रसूलुल्लाह (ﷺ) के बताये हुए बेशकीमती कलिमात-ये कलिमात हर तरह की बीमारी से, शैतानी वस्वसों व असरात से हिफाजत में मुफीद है।
ये कलिमात ईमान वालों के लिये हर तरह की बीमारी से, बला से, शैतानी वस्वसों व असरात से हिफाजत में मुफीद है।
अल्लाह तआला फरमाते हैं :
فَإِذَا قَرَأْتَ الْقُرْآنَ فَاسْتَعِذْ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ [النحل:98]
أَنَّهُ كَانَ إذَا قَامَ إلَى الصَّلَاةِ اسْتَفْتَحَ، ثُمَّ يَقُولُ:
أَعُوذُ بِاللَّهِ السَّمِيعِ الْعَلِيمِ مِن الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ، مِنْ هَمْزِهِ وَنَفْخِهِ وَنَفْثِهِ
رواه أحمد، والترمذي.
“अऊजुबिल्लाहिस्समीइल अलीमी मिनश्शैतानिर्रजीमी मिन् हम्जिही व नफ्ख़िही व नफ्सिही”
मैं पनाह में आता हूँ अल्लाह की जो सुनने वाला और जानने वाला है, शैतान मरदूद से, उसके वस्वसे से, उसके फूंक से और उसके थूक से।
ِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلْفَلَقِ ١
مِن شَرِّ مَا خَلَقَ ٢
وَمِن شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ ٣
وَمِن شَرِّ ٱلنَّفَّـٰثَـٰتِ فِى ٱلْعُقَدِ ٤
وَمِن شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ ٥
बिस्मिल्लाहिरहमानिर्रहीम
कुलअऊजु बिरब्बिल् फलक्- मिन् शर्रिमा ख़लक्- व मिन् शर्रिगासिकिन इज़ा वक़ब- व मिन् शर्रिन्नफ्फासाति फिल उक़द- व मिन् शर्रिहासिदिन इज़ा हसद. (अल-कुरआन : 113, सूरह फलक )
तर्जुमा : कहो मैं पनाह मांगता हूँ सुबह के रब की। हर उस चीज के शर से जो उसने पैदा की है और अंधेरी रात की
तारीकी के शर से जब उसका अंधेरा फैल जाये, और गिरोह में फूंकने वालों के शर से और हसद करने वाले की
बुराई से जब वो वो हसद करे।
हर फर्ज नमाज के बाद एक मर्तबा और फज्र व मग़रिब के बाद तीन-तीन मर्तबा पढ़ें।
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلنَّاسِ ١
مَلِكِ ٱلنَّاسِ ٢
إِلَـٰهِ ٱلنَّاسِ ٣
إِلَـٰهِ ٱلنَّاسِ ٣ مِن شَرِّ ٱلْوَسْوَاسِ ٱلْخَنَّاسِ ٤
ٱلَّذِى يُوَسْوِسُ فِى صُدُورِ ٱلنَّاسِ ٥
مِنَ ٱلْجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ ٦
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
कुलअऊजु बिरब्बिन्नास-मलिकिन्नास-इलाहिन्नास-मिन शर्रिल् वस्वासिल् ख़न्नास-अल्लजी यौवस्विसु फी सुदूरिन्नास- मिनल् जिन्नती वन्नास. (अल कुरआन : 114, सूरह नास )
तर्जुमा : कहो मैं पनाह मांगता हूँ इन्सानों के रब, इंसानों के बादशाह, इंसानों के हकीकी माबूद की। उस वस्वसा डालने वाले, पीछे हट जाने वाले के शर से, जो लोगों के दिलों में वस्वसे डालता है ख्वाह वो जिन्न में से हो या इंसान में से।
हर फर्ज नमाज के बाद एक मर्तबा और फज्र व मग़रिब के बाद तीन तीन मर्तबा पढ़ें।
لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ، وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهْوَ عَلَى كُلِّ شَىْءٍ قَدِيرٌ
ला इला-ह इल्लल्लाहु वहदहु ला शरी-क लहू लहुल् मुल्कु व लहुल् हम्दु व हुव अला कुल्लि शैइन क़दीर.
( सही बुखारी 6402 )
तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई ( सच्चा ) माबूद नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं, उसी की बादशाहत
और उसी की ही तारीफ है और वह हर चीज पर पूरी कुदरत रखता है।
(जो शख्स इस कलिमा को सुबह 100 मर्तबा पढ़े वो शाम तक अल्लाह की हिफाजत में रहेगा, जो शख्स इस कलिमा को शाम 100 मर्तबा पढ़े वो सुबह तक अल्लाह की हिफाजत में रहेगा )
بسم الله الذي لا يضر مع اسمه شيء في الأرض ولا في السماء وهو السميع العليم
बिस्मिल्लाहिल्लज़ी ला यजुर्र मअस्मिही शैउन् फिल्अर॒जि वला फिस्समाइ व-हुवस्समीउल् अलीम. ( जामेअ तिर्मिजी: 3387 , अबू दाऊद : 5087 )
तर्जुमा : उस अल्लाह के नाम के साथ जिसके नाम के होते हुए कोई चीज नुक्सान नहीं पहुँचा सकती , जमीन की हो या आसमानों की वह खूब सुनने वाला खूब जानने वाला है।
أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّاتِ مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ
अऊजु बि कलिमातिल्लाहि-ताम्माति मिन शर्रि मा खलक्. ( सहीह मुस्लिम : 2708 )
तर्जुमा : मैं अल्लाह के पूरे कलिमात के जरिये उसकी हिफाजत में आता हूँ उसकी मख्लूक् की बुराई से। (हर शै से हिफाजत के लिये )
اللهم إني أعوذ بك من البرص ، والجذام ، والجنون، وسيئ الأسقام
अल्लाहुमू-म इननी अऊजुबिक मिनल् बरसि वल्जुज़ामि वल्जुनूनि व सय्यिइल अस्काम. ( सुनन अबू दाऊद : 1554 )
तर्जुमा : ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह में आता हूँ बरस की बीमारी से, कोढ़ की बीमारी से, पागलपन की बीमारी से और हर किस्म की बुराई से। हर तरह की बीमारी से शिफा के लिये यह दुआ मुफीद है। (हर तरह की बीमारी से शिफा के लिये )
اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْهَمِّ وَالْحَزَنِ وَالْعَجْزِ وَالْكَسَلِ وَالْجُبْنِ وَالْبُخْلِ وأعوذ بك من غلبة الدين، وقهر الرجال
अल्लाहुमू-म इन्नी अऊजुबि-क मिनल् हम्मि वल्हज़्नि वल्अजज़ि वल् क-स-लि वल्-जुब्-नि वल्-बुख़्लि व ग़लबतिद्दैन व कहरि-रिजाल. ( सहीह बुखारी : 6369 )
तर्जुमा : ऐ अल्लाह! यकीनन मैं तेरी हिफाजत चाहता हूँ परेशानी और गम से, कमजोरी और काहिली से और कनन््जूसी और बुजदिली से, कर्ज के बोझ और लोगों के जुल्म ( अत्याचार ) से।
اللهمَّ إني أعوذُ بكَ مِن الفَقرِ، والقِلَّة، والذِّلَّة، وأعوذُ بكَ مِن أن أَظْلِمَ أو أُظلَمَ
अल्लाहुम्-म इन्नी अऊजुबि-क मिनल् फूक्रि व अऊजुबि-क मिनल किल्लति व-ज्जिल्लति व अऊजुबि-क अन अज़्लम औ उज़्लम. (सुनन अबू दाऊद : 1544 )
तर्जुमा : ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह में आता हूँ मुहताजी से और तेरी पनाह में आता हूँ किल्लत और जिललत से और तेरी पनाह में आता हूँ इस बात से कि मैं किसी पर जुल्म करूँ या मुझ पर जुल्म किया जाये।
أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّةِ مِنْ غَضَبِهِ وَعِقَابِهِ وَشَرِّ عِبَادِهِ وَمِنْ هَمَزَاتِ الشَّيَاطِينِ وَأَنْ يَحْضُرُونِ
अऊजु बिकलिमातिल्-लाहित्ताम्माति मिन् गज़बिही व इक़ाबिही व शर्रि इबादिही व मिन हमज़ातिश्शयातीनि व अंय्यहजुरून. ( जामेअ तिर्मिजी : 3528 )
तर्जुमा : मैं अल्लाह के पूरे कलिमात के जरिये उसकी पनाह में आता हूँ, उसकी नाराजी और उसकी सजा और उसके बन्दों की बुराई से और शैतान के वस्वसा डालने ( गुनाहों पर उभारने और उकसाने ) और उनके मेरे पास आने से।
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَفْوَ وَالْعَافِيَةَ فِي الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَفْوَ وَالْعَافِيَةَ فِي دِينِي وَدُنْيَاىَ وَأَهْلِي وَمَالِي اللَّهُمَّ اسْتُرْ عَوْرَاتِي وَآمِنْ رَوْعَاتِي وَاحْفَظْنِي مِنْ بَيْنِ يَدَىَّ وَمِنْ خَلْفِي وَعَنْ يَمِينِي وَعَنْ شِمَالِي وَمِنْ فَوْقِي وأعوذ بعظمتك من أن أُغتال من تحتي
अल्लाहम्-म इन्नी अस्अलुकल अफ्-व वल् आफिय-त फिद्दुन्या वल् आखिरति, अल्लाहुम्-म इन्नी असअलुकल् अफ्-व वल् आफिय-त फी दीनी व दुन्या-य व अहली व माली, अल्लाहम्मस्तुर औराति व अमिन् रौआति अल्लाह॒म्महफ्ज़नी मिम्बैनि यदय्-य व मिन खल्फी व अन्-यमीनि व अन् शिमाली व मिन् फौक़ी व अऊजु बिअज्मति-क अन् अग़ता-ल मिन् तहती. ( अबू दाऊद : 5073, सुनन इब्न माजा, 3871 )
तर्जुमा : ऐ अल्लाह! बेशक मैं तुझसे दुनिया और आखिरत में माफी और आफियत का सवाल करता हूँ। ऐ अल्लाह! बेशक मैं तुझसे माफी और आफियत का सवाल करता हूँ अपने दीन और दुनिया और अपने घर बालों और माल में। ऐ अल्लाह! मेरी पर्दा वाली बातों पर पर्दा डाल दे और मेरे खौफ और घबराहट को सुकून से बदल दे, ऐ अल्लाह! तू मेरी हिफाजत कर मेरे सामने से, मेरे पीछे से, मेरे दाएं से और मेरे बाएं से और मेरे ऊपर से, और मैं तेरी अजमत की पनाह चाहता हूँ इस बात से
कि अचानक अपने नीचे से हलाक ( बर्बाद ) किया जाऊँ।
اللَّهُمَّ أَنْتَ رَبِّي، لاَ إِلَهَ إِلاَّ أَنْتَ، خَلَقْتَنِي وَأَنَا عَبْدُكَ، وَأَنَا عَلَى عَهْدِكَ وَوَعْدِكَ مَا اسْتَطَعْتُ، أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا صَنَعْتُ، أَبُوءُ لَكَ بِنِعْمَتِكَ عَلَىَّ وَأَبُوءُ لَكَ بِذَنْبِي، فَاغْفِرْ لِي، فَإِنَّهُ لاَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلاَّ أَنْتَ
अल्लाहुम्म अन-त रब्बी ला इलाह-ह इल्ला अन्-त खलक़्तनी व अ-न अबदु-क व अ-न अला अह्दि-क व वअदि-क मस्ततआतु अऊजुबि-क मिन शर्रि मा सनअतु अबूउ लक बिनिअ्मति-क अलय्य व अबूउ बिजम्बी फग़्फिरली फइन्नहू ला यग्फिरु-ज्जुनू-ब इल्ला अन्त. (सहीह बुखारी : 6306 )
तर्जुमा : ऐ अल्लाह! तू मेरा रब है, तेरे सिवा कोई ( सच्चा ) माबूद नहीं, तूने मुझे पैदा किया और मैं तेरा बन्दा हूँ और मैं
अपनी ताकत भर तेरे अहद और वादे पर कायम हूँ। मै पनाह में आता हूँ अपनी की हुई बुराई से। अपने ऊपर तेरे ईनाम का
इक़रार करता हूँ और मैं अपने गुनाह का इक़रार करता हूँ इसलिये तू मुझे माफ कर दे। क्योंकि तेरे सिवा कोई भी गुनाह
माफ नहीं कर सकता। (इस दुआ को सय्यदुल इस्तिगूफार कहा जाता है।)
اللهم عالم الغيب والشَّهادة، فاطر السَّماوات والأرض، ربَّ كل شيءٍ ومليكه، أشهد أن لا إله إلا أنت، أعوذ بك من شرِّ نفسي، ومن شرِّ الشيطانِ وشِرْكِه وأن أقترف على نفسي سوءًا، أو أجرّه إلى مسلمٍ
अल्लाहुम्-म आलिमल् गैबि वश्शहा-दति फातिरस्समावाति वल् अर्जि रब्ब कुल्लि शैइंवू-व मली-कहू, अश्हदु अल्ला
इला-ह इल्ला अनू-त अऊजुबि-क मिन शर्रि नफ्सी व मिन शर्रिश्शैतानि व शिरकिही व अन्नक्तरि-फ् अला नफ्सी
सूअन् अव् अजरहू इला मुस्लिम. (सुनन अबू दाऊद : 5083, जामेअ तिर्मिजी : 3391-3528, शैख़ अल्बानी ने इसे ज़ईफ कहा है )
तर्जुमा : ऐ अल्लाह! गैब ( छिपे हुए) और हाजिर के जानने वाले! आसमानों और जमीन को बेमिसाल पैदा करने वाले! ऐ हर चीज के पालनहार और मालिक! मैं गवाही देता हूँ कि (सच्चा माबूद तू ही है, मैं तेरी पनाह में आता हूँ अपने नफ्स की बुराई से, शैतान की बुराई से, उसकी साझेदारी से और इस बात से कि अपने ही खिलाफ कोई बुरा काम करूँ या किसी मुसलमान के खिलाफ कोई बुरा काम करूँ।
أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّةِ مِنْ كُلِّ شَيْطَانٍ وَهَامَّةٍ، وَمِنْ كُلِّ عَيْنٍ لاَمَّةٍ
अऊज़ु बिकलिमातिल्-लाहित्ताम्माति मिन् कुल्लि शैतानिंव्-व हाम्मति व मिन् कुल्लि ऐनिल्-लाम्मति. ( बुखारी : 3371 )
तर्जुमा : मैं अल्लाह तआला के तमाम कलिमात के जरिये उसकी पनाह में आता हूँ शैतान से, जहरीले जानवर से और हर मलामत करने वाली आँख की बुराई से। (नजरे-बद से हिफाजत के लिये मख्सूस )
اللّهُـمَّ إِنّـي أَعـوذُبِكَ أَنْ أُشْـرِكَ بِكَ وَأَنا أَعْـلَمْ،وَأَسْتَـغْفِرُكَ لِما لا أَعْـلَم
अल्लाहुम्-म इन्नी अऊजुबि-क अन् उश्रि-क बि-क व अ-न अअलम् व अस्तग्फिरू-क लिमा ला अअ्लमु. ( शरह सहीह अल्-अदाबुल मुफ्रद : 551 )
तर्जुमा : ऐ अल्लाह! मैं इस बात से तेरी हिफाजत में आता हूँ कि मैं जानते हुए किसी को तेरा शरीक (साझीदार ) ठहराऊँ और मैं तुझसे उस (शिर्क ) की माफी चाहता हूँ जो मैं नहीं जानता। (शिर्क से बचने के लिये यह कलिमात पढ़ते रहें )
ضَعْ يَدَكَ عَلَى الَّذِي تَأَلَّمَ مِنْ جَسَدِكَ وَقُلْ بِاسْمِ اللَّهِ . ثَلاَثًا . وَقُلْ سَبْعَ مَرَّاتٍ أَعُوذُ بِاللَّهِ وَقُدْرَتِهِ مِنْ شَرِّ مَا أَجِدُ وَأُحَاذِرُ
बिस्मिल्लाह (3 मर्तबा) अऊजुबिल्लाहि व कुदरतिही मिन शर्रि मा अजिदु व उहाजिरु. (7 मर्तबा ) ( सहीह मुस्लिम : 2202 )
तर्जुमा : अल्लाह के नाम से शुरू। मैं अल्लाह तआला की कुदरत की हिफाजत में आता हूँ उस चीज की बुराई से जो मैं महसूस करता हूँ और जिसका मुझे डर है। (जिस्म में जिस जगह दर्द हो, वहां हाथ रखकर यह दुआ पढ़ें।)
रब्बि अऊजुबिक मिन् हमजातिश्शयातीन. व अऊजुबिक रब्बि अंय्यहजुरून. (सूरह मोमिनून : 97-98 )
तर्जुमा : ऐ मेरे परवरदिगार! मैं हमजाद शैतानों के वस्वसों से तेरी पनाह चाहता हूँ। और ऐ. रब! मैं तेरी पनाह चाहता हूँ कि वह मेरे पास आ जायें।
اَللَّهُمَّ عَافِنِي فِي بَدَنِي، اَللَّهُمَّ عَافِنِي فِي سَمْعِي، اَللَّهُمَّ عَافِنِي فِي بَصَرِي، اَللَّهُمَ إنِّي أَعُوذَ بِكَ مِنْ الكُفْرِ وَالفَقْرِ، اَللَّهُمَ إنِّي أَعُوذَ بِكَ مِنْ عَذَابِ القَبْرِ، لَآ إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ
अल्लाहम्-म आफिनी फी ब-द-नी, अल्लाहुम्-म आफिनी फी सम्अी अल्लाहुम्-म आफिनी फी ब-स-री, ला इला-ह इल्ला अन्-त, अल्लाहुम्-म इन्नी अऊजुबि-क मिनल् कुफ्र वल्-फक़्र अल्लाहुम्-म इन्नी अऊजुबि-क मिन अज़ाबिल् कब्रि, ला इलाह-ह इल्ला अन्-त. (सुनन अबी दाऊद : 5089 )
तर्जुमा : ऐ अल्लाह! मुझे आफियत ( आराम ) दे मेरे बदन में, ऐ अल्लाह! मुझे आफियत दे मेरे कानों में, ऐ अल्लाह मुझे आफियत दे मेरी आँखों में, तेरे सिवा कोई ( सच्चा ) माबूद नहीं। ऐ अल्लाह! यक़ीनन् मैं तेरी हिफाजत में आता हूँ कुफ और मुहताजी से और मैं तेरी हिफाजत में आता हूँ कब्र के अजाब से, तेरे सिवा कोई माबूद नहीं ।
اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الْمَسِيحِ الدَّجَّالِ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الْمَحْيَا وَفِتْنَةِ الْمَمَاتِ اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْمَأْثَمِ وَالْمَغْرَمِ
अल्लाहुम्मा इन्नी अऊजुबिका मिन् अजाबिल कब्रि व अऊजुबिका मिन् फितनतिल् मसीही दज्जाल व अऊजुबिका मिनल् फितनतिल् मह्-या वल् ममात व अल्लाहुम्मा इन्नी अऊजुबिका मिनल् मअसमी वल् मग़रमी. (बुखारी : 832, मुख्तसर सहीह
मुस्लिम अल अलबानी : 306 )
तर्जुमा : ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह चाहता हूँ कब्र के अजाब से और मैं तुझसे पनाह चाहता हूँ मसीह दज्जाल के फिले से और मैं तुझसे पनाह चाहता हूँ जिन्दगी और मौत के फिल्ने से और मैं पनाह चाहता हूँ गुनाह से और कर्ज से।
اللهم رب الناس، أذهب البأس، واشف، أنت الشافي لا شفاء إلا شفاؤك، شفاءً لا يغادر سقماً
अल्लाहुम्-म रब्बन्नास अज्हिबिल बअ्स इश्फि अन्तश्शाफी ला शिफाअ इल्ला शिफाउक शिफाअल्ला युगादिर सकमा. (सही बुखारी : 5743 )
तर्जुमा : ऐ लोगों के पालने वाले! तू दूर कर दे बीमारी और तू शिफा दे, तू ही शिफा देने वाला है, तेरे अलावा कोई शिफा देने वाला नहीं है, ऐसी शिफा दे कि कोई बीमारी पास न आये।
और अल्लाह ही बेहतर ईल्म रखने वाला है।
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