन में, उस ने कुफ्र किया, और ऐसे ही वह शख़्स भी जो ये कहे कि वह अर्श पर है लेकिन मैं ये नहीं जानता कि अर्ज़ आसमान में है या ज़मीन में।” [[अल्-फिक़्ह अल्-अबसत्,सफा-46, और इसी के मिस्ल शैख़ुल इस्लाम इब्न तैमिया ने मजमूअ् अल्-फतावा 48/5 में, इब्न क़ैय्यिम ने इज्तमाअ् अल्-जैयुश अल्-इस्लामिया, सफा-139 में,ज़हबी ने अल्-उलुव्व,सफा-101,102 में,इब्न क़ुदामा ने अल्-उलुव्व, सफा-116 में, और इब्न अबी अल्-इज़्ज़ ने अल्-तहाविया सफा-301 में नक़ल किया है।]
17.और एक औरत ने उन से पूछा कि जिस रब की आप इबादत करते हैं वह कहाँ है? तो उन्होंने कहा कि “अल्लाह सुब्हानहु व तआला ज़मीन में नहीं आसमान में है, इस पर उन से एक आदमी ने कहा कि तो अल्लाह का ये क़ौल कि “व हुव मअकुम(वह तुम्हारे साथ है)“[सूरह अल्-हदीद,आयत-4]”तो उन्होंने कहा कि वह ऐसे ही है जैसे तुम किसी आदमी को लिखते हो कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, हालांकि तुम उस से गायब होते हो। ” [अल्-अस्माअ् वल्सि फात,सफा-429]
18.और कहा कि: “इसी तरह अल्लाह का हाथ उन के हाथ के ऊपर है,लेकिन उसकी मख़लुक़ के हाथों की तरह नहीं है।” [अल्-फिक़्ह अल्-अबसत्,सफा-56]
19. और कहा कि : “बेशक़ अल्लाह सुब्हानहु व तआला ज़मीन में नहीं,आसमान में है,इस पर उनसे एक आदमी ने कहा कि तो अल्लाह का जो क़ौल है कि : “व हुव मअकुम”(वह तुम्हारे साथ है।) तो उन्होंने फरमाया कि वह ऐसे ही है जैसे तुम किसी आदमी को लिखते हो कि मैं तुम्हारे साथ हों, हालांकि तुम उस से ग़ायब होते हो।” [अल्-अस्माअ् वल् सिफात्,170/2]
20.और कहा कि: “अल्लाह तआला ने मुसा अलैहिस्सलाम से कलाम नहीं किया था तब भी वह मुतकलिम था” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302]
21. और कहा कि : “वह अपने कलाम के साथ मुतकलिम था और कलाम उसकी अजली सिफत है।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-301]
22.और कहा कि: “वह कलाम करता है,मगर हमारे कलाम की तरह नहीं।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302]
23.और कहा कि : “मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला का कलाम सुना जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया : “व कल्लमल्लाहु मूसा तकलीमा(और अल्लाह तआला ने मूसा से कलाम किया) [सूरह निसा,आयत-164]”और उस ने जब मूसा अलैहिस्सलाम से कलाम नहीं किया था तब भी मुतकल्लिम था। [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302]
24.और कहा कि: “क़ुरआन अल्लाह का कलाम है, मुसाहिफ में लिखा हुआ है, दिलों में महफुज़ है, ज़बानों से पढ़ा जाता है,और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर नाज़िल किया गया है।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-301]
25.और कहा कि: “क़ुरआन ग़ैर मख़लुक़ है।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302]

तक़दीर के बारे में इमाम अबू हनीफा के अक़वाल:
1. एक आदमी इमाम अबू हनीफा के पास आकर तक़दीर के बारे में उन से मूजादिला करने लगा, उन्होंने कहा: “तुम को मालूम नहीं कि तक़दीर में ग़ौर व खोज़ करने वाला ऐसे ही है जैसे को ई सूरज की आँखों में नज़र कर रहा हो, वह
जिस क़दर ज़्यादा नज़र करेगा उस की हैरत ज़्यादा होगी [क़लाएद अक़ूद अल्-अक़बान, वर्क़-77 ब]
2. इमाम अबू हनीफा कहते हैं : “अल्लाह तआला अज़ल में अश्या को उन के होने से पहले जानता था” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302-303]
3.और कहा कि: “अल्लाह तआला मअ्दूम को उसके अदम की हालत में बहैसियत मअ्दूम जानता है,और ये भी जानता है कि जब वह उसको मौजूद करेगा तो कैसे होगा,और अल्लाह तआला मौजूद को उस के वजूद की हालत में मौजूद जानता है।,और ये भी जानता है कि उसका फना कैसे होगा। [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302-303]
4.और इमाम अबू हनीफा कहते हैं कि : “उस की (मुक़र्रह) तक़दीर लौह महफूज़ मैं है।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302]
5.और कहा कि : “हम इक़रार करते हैं कि अल्लाह तआला ने क़लम को हुक्म दिया कि वह लिखे, क़लम ने कहा: “ऐ रब्ब !मैं क्या लिखूँ ? अल्लाह तआला ने कहा: क़ियामत तक जो होने कुछ होने वाला है वह सब लिख,क्योंकि अल्लाह तआला का इरशाद है: “और हर चीज़ जो उन्होंने की है सहीफों के अन्दर है, और हर छोटी बड़ी चीज़ लिखी हुई है(अल्-क़मर,आयत-52-53)” [अल्-वसियत् मअ शर्रह,सफा-21]
6.और इमाम अबू हनीफा ने कहा : “दुनिया और आख़िरत में कोई भी चीज़ अल्लाह की मर्ज़ी के बग़ैर नहीं होगी। [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302]
7. और इमाम अबू हनीफा ने कहा कि : “अल्लाह ने चीज़ें बग़ैर किसी चीज़ के पैदा कीं [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302]
8. और कहा कि : “अल्लाह तआाला पैदा करने से पहले भी ख़ालिक़ था।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-304]
9.और कहा कि : “हम इक़रार करते हैं कि बन्दा अपने आमाल, इक़रार और मअ्ररफत् के साथ मख़लूक़ है,चुनांचे जब फाएल मख़लुक़ है तो उस के अफ्आल बदर्जा उला मख़लुक हैं।” [अल्-वसियत् मअ् शरहां,सफा-14]
10. और कहा कि : “हरकत व सकून व ग़ैरह बन्दों के तमाम अफ्आल उन का कसब हैं,और अल्लाह तआला उन का ख़ालिक़ है,और ये कुल के कुल उसके मशिअत्, उसके इल्म,उसके फैसले और उसकी तक़दीर से हैं।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-303]
11.और इमाम अबू हनीफा(रहिमहुल्लाह) ने कहा: “हरकत व सकून वगैरह बन्दों के तमाम अफ्आल हक़ीक़त उनका कसब हैं,और अल्लाह तआला ने उन्हें पैदा किया है, और ये कुल के कुल अल्लाह तआला की मशिअत्,उसके इल्म,उस के फैसले और उस की तक़दीर से हैं, उस के फैसले और उसकी तक़दीर से वाजिब थें।और मआसी कुल की कुल अल्लाह के इल्म,उसके फैसले और उसकी तक़दीर और उसकी मर्ज़ी से हैं लेकिन उसकी पसन्द,उसकी रज़ा और उसके हुक्म से नहीं हैं।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-303]
12.और कहा कि : “अल्लाह तआला ने मख़लुक़ के कुफ्र और ईमान से सालिम पैदा किया(नोट-सहीह यह है कि अल्लाह ने मख़लुक़ को फितरत-ए-इस्लाम पर पैदा किया,जैसा कि खूद अबू हनीफा अपने आगे के क़ौल में बयान कर रहे हैं।) फिर उन्हें मुख़ातिब किया और हुक्म दिया और मना किया, फिर जिस ने कुफ्र किया उस ने अपने फेल और इन्कार और हक़ को न मानने के सबब अल्लाह तआला की तरफ से बे तौफिक़ी के नतीजे में कुफ्र किया, और जो ईमान लाया वह अपने फेल और इक़रार और तस्दीक़ के सबब अल्लाह तआला की तौफीक़ और उसकी नुसरत से ईमान ले आया।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302-303]
13. और कहा कि: “उस ने आदम की जुरियत् को उनकी पूस्त से चिंटीयों की सूरत में निकाला और उन्हें अक़लमन्द बनाया, फिर उनको मुख़ातिब किया,और उन्हें ईमान का हुक्म दिया, और कुफ्र से मना किया,उस पर उन्होंने अल्लाह की रूबूबियत का इक़रार किया,चुनांचे ये उन की तरफ से ईमान था,और वह उसी फितरत पर पैदा किए जाते हैं,अब जो कुफ्र करता है तो उसके बाद कुफ्र करता है और तग़ैय्युर व तब्दीली करता है और जो ईमान लाता और तस्दीक़ करता है तो वह उस पर साबित और बरक़रार रहता है।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302]
14.और कहा कि : “वही है जिस ने चीजें मुक़द्दर कीं और उनका फैसला किया,और दुनिया और आख़िरत में कोई भी चीज़ उसकी मर्ज़ी,उसके इल्म,उसके फैसले और उसकी तक़दीर के बग़ैर नहीं होती,और उसे उस ने लौह-ए-महफूज़ में लिख रखा है।” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-302]
15.और कहा कि: “उस ने अपनी मख़लुक़ में से किसी को कुफ्र या ईमान पर मजबूर नहीं किया है,बल्कि उन्हें इश्ख़ास पैदा किया है, और ईमान और कुफ्र बन्दों का फेल है,और जो कुफ्र करता है अल्लाह तआला उसको हालत-ए-कुफ्र में काफिर जानता है,फिर उसके बाद जब वब ईमान लाता है तो जब उसको मोमिन जानता है तो उस से मुहब्बत करता है,मगर उस के बग़ैर कि उस के इल्म में कोई तब्दीली हो” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर, सफा-303]

ईमान के बारे में इमाम अबू हनीफा रहिमहुल्लाह का क़ौल
1. और कहा कि: “ईमान इक़रार और तस्दीक़ है” [अल्-फिक़्ह अल्-अक़बर,सफा-304]
2.और कहा कि : “ईमान,ज़बान से इक़रार और दिल से तस्दीक़ है, तन्हा इक़रार ईमान नहीं।” [किताब अल्-वसिया मअ् शर्रह,सफा-2] उसे तहावी ने अबू हनीफा और साहबैन रहिमहुल्लाह अजमईन से नक़ल किया है। [अल्-तहाविया मअ्-शर्रह,सफा-360]
3.और अबू हनीफा रहिमहुल्लाह ने कहा कि : “ईमान न ज़्यादा होता है न कम होता है।” [किताब अल्-वसिया मअ्-शर्रह,सफा-3]
मैं कहता हूँ कि उन्होंने ईमान के ज़्यादा और कम न होने की जो बात कही है और ईमान के मसमा के बारे में जो बात कही है कि वह दिल की तस्दीक और ज़बान का इक़रार है, और अमल हक़ीक़त में ईमान से ख़ारिज है। तो उनकी यही बात ईमान के बारे में इमाम अबू हनीफा रहिमहुल्लाह के अक़ीदे और बक़िया तमाम आइमा इस्लाम मसलन् मालिक, शाफअी, अहमद, इसहाक़,बुख़ारी वग़ैरह रहिमहुल्लाह अजमईन के अक़ीदे के दर्मियान वाजेह फर्क़ है,और हक़ उन्हीं आइमा के साथ,और अबू हनीफा रहिमहुल्लाह का क़ौल हक़ से अलग थलग है, लेकिन दोनों हालतों में उन्हें अज्र है,और इब्न अब्दुल बर और इब्न अबी अल्-इज़्ज़ ने कुछ ऐसी बात ज़िक्र की है जिस से पता चलता है कि इमाम अबू हनीफा रहिमहुल्लाह ने अपने क़ौल से रूजूअ् कर लिया था। और अल्लाह तआला ही बेहतर इल्म वाला है। [अल्-तमहीद इब्न अब्दुल बर 742/9,शरह् अल्-अक़ीदा अल्-तहाविया,सफा-395]

सहाबा के बारे में इमाम अबू हनीफा का क़ौल :
1.इमाम अबू हनीफा ने कहा: “हम सहाबा रसूल ((सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) में से किसी को भी ज़िक्र नहीं करते मगर ख़ैर ही के साथ” [अल्-फिक़्ह अल्-अकबर,सफा-404]
2.और कहा : “हम सहाबा रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) में से किसी से भी बराअत् इख़्तियार नहीं करते,और किसी को छोड़ कर किसी से दोस्ती नहीं करते” [[अल्-फिक़्ह अल्-अबसत्,सफा-40]
3.और कहा कि : “रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ उन में से किसी एक का एक साअत के लिए क़ियाम, हम में से एक की तमाम उमर के अमल से बेहतर है,चाहे वह उमर लम्बी ही क्यों न हों” [मनाक़िब अबी हनीफा अज़्-मक्की, सफा-26]
4.और कहा कि : “हम इक़रार करते हैं कि हमारे नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बाद इस उम्मत में सब से अफज़ल अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु, फिर उमर रज़ियल्लाहु अन्हु,फिर उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु हैं फिर अली रज़ियल्लाहु अन्हु हैं,उन सब पर अल्लाह की रज़ा हो।” [अल्-वसिया मअ्-शर्रह सफा-14]
5.और कहा कि: “रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बाद सब से अफज़ल अबू बकर और उमर और उस्मान और अली रज़ियल्लाहु अन्हुम हैं, इस के बाद हम रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के तमाम अस्हाब से रूक जाते हैं, और सिर्फ अच्छाई के साथ ज़िक्र करते हैं” [अल्-नूर अल्-ला,मअ्(वरक़ा-119-ब) में उन से मज़कूर है।]

दीन में कलाम व ख़सूमात से उन की ममानिअत् :
1.इमाम अबू हनीफा रहिमहुल्लाह ने कहा : “बसरा में गुमराह (अक़ीदा)वाले बहुत हैं, मैं वहाँ बीस से ज़्यादा मर्तबा गया, और बसा औक़ात ये समझ कर एक साल या उस से कुछ कम या ज्यादा ठहरा रहा कि इल्म कलाम बड़ा जलील इल्म है।” [मनाक़िब अबि हनीफा लिल् कुर्दी, सफा-137]
2.और कहा कि : “मैं इल्म कलाम में नज़र रखता था,यहाँ तक कि इस दर्जे को पहूँच गया कि इस फन में मेरी, उंगलियों से इशारे किए जाने लगे, और हम हमाद बिन् अबी सुलैमान के हलक़े के क़रीब बैठा करते थे, एक दिन मेरे पास एक औरत ने आकर कहा कि एक आदमी है,उसकी एक बीवी है जो लौण्डी है,वह उसे सुन्नत के मुताबिक़ तलाक़ देना चाहता है, कितनी तलाक़ दे ? मूझे समझ में न आया कि मैं क्या कहूँ,मैंने उसे हुक्म दिया कि वह हमाद से पूछे, फिर पलट कर आए और मूझे बताए, उस ने हमाद से पूछा, हमाद ने कहा : ‘उसे हैज़ और जमाअ् से पाकी की हालत में एक तलाक़ दे, फिर उसे छोड़ रखे यहाँ तक कि उसे दो हैज़ आ जाएँ, फिर जब वह गुस्ल कर ले तो निकाह करने वालों के लिए हलाल हो गयी’, उसने वापिस आकर मूझे ख़बर दी,मैंने कहा : ‘मूझे इल्म कलाम की कोई ज़रूरत नहीं, मैंने अपना जूता लिया और हमाद के पास आ बैठा।‘” [तारीख़ बग़दाद, 333/13]
3.और वह कहते हैं कि : “अल्लाह अम्रो बिन् उबैद पर लानत करे,क्योंकि इल्म कलाम में जो चीज़ मुफीद नहीं उसकी बाबत गुफ्तुगू का दरवाज़ा उसी शख़्स ने खोला है।” [ज़म्म अल्-कलाम लिल् हरवी,28-31]
और उनसे एक आदमी ने पूछा और कहा कि अरज़ व जिस्म के मुतल्लिक़ गुफ्तुगू के बारे में लोगों ने जो कुछ इजाद कर लिया है उस के बारे में आप क्या कहते हैं? उन्होंने कहा: “वह तो फलसफियों के मक़ालात हैं, तुम असर व तरीक़ सलफ को लाज़िम पकड़ो, और अपने आप को हर इजाद करदा चीज़ से बचाओ,क्योंकि वह बिद्अत् है।“[ज़म्म अल्-कलाम लिल् हरवी,194/ब]
4.हमाद बिन् अबी हनीफा कहते हैं कि एक दिन मेरे पास मेरे वालिद रहिमहुल्लाह दाख़िल हुए, और मेरे पास अहले कलाम की एक जमात थी, और हम एक बाब में बहस कर रहे थे,और हमारी आवाज़ें ऊँची हो गयी थी, जब मैंने घर में उन की आहट सूनी तो उन की जानिब निकला,उन्होंने कहा: ऐ हमाद ! तुम्हारे पास कौन हैं ? मैंने कहा : ‘फलां, फलां और फलां, मेरे पास जो लोग थे मैंने उनका नाम लिया,उन्होंने कहा :’ऐ हमाद, इल्म कलाम छोड़ दो ।,(हमाद कहते हैं) मैंने अपने बाप को कभी खलत-मलत करने वाला नहीं पाया था,और न उन में से पाया था जो किसी बात का हुक्म देते हों,फिर उस से मना करते हों, इसलिए मैंने उन से कहा : ‘अब्बा जान ! क्या आप मूझे इस का हुक्म नहीं दिया करते थे ?, उन्होंने कहा: ‘बेटे! क्यों नहीं, लेकिन आज तुम को इस से मना करता हूँ, मैंने कहा : क्यों ?’उन्होंने कहा: ऐ बेटे ! ये लोग जो इल्म कलाम के अबवाब में इख़्तिलाफ किये बैठे हैं,जिन्हें तुम देख रहे हो,ये एक ही क़ौल और एक ही दीन पर थे, यहाँ तक कि शैतान ने उनके दर्मियान कचुका मारा, और उन में अदावत व इख़्तिलाफ डाल दिया, और वह एक दूसरे से अलग हो गए‘ [मनाक़िब अबी हनीफा लिल् मक्की, सफा-183-184]
5. अबू हनीफा रहिमहुल्लाह ने अबू युसूफ रहिमहुल्लाह से कहा: “तुम उसूल-ए-दीन यानि कलाम के बारे में आम लोगों से ग़ुफ्तुग़ू करने से बच कर रहना,क्योंकि ये लोग तुम्हारी तक़लीद करेंगे, और इसी में फंस जाऐंगे“[मनाक़िब अबी हनीफा लिल् मक्की,373]
उसूल-ए-दीन के मसायल में इन रहिमहुल्लाह का जो अक़ीदा था और इल्म कलाम और मुतकल्लिमीन के बारे में उन का जो मुवक़्क़फ था, उन के बारे में मौसूफ के अक़वाल का ये एक मजमूअ् है।

और अल्लाह तआला ही बेहतर इल्म वाला है।

[स्रोत :आइमा अरबा-डा. मुहम्मद बिन् अब्दुर्रहमान अल् ख़मीस]

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