तौहीद के मसाईल-1

Question

तौहीद के मसाईल

सब तारीफें अल्लाह तआला के लिए ही हैं।

कयामत के रोज़ इन्सान की नजात का फैसला दो बातों पर होगा, 1. ईमान और 2. अमल-ए-सालेह, ईमान से अल्लाह तआला की जात पर ईमान, रिसालत और आख़िरत पर ईमान,फरिश्तों और किताबों पर ईमान,अच्छी या बूरी तक़दीर पर ईमान मुराद है।

रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया:

الإيمان بضع وسبعون شعبة فأعلاها قول لا إله إلا الله وأدناها إماطة الأذى عن الطريق

“ईमान की 70 से ज्यादा शाखें हैं उन में सबसे अफज़ल ‘ला इलाह इल्लल्लाह’ कहना है…… ” [सहीह बुख़ारी, हदीस-9, सहीह मुस्लिम, हदीस-35]

ईमान की बुनियाद कलिमा-ए-तौहीद है।

अ’माल-ए-सालिहा से मुराद वह अ’माल हैं जो सुन्नते रसूल(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मुताबिक हो, बेशक़ आख़िरत में निजात के लिए अ’माल-ए-सालिहा बहुत अहमियत रखते हैं लेकिन अक़ीदा-ए-तौहीद और अ’माल-ए-सालिहा दोनों में से अक़ीदा-ए-तौहीद की अहमियत कहीं ज्यादा है।
क़ियामत के रोज़ अक़ीदा-ए-तौहीद की मौजूदगी में अ’माल की कोताहियों और लग्ज़िशों की माफी तो हो सकती हैं लेकिन अकीद-ए-तौहीद में बिगाड़ (काफिराना,मुश़रिकाना या तौहीद में शिर्क की मिलावट) की सूरत में ज़मीन व आसमान के बराबर भी अ’माल-ए-सालिहा बेकार साबित होंगे, सूरत आले इमरान में अल्लाह तआला फरमाते हैं की अगर काफिर लोग सारी ज़मीन के बराबर भी सोना सदक़ा करेंगे तो ईमान लाए बग़ैर उन का ये सालेह अमल अल्लाह के यहाँ क़बूल नहीं होगा,अल्लाह तआला फरमाते हैं :

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَمَاتُوا۟ وَهُمْ كُفَّارٌۭ فَلَن يُقْبَلَ مِنْ أَحَدِهِم مِّلْءُ ٱلْأَرْضِ ذَهَبًۭا وَلَوِ ٱفْتَدَىٰ بِهِۦٓ ۗ أُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ

“जिन लोगों ने कुफ्र अख़्तियार किया और कुफ्र की हालत में मरे उन में से कोई अगर (अपने आप को सज़ा से बचाने के लिए) रूए ज़मीन भर कर भी सोना फिद्’या में दे तो उसे क़बूल न किया जाएगा, ऐसे लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब है और ऐसे लोगों के लिए कोई मददगार नहीं होगा”                                                             [सूरह आले इमरान,आयत-91]
अल्लाह तआला अपने नबियों और रसूलों का ज़िक्र करते हुए फरमाते हैं:

وَلَوْ أَشْرَكُوا۟ لَحَبِطَ عَنْهُم مَّا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ…

“अगर कहीं इन लोगों ने भी शिर्क किया होता तो उन के भी सब (नेक) अ’माल बर्बाद हो जाते”

[सूरह अल्-अन्आम,आयत-88]

और एक दूसरी जगह फरमाते हैं:

وَلَقَدْ أُوحِىَ إِلَيْكَ وَإِلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِكَ لَئِنْ أَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلْخَـٰسِرِينَ

“ऐ नबी आपकी तरफ और आप से पहले गुज़रे हुए तमाम अम्बिया की तरफ यह वह्’य भेजी जा चुकी हौ कि अगर आप ने शिर्क किया तो आपका किया कराया अमल बर्बाद हो जाएगा और आप नुक्सान पाने वालों में से हो जाओगे”

[सूरह जुमर,आयत-65]

فَلَا تَدْعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَ فَتَكُونَ مِنَ ٱلْمُعَذَّبِينَ

“पस ऐ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)! अल्लाह के साथ किसी दूसरे माबूद को न पुकारो वरना तुम भी सज़ा पाने वालों में शामिल हो जाओगे”             [सूरह शु’अरा, आयत-213]

ऊपर की आयतों में अल्लाह तआला ने साफ-साफ फरमा दिया है कि अगर नबी भी शिर्क करेंगे तो उनके सारे अ’माल बर्बाद हो जाएंगे,आगे अल्लाह तआला फरमाते हैं:

…إِنَّهُۥ مَن يُشْرِكْ بِٱللَّهِ فَقَدْ حَرَّمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِ ٱلْجَنَّةَ…

“जिस ने अल्लाह तआला के साथ शिर्क किया उस पर जन्नत हराम कर दी है और उस का ठिकाना जहन्नम है ”

[सूरह मायदा, आयत-72]
सूरह निसा की एक आयत में अल्लाह तआला फरमाते हैं:

…إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِۦ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُ ۚ

“अल्लाह तआला के यहाँ शिर्क की बख्शिश ही नहीं,उस के सिवा और सब कुछ माफ हो सकता है जिसे वह माफ करना चाहे”                                                                                                                                     [सूरह निसा, आयत-48]
इन आयतों से यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि अल्लाह तआला के नजदीक शिर्क माफ नहीं होगा, शिर्क के सिवा कोई दूसरा गुनाह अल्लाह चाहे तो माफ कर सकता है लेकिन शिर्क को कभी माफ नहीं करेगा।

सूरह तौब में अल्लाह तआला ने शिर्क की हालत में मरने वालों के लिए बख़्शिश की दुआ तक करने से मना फरमा दिया है, अल्लाह तआला का इरशाद है:

مَا كَانَ لِلنَّبِىِّ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَن يَسْتَغْفِرُوا۟ لِلْمُشْرِكِينَ وَلَوْ كَانُوٓا۟ أُو۟لِى قُرْبَىٰ مِنۢ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُمْ أَصْحَـٰبُ ٱلْجَحِيمِ

“नबी और अहले ईमान के लिए यह जायज़ नहीं कि वह मुशरिकों के लिए मग़्फिरत की दुआ करें चाहे वह उन के रिश्तेदार ही क्यों न हों,जबकि उन पर यह बात साफ हो चुकी है कि वह जहन्नमी हैं” [सूरह तौबा, आयत-113]

रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हज़रत अबु दरदा रजियल्लाहु अन्हु को नसीहत फरमायीं कि

 أَنْ لَا تُشْرِكْ بِاللَّهِ شَيْئًا وَإِنْ قُطِّعْتَ وَحُرِّقْتَ

“अल्लाह के साथ किसी को शरीक़ न करना चाहे क़त्ल कर दिए जाओ या जला दिए जाओ” [इबने माजा, हदीस-4034, हसन हदीस]

आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया:

اجْتَنِبُوا السَّبْعَ الْمُوبِقَاتِ . قَالُوا : يَا رَسُولَ اللَّهِ وَمَا هُنَّ ؟ قَالَ : ( الشِّرْكُ بِاللَّهِ وَالسِّحْرُ وَقَتْلُ النَّفْسِ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ وَأَكْلُ الرِّبَا وَأَكْلُ مَالِ الْيَتِيمِ وَالتَّوَلِّي يَوْمَ الزَّحْفِ وَقَذْفُ الْمُحْصَنَاتِ الْمُؤْمِنَاتِ الْغَافِلَاتِ

“सात हलाक करने करने वाली चीज़ों से बचो 1. अल्लाह तआला के साथ शिर्क करना 2. जादू 3. नाहक़ क़त्ल करना 4.यतीम का माल खाना 5. सूद(ब्याज) खाना 6. मैदान-ए-जंग से भागना 7. भोली भाली मोमिन औरतों पर तोहमत लगाना”

[ सहीह बुखारी,हदीस-2767,सहीह मुस्लिम हदीस-89]

रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया:

“अल्लाह तआला उस वक़्त तक बन्दे के गुनाह मुआफ करता रहता है जब तक अल्लाह और बन्दे के बीच पर्दा न हो” सहाब किराम ने सवाल किया “या रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)! हिजाब से क्या मुराद है?” आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया “हिजाब का मतलब यह है कि इन्सान मरते दम तक शिर्क में शामिल रहे”                                                                                                                                     [मुसनद अहमद]

ऊपर की आयतों और हदीस से यह अन्दाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि शिर्क ही वह गुनाह है जिस के नतीजे में इन्सान की हलाकत और बर्बादी यक़ीनी है।
एक आदमी अल्लाह तआला की बारगाह में हाज़िर होगा जिस के निन्यानवे दफ्तर गुनाहों से भरे होंगे वह आदमी अपने गुनाहों की वजह से मायूस होगा,अल्लाह तआला इरशाद फरमाएगा”आज किसी पर ज़ुल्म नहीं होगा तुम्हारी एक नेकी भी हमारे पास है लिहाज़ा मिज़ान की जगह चले जाओ”, रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: “कि उसके गुनाह तराजू के एक पलड़े में डाल दिए जाएंगे और नेकी दूसरे पलड़े में,वह एक नेकी तमाम गुनाहों पर भारी हो जाएगी,वह एक नेकी ‘अश्हदु अन् ला इलाह इलल्लाह व अन्न मुहम्मदन् अब्दुहू व रसूलुहू होगी’                 [तिर्मीज़ी]

एक बूढ़ा शख्स रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और सवाल किया, या रसूलुल्लाह ! सारी जिन्दगी गुनाहों में गुज़री है, कोई गुनाह ऐसा नहीं जिसको किया नहीं हो, ज़मीन पर जो जानदार हैं उनमें अगर मेरे गुनाह बाँट दिए जाएँ तो सब को ले डूबें, क्या मेरी तौबा की कोई सूरत है ?” रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पूछा “क्या इस्लाम लाए हो ?” उस ने जवाब दिया “अश्हदु अन् ला इलाह इलल्लाह व अन्न मुहम्मदन् अब्दुहू व रसूलुहू
आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) इरशाद फरमाया “जा, अल्लाह माफ करने वाला और गुनाहों को नेकियों में बदलने वाला है” उस ने सवाल किया “क्या मेरे सारे गुनाह और जुर्म माफ हो जाएंगे?” रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया “हाँ, तेरे सारे गुनाह और जुर्म माफ हो जाएँगे”           [इब्न कसीर]

ध्यान देने की बात है कि एक तरफ आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के अपने चाचा जिन्होंने उम्र भर दीन-ए-इस्लाम के मामले में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की मदद किया लेकिन अक़ीदा-ए-तौहीद पर ईमान न लाने की वजह से जहन्नम के हकदार हुए और दूसरी तरफ एक अजनबी आदमी जिसका रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से कोई खूनी रिश्ता नहीं और वह स्वयं अपने बेपनाह गुनाहों के होने की बात कर रहा है,लेकिन सिर्फ अक़ीदा-ए-तौहीद पर ईमान ले आने की वजह से जन्नत का हकदार ठहराया गया।

इन सारी बातों से यह नतीजा निकलता है कि क़यामत के दिन निजात का तमाम दारोमदार इन्सान के अक़ीदा-ए-तौहीद पर होगा,अगर अक़ीदा किताबो-सुन्नत के मुताबिक़ शुद्ध तौहीद पर होगा तो नेक कार्य क़ाबिले अज्र व सवाब होंगे, और गुनाह क़ाबिले बख़्शिश और क़ाबिले मुआफी होंगे, लेकिन अगर अक़ीदा, तौहीद के बजाए शिर्क पर आधारित हुआ तो पूरी ज़मीन के बराबर नेक कार्य भी स्वीकार नहीं किए जाएंगे।

अक़ीदा-ए-तौहीद की वज़ाहत
तौहीद का मादा “वहद” है और उस के मसादर में से “वहद” “वहदह” ज्यादा मशहूर हैं जिस का मतलब है अकेला और बेमिसाल होना, “वहीद” या “वहद” उस हस्ती को कहते हैं जो अपनी ज़ात में और अपने गुणों में अकेली और बेमिसाल हो। “वहद” का वाव, हम्ज़ह से बदल कर “अहद” बना है। यही लफ्ज़ सूरह इख्लास में अल्लाह तआला के लिए इस्तिमाल हुआ है जिस का मतलब है कि अल्लाह अपनी ज़ात और गुणों में अकेला और बेमिसाल है, कोई दूसरा उसके जैसा नहीं जो उसकी ज़ात और गुणों में शरीक हो।

1. कियामत के दिन हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम अपने बाप आज़र की बख़्शिश के लिए सिफारिश करेंगे तो जवाब में अल्लाह तआला इरशाद फरमाएगा “मैंने जन्नत काफिरों के लिए हराम कर दी है।”                  [सहीह बख़ारी]
और यह कह कर हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सिफारिश रद्द कर दी जाएगी।

2. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चाचा जनाब अबू तालिब के बारे में कौन नहीं जानता कि उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नबूवत की ख़बर मिलने के बाद हर मुश्किल वक़्त में बड़ी हिम्मत और बहादूरी के साथ डटकर आपका साथ दिया, क़ुरैश मक्का के ज़ुल्म व सितम और बेपनाह दबाव के सामने दीवार बन करे खड़े हो गए। अबू जहल ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के क़त्ल का इरादा किया तो बनू हाशिम और बनू मुत्तलिब के नौजवानों को इकट्ठा कर के हरम शरीफ ले गए और अबू जहल को ऐलानिया मरने मारने की धमकी दी, जनाब अबू तालिब ज़िन्दगी भर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इसी तरह साथ देते रहे,जिस साल जनाब अबू तालिब की मौत हुई रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे ग़म का साल क़रार दिया, रसूलुल्लल्लाहु सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ खूनी रिश्ते और दीनी मामलों में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की भरपूर हिमायत के बावजूद सिर्फ ईमान न लाने की वजह से जनाब अबू तालिब जहन्नम में चले जाएंगे।                                                                                                                                        [सहीह बुखारी]

एक शख़्श अब्दुल्लाह बिन् जद्आन के बारे में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा गया कि “वह सिलारहमी करने वाला और लोगों को खाना खिलाने वाला शख़्स था, क्या उसकी यह नेकियाँ क़ियामत के दिन उसके काम आएंगी ?” आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया “नहीं”, क्योंकि उस ने उम्र भर एक बार भी यह नहीं कहा “ऐ मेरे रब ! क़ियामत के दिन मेरे गुनाह माफ फरमाना”                                                                                                   [सहीह मुस्लिम]

यानि उसका न अल्लाह तआला पर ईमान था, न क़ियामत के दिन पर लिहाज़ा उसकी सारी नेकियाँ और सालेह आमाल बर्बाद हो जाएँगे। ऊपर की बातों से यह बात साफ है कि अक़ीदा-ए-तौहीद के बग़ैर नेक और सालेह आमाल अल्लाह तआला के यहाँ जर्रा बराबर अज्र व सवाब के मुस्तहिक़ नहीं समझे जाएँगे।

[Source: तौहीद के मसाईल,शैख़ मुहम्मद इक़बाल किलानी साहब की किताब से लिया गया]

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